पिछले तीन महीनों के लॉकडाउन के दौरान पूरे उत्तर प्रदेश से पत्रकारों के उत्पीड़न की असंख्य घटनाएं सामने आई हैं। एक संस्था द्वारा जुटाई गई जानकारी के अनुसार लॉकडाउन के दौरान 55 पत्रकारों के विरुद्ध मुकदमा लिखा गया और कइयों को जेल भेज दिया गया है।

मुजफ्फरनगर के एक अखबार के संपादक वसीम अहमद अपने साथ हुई घटना को बताते हुए कहते हैं, “रिपोर्टिंग के लिए हालत बिल्कुल साजगार नहीं हैं। लॉकडाउन के दौरान आम आदमी सड़क पर घूमता मिल गया तो उसे डांटकर घर भेज दिया जाता, मगर पत्रकार को सीधे थाने भेज दिया जाता था और और उसके तमाम कागज देखे जा रहे थे।”

उन्होंने कहा, “आज एक सिपाही और दरोगा भी पत्रकार का आईडी कार्ड मांग रहे हैं, जोकि बेहद अपमानित करने वाला है। कुछ सरकारी अफसर विशेष पत्रकारों के प्रति दुर्भावना से भरे हुए हैं। एक विशेष शैली के पत्रकारों को अफसरशाही बगलगीर रखती है। जनता की बात लिखने वाले पत्रकार आंखों को नहीं सुहा रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान मुझे पुलिस के एक दरोगा ने अपमानित किया और रिपोर्टिंग करने से रोक दिया। मैंने उच्चाधिकारियों से शिकायत की और पत्रकार इकट्ठा हुए तो दरोगा को समझाकर बिना किसी कार्रवाई के जाने दिया गया।”

उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के उत्पीड़न का सबसे सनसनीखेज मामला पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की रिपोर्टिंग करने वाली दिल्ली की पत्रकार सुप्रिया शर्मा का है। वह देशभर में लॉकडाउन के दौरान हुई परेशानियों पर रिपोर्टिंग करना चाहती थी और उन्हें लगा कि इसे समझने के लिए देश के प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र से बेहतर कुछ और नहीं हो सकता। सुप्रिया वहां जून के पहले सप्ताह तक रहीं और उन्होंने 8 ग्राउंड रिपोर्ट लिखी।

इन रिपोर्ट्स में उन्होंने विविधताओं के आधार पर लोगों की समस्याओं को उजागर किया। इसमें मंदिर के पुजारी, फूल बेचने वाले, बुनकर, महिलाएं, मजदूर, बच्चों और समाज के अलग-अलग वर्ग से उन्होंने बातचीत की। दिल्ली में रहने वाली सुप्रिया सातवें दिन प्रधानमंत्री मोदी के गोद लिए हुए गांव डुमरी पहुंचीं और वहां के लोगों से बातचीत की। उन्होंने गांव के लोगों की तकलीफ को लिखा, जिसमें उन्होंने एक महिला माला देवी से बातचीत का वर्णन किया। रिपोर्ट के मुताबिक महिला ने उन्हें बताया कि “लॉकडाउन के दौरान वो चाय और रोटी खाकर सो रही थी और कई बार भूखी ही सो गई।”

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