महामारी को रोकने का जरिये बने फेसमास्क, ग्लब्स और पीपीई किट जैसे रक्षा कवच इंसान की लापरवाही से समुद्र को जहरीला बनाने का जरिया बन गए हैं। हर माह अरबों की संख्या में फेसमॉस्क और ग्लब्स समुद्र में फेंके जा रहे हैं, जो जलीय जंतुओं के लिए जानलेवा हो गए हैं। ओशियन-एशिया संस्था का कहना है कि मेडिकल कचरे से करोड़ों जलीय जीवों की मौत हो सकती है।

समुद्र तटों पर टनों मॉस्क का ढेर 
ओशियन-एशिया संस्था ने हांगकांग, तुर्की, फ्रांस और ब्रिटेन के समुद्री तटों में कचरे पर सर्वे किया। तटों से सौ मीटर की दूरी तक कई टन कोविड से जुड़ा मेडिकल कचरा पाया गया।

200 से ज्यादा देशों में इस्तेमाल 
दुनिया के कुल 215 देश संक्रमण की चपेट में हैं, जहां मॉस्क पहना जा रहा है। एक अनुमान के हिसाब से लोग एक से दिन में दो मास्क इस्तेमाल करते हैं।

बढ़ता प्रदूषण
13 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा हर साल समुद्र में होता है डंप
400 से एक हजार साल लगते हैं प्लास्टिक को विघटित होने में

दिल्ली की स्थिति—
35 टन बायो मेडिकल कचरे का रोज दिल्ली में निस्तारण
45 टन बायो मेडिकल कचरा दिल्ली में पैदा हो रहा रोज

 मॉस्क का बढ़ता बाजार
– 75 अरब डॉलर का फेसमॉस्क बाजार रहा पहली तिमाही में
– 50% दर से अगले सात साल तक वृद्धि करेगा यह बाजार।
– 85% उत्पादन चीन में हो रहा मॉस्क का, कई दूसरे देश में आए।
– 8.9 करोड़ मेडिकल मॉस्क हर महीने चाहिए दुनिया को

निस्तारण न होना-
विश्व आर्थिक मंच की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया का 30 फीसदी कचरा ही सही तरह से निस्तारित हो पा रहा है। बाकी धरती या नदियों, झील और समुद्र में डंप हो रहा है।

कपड़े का मॉस्क लाभदायक 
पर्यावरण संस्थानों ने कपड़े का या जल्दी से नष्ट हो जाने वाले मॉस्क को अनिवार्य बनाने की सलाह दी है।  जबकि अस्पतालों से निकला कचरा सीधे संयंत्रों में भेजना अनिवार्य हो।

 

 

Source : Hindustan

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