दिल्ली-वाराणसी हाई स्पीड रेल कॉरिडोर की जमीनी पैमाइश कार्य हेलीकॉप्टर से शुरू किया गया है। इस सर्वे को रक्षा मंत्रालय ने हरी झंडी दी है। नेशनल हाई स्पीड रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनएचएसआरसीएल) द्वारा 13 दिसंबर से हवाई जमीनी सर्वे में लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग सर्वे (लिडार) तकनीक से शुरू किया गया है। यह सर्वे बुलेट ट्रेन के ट्रैक के लिए किया जा रहा है। ट्रैक का अधिकतर हिस्सा एलीवेटेड या अंडरग्राउंड ट्रैक का होगा। कॉरिडोर की कनेक्टिविटी कानपुर और लखनऊ शहरों से होगी। इसका मतलब शहरी भी इस ट्रैक पर चलने वाली बुलेट ट्रेनों के सफर का लुत्फ भविष्य में उठा सकेंगे।
तीन साल पहले रेल प्रशासन ने दिल्ली से वाराणसी 800 किमी की दूरी के लिए बुलेट ट्रेन चलाने का फैसला लिया था। रेलवे परंपरागत तरीके से सर्वे कराता तो इसमें सवा से डेढ़ साल का समय लगता पर लिडार तकनीक से हवाई सर्वे में बमुश्किल 12-15 सप्ताह ही लगेंगे। दिल्ली वाराणसी हाईस्पीड रेल कॉरिडोर की डिटेल प्रोजक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करने के लिए हेलीकॉप्टर पर लेजर सक्षम उपकरणों का उपयोग किया गया है। एक तरह से सर्वे की यह आधुनिक तकनीक है।
रेलवे अफसरों का तर्क है कि किसी ट्रैक को बिछाने में होने वाले जमीनी सर्वेक्षण महत्वबपूर्ण कड़ी होती है। इस सर्वे में आसपास इलाकों की सटीक जानकारी मिलती है। सटीक जानकारी के लिए ही लेजर डाटा, जीपीएस डाटा, फ्लाइट पैरामीटर और वास्तविक तस्वीरों का उपयोग होता है। इस रिपोर्ट के आधार पर ही प्रोजेक्ट की डिजाइन तैयार होती है। रेलवे अधिकारी ने बताया कि हवाई सर्वे में घनी आबादी वाले शहरी और ग्रामीण इलाके, राजमार्ग, सड़क, घाट, नदियां, हरे-भरे खेत और जंगल बाधक नहीं बनते हैं। परंपरागत सर्वे में ये सभी चीजें बाधक रहती है।
इस हाई स्पीड रेल कॉरिडोर से तब दिल्ली से वाराणसी लगभग 800 किमी. का सफर बमुश्किल में 3 घंटे का होगा। भारतीय रेल में लिडार तकनीक का पहली बार इस्तेमाल इसकी सटीकता की वजह से मुंबई-अहमदाबाद हाई-स्पीड रेल कॉरिडोर में किया गया था। इस तकनीक के सर्वे में बमुश्किल 12 सप्ताह का समय लगा, जबकि इस ट्रैक का पारंपरिक तरीकों से सर्वे किया जाता तो सवा साल का समय लगता। अब इस तकनीक का उपयोग दिल्ली-वाराणसी हाईस्पीड रेल कॉरिडोर के सर्वे में किया जा रहा है। इसका प्राथमिक हवाई सर्वे हो भी चुका है।