दिलचस्प बात ये है कि अभी तक सरकार की रियाटर करने वाली घोषणा को किसी भी कर्मचारी ने कोर्ट में चैलेंज नहीं किया है। दोनों निगमों में कुल डेढ़ लाख कर्मचारी (एक लाख 53 हज़ार) काम करते हैं।

अक्टूबर 2019 में जबसे वीआरएस स्कीम की घोषणा हुई है, बीएसएनएल के आधे कर्मचारियों ने नौकरी छोड़ने का विकल्प चुना।

जबकि एमटीएनएल के 18,000 कर्मचारियों में से 16,400 ने वीआरएस को चुना है, यानी 80 प्रतिशत।

दूरसंचार विभाग के एक अधिकारी के हवाले से अख़बार ने बताया है कि दोनों निगमों का खर्च 1,300 करोड़ रुपये है, जोकि 650 करोड़ रुपये पर आ जाएगा। एक अधिकारी के अनुसार बीएसएनएल के जिन कर्मचारियों ने वीआरएस के तहत रिटायरमेन्ट मांगी है उनमें से अधिकतर की उम्र 55 से 60 साल के बीच है।

उल्लेखनीय है कि एनडीए की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने इन सरकारी टेलीफ़ोन कंपनियों को निगम बनाया था, अब मोदी सरकार उन्हें बेच रही है। यही कारण है कि जब 41 ऑर्डनेंस फ़ैक्टरियों और सात रेलवे कारखानों को जब मोदी सरकार ने निगम बनाने का प्रस्ताव दिया तो कर्मचारियों ने जमकर विरोध किया।

इसके बावजूद सरकार ने एलआईसी की हिस्सेदारी बेचने के साथ ही एयर इंडिया को 100 प्रतिशत बेच देने का फैसला ले लिया है।

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