कोल माइंस प्राविडेंट फंड ऑर्गनाइजेशन (सीएमपीएफओ) से प्रति माह 1.35 करोड़ रुपये की अधिक वसूली एसबीआइ कर रही है। वह अन्य बैंकों से डेढ़ गुना अधिक डिस्बर्समेंट चार्ज सीएमपीएफओ से कोल इंडिया कर्मियों के पेंशन वितरण मद से काट रहा है। अन्य बैंक जहां इस मद में प्रति पेंशनधारक प्रति माह 30 रुपये का शुल्क लेते है वहीं एसबीआइ 45 रुपये प्रति माह की कटाैती करता है। वह भी तब जबकि सर्वाधिक पेंशन धारकों का खाता एसबीआइ में ही है। यहां सीएमपीएफओ के तीन लाख खाताधारक हैं। पिछले दिनों सीएमपीएफओ के बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की बैठक में इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा हुई।
डेढ़ वर्ष पहले ही कमेटी ने की थी अनुशंसा, नहीं हुई कार्रवाई :
इस मुद्दे पर सीएमपीएफ में पहले भी चर्चा हो चुकी है। इसके अध्ययन को एक समिति का भी गठन किया गया था। पहली अप्रैल 2019 को चार सदस्यीय कमेटी ने बैठक कर बताया था कि आरटीजीएस व एनईएफटी के मामले में आरबीआइ सर्कुलर जारी कर चुकी है। इसके मुताबिक स्टेट बैंक को बिना सेवा शुल्क के ये सेवाएं देनी चाहिए। बावजूद इसके एसबीआइ सीएमपीएफओ से शुल्क वसूल रहा है। कमेटी के सदस्यों- सीएमपीएफओ के एडिशनल कमिश्नर एके अग्रवाल, एसके सिन्हा व रीजनल कमिश्नर पी मल्लिक व नवीन कुमार ने 14 जून 2019 को रिपोर्ट कमिश्नर को सौंप दी थी। बावजूद इसके डेढ़ वर्ष में सीएमपीएफओ ने कोई कार्रवाई नहीं की और एसबीआइ आज भी प्रतिमाह एक करोड़ से अधिक की रकम काट रहा है।
एक ही बैंक को सभी खाते देने की अनुशंसा :
मजेदार बात यह कि डेढ़ वर्ष पूर्व ही यह जानकारी मिलने के बावजूद कि एसबीआइ डिस्बर्समेंट चार्ज के रूप में भारी कटौती कर रहा है, सीएमपीएफओ प्रबंधन सभी पेंशन मद की सभी रकम उसी बैंक में जमा करना चाहती थी। प्रबंधन एसबीआइ को अपना एकमात्र बैंकर बनाना चाहती थी। हालांकि बोर्ड ऑफ ट्रस्टी में शामिल तमाम ट्रेड यूनियन नेताओं के विरोध के कारण ऐसा न हो सका। फिलहाल दर्जन भर से अधिक बैंकों में सीएमपीएफओ की रकम जमा है।