नई दिल्ली/ सहारनपुर: विश्व विख्यात इस्लामिक शिक्षण संस्थान और देवबंदी विचारधारा के प्रमुख केंद्र दारुल उलूम देवबंद ने ईद- उल- अज़हा पर की जाने वाली क़ुरबानी के सम्बन्ध में मुसलमानों के लिए एक फतवे के द्वारा गाइड लाइन जारी की है।
कुरबानी को लेकर दारुल उलूम देवबंद के मुफ़्तियों की खंडपीठ द्वारा जारी फतवे में दो टूक कहा है की क़ुरबानी की इबादत सिर्फ जानवर ज़िबह करना नहीं बल्कि शियार ए इस्लाम (इस्लाम की निशानी) में से है। इसलिए हर साल की तरह इस साल भी क़ुरबानी का एहतेमाम (प्रबन्ध) करना लाज़िम है। इसमें गफ़लत बरतना इस्लाम और एहले इस्लाम के लिए नुकसानदेह है।
दारुल उलूम देवबन्द के कार्यवाहक मोहतमिम मौलाना अब्दुल खालिक मद्रासी द्वारा पूछे गए लिखित सवाल के जवाब में दारुल उलूम के मुफ़्तियों की खण्डपीठ ने कहा की जैसे नमाज़ पढ़ने से रोज़ा और रोज़ा रखने से नमाज़ का फ़र्ज़ अदा नहीं होता। इसी तरह अगर कोई शख्स क़ुरबानी करने के बजाए यह चाहे की वह जानवर या उसकी कीमत सदक़ा कर दे तो उसकी क़ुरबानी अदा नहीं होगी और इबादत छोड़ने का गुनहगार होगा। लिहाज़ा जिन मुसलमानों पर क़ुरबानी वाजिब है उनके लिए हर साल की तरह इस साल भी क़ुरबानी का एहतेमाम करना लाज़िम और ज़रूरी है।
मुफ़्तियों ने कहा की ‘वुसअत’ (माली हैसियत बेहतर) होने के बावजूद भी क़ुरबानी न करने वालों पर रसूल ए पाक मोहम्मद साहब ने सख्त नाराज़गी का इज़हार किया है। हदीस में है की जो शख्स क़ुरबानी की हैसियत रखे और क़ुरबानी न करे वह हमारी ईदगाह में न आए। इसलिए मुसलमानों को क़ुरबानी के दिनों में क़ुरबानी पूरे एहतेमाम और खुशदिली के साथ करनी चाहिए।
फतवे में दी गई गाइड लाइन :
● क़ुरबानी के दिनों में साफ सफाई का खास ध्यान रखा जाए।
● क़ुरबानी के बाद बचे हुए अवशेष को किसी उचित जगह दबा दिया जाए।
● सड़को और सार्वजनिक स्थानों पर क़ुरबानी के अवशेष हरगिज़ न फेंके जाए।
● क़ुरबानी का गोश्त तीन हिस्सों में कर लिया जाए, एक हिस्सा अपने लिए, एक हिस्सा रिश्तेदारों के लिए और एक हिस्सा असहाय व ग़रीबों में बांट दिया जाए।
● क़ुरबानी से पहले जानवर के खाने पीने का खास ध्यान रखें और ज़िबह करते वक़्त हर वो तरीक़ा इस्तेमाल करें जिससे जानवर को कम से कम तकलीफ हो।
● अच्छे से अच्छा जानवर क़ुरबान करने की कोशिश की जाए, बीमार और ऐबदार जानवर ज़िबह न करें।