कोरबा (आईपी न्यूज)। केन्द्र के सरकार के रसायन और उर्वरक मंत्री के लोकसभा में दिए गए एक सवाल के जवाब ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कोरबा खाद कारखाने के पुनरूद्धार पर ग्रहण लग चुका है। तमाम राजनीतिक कोशिशों के बावजूद कोरबा उर्वरक पािरयोजना को पुनर्जीवित नहीं किया जा सका। केन्द्र सरकार ने बंद हो चुके आठ में पांच खाद कारखानों के पुनरूद्धार पर काम शुरू किया है। इसमें कोरबा, दुर्गापुर, हल्दिया शामिल नहीं है। तलचर (ओड़िशा), रामागुंडम (तेलंगाना), गोरखपुर (उत्तरप्रदेश), सिंदरी (झारखंड), बरौनी (बिहार) संयंत्रों के पुनरूद्धार पर जोर शोर से काम हो रहा है। प्रत्येक उर्वरक संयंत्र की सालाना उत्पादन क्षमता 12.7 लाख टन होगी। इधर, कोरबा के बंद पड़े उर्वरक संयंत्र को अस्तित्व में लाने प्रयास किया गया था। 14 अप्रेल, 1973 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दर्री क्षेत्र में कोरबा उर्वरक परियोजना की नींव रखी थी। संयंत्र के लिए मशीनरी वगैरा भी पहुंच चुकी थी। बाद में यह प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में चले गया। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने देश के बंद पड़े आठ उर्वरक संयंत्रों में पूर्ण रूप से तालाबंदी की घोषणा कर दी थी। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाले यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में बंद उर्वरक संयंत्रों को पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया गया। इसको लेकर कुछ कागजी कार्यवाही भी हुई, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी। केन्द्रीय राज्यमंत्री रहे डा. चरणदास महंत ने भी प्रयास किया पर हुआ कुछ नहीं। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में कोरबा सांसद डा. बंशीलाल महतो ने खाद कारखान के मुद्दे को प्राथमिकता के साथ उठाया। दो- दो मर्तबा केन्द्रीय रसायन व उर्वरक मंत्रियों का दौरा भी हुआ। सांसद पांच सालों तक खाद कारखाने को शुरू कराने की बात करते रहे, लेकिन इस पर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया जा सका। अब केन्द्र सरकार की मंशा केवल पांच उर्वरक संयंत्रों को उत्पादन में लाने की दिख रही है। क्योंकि इन पर काम भी शुरू किया जा चुका है। लगता है बंद पड़े शेष तीन संयंत्र बंद ही रहेंगे।