स्क्रीप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोध को नेचर मेडिसिन जर्नल के ताजा अंक में प्रकाशित किया गया है। इस शोध को अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ, ब्रिटेन के वेलकम ट्रस्ट, यूरोपीय रिसर्च काउंसिल तथा आस्ट्रेलियन लौरेट काउंसिल ने वित्तीय मदद दी है तथा आधा दर्जन संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल हुए हैं।
चीन ने जीनोम सिक्वेंसिग की
शोध पत्र के अनुसार चीन ने कोविड-19 की पहचान के बाद तुरंत इसकी जिनोम सिक्वेंसिग कर दी थी और आंकड़ों को सार्वजनिक किया था। कोविड-19 के जिनोम से वैज्ञानिकों ने इसकी उत्पति और विकास को लेकर शोध किया। वैज्ञानिकों ने वायरस की संरचना का गहन अध्ययन किया। इसमें पाए जाने वाले स्पाइक प्रोटीन के जेनेटिक टेम्पलेट का विश्लेषण किया। इसके भीतर रिसिप्टर बाइंडिंग डोमेन (आरबीडी) की संरचना का भी अध्ययन किया। आरबीडी वायरस का वह भाग होता है, जो मानव कोशिका से चिपक जाता है। यह रक्तचाप को नियंत्रित करने वाले जीन एसीई-2 पर हमला करता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि स्पाइक प्रोटीन और आरबीडी की संरचना से स्पष्ट होता है कि यह जेनेटिक इंजीनियरिंग से बनाया गया नहीं है बल्कि प्राकृतिक रूप से हुए बदलावों का नतीजा है।
शोध के अनुसार वायरस की बैकबोन की संरचना से भी इसकी प्राकृतिक उत्पत्ति की पुष्टि होती है। कोविड-19 की बैकबोन की संरचना कोरोना या किसी अन्य वायरस के मौजूदा बैकबोन के स्वरूप से नहीं मिलती है। बल्कि यह नई है। यदि किसी वायरस को लैब में जेनेटिक इंजीनियरिंग से तैयार किया जाता है तो उसकी बैकबोन मौजूदा वायरस से लेकर बनानी पड़ती है।
स्क्रीप्स इंस्टीट्यूट के एसोसिएट प्रोफेसर क्रिस्टीन एंडरसन ने कहा कि उपरोक्त दो कारण यह साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि कोविड-19 लैब में नहीं बना बल्कि प्राकृतिक रूप से इसकी क्रमागत उन्नति हुई है।
कहां से आया?
इस शोध में वैज्ञानिकों ने यह जानने की कोशिश की कि आखिर यह मानव में कैसे पहुंचा। इस पर दो तर्क हैं। एक यह कि पुराना कोरोना वायरस बदले स्वरूप में पशु में गया और उसके बाद इंसान में गया। दूसरा विचार यह है कि यह नया वायरस है और चमगादड़ से किसी अन्य में गया और वहां से मानव में आया। वैज्ञानिकों ने सीधे चमगादड़ से इंसान में आने की संभावना से असहमति जाहिर की है।