धनबाद। कॉमर्शियल कोल माइनिंग के लिए एक- दो माह में कई ऑक्शन हो सकते हैं। नए वित्तीय वर्ष में विदेशी पूंजी और तकनीक का कोल सेक्टर में प्रभाव दिखेगा। बड़ी संख्या में कोल ब्लॉक के टेंडर संभव हैं। कह सकते हैं कि पहली बार भारत अपने बड़े कोल भंडार का लाभ उठाने की तैयारी में है। यह संकेत धनबाद में कोल इंडिया से जुड़े कई विशेषज्ञों ने दी। धनबाद में बीसीसीएल और इम्मा की ओर से 10-11 को आयोजित दो दिनी सेमिनार में कोल सेक्टर से जुड़े कई विशेषज्ञ शामिल हुए थे। विशेषज्ञों ने बातचीत में कई संकेत दिए।
बताया गया कि एक साल पहले केंद्र ने कॉमर्शियल माइनिंग को मंजूरी दी थी। कॉमर्शियल माइनिंग को मंजूरी के बाद बावजूद कोल ब्लॉक में विदेशी कंपनियों ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। वजह खनन से संबंधित सख्त प्रावधान हैं। अब सरकार ने उन प्रावधानों को संशोधित करने का निर्णय लिया है। फटाफट मंजूरी मिलेगी। सालों प्रस्ताव नहीं लटकेंगे, इसलिए विदेशी कंपनियां कोल सेक्टर में निवेश करेंगी।
विशेषज्ञों ने बताया कि विदेशों में, अमेरिका आदि में कोयले का उपयोग काफी कम हो गया है। बड़ी-बड़ी खनन कंपनियां अन्य क्षेत्रों में संभावनाएं तलाश रही हैं। ऐसे में उन कंपनियों के लिए भारतीय कोयला क्षेत्र उम्मीद की किरण है। भारत को भी अपने नए पावर प्लांट, स्टील सेक्टर आदि के लिए कोयले की जरूरत है। बिना विदेशी पूजी और तकनीक के कम लागत में अधिक कोयला उत्पादन संभव नहीं है। इसलिए नए वित्तीय वर्ष में कोल सेक्टर में तेजी का रुख देखने को मिलेगा।
ये हो सकते हैं संभावित बदलाव
– अब तक कोल इंडिया का एकाधिकार रहा है, विदेशी कंपनियों के आने से प्रतियोगिता बढ़ेगी
– ज्यादा उत्पादन से उत्पादन लागत कम होगी, आपूर्ति भी बढ़ेगी इससे कोयले की कीमत कम होगी
– कोयला लंबे समय तक ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्रोत नहीं रहेगा, इसलिए बड़े भंडार का जितना दोहन हो सके। वह भारत के हित में है
– पर्यावरण संरक्षण बड़ी चुनौती होगी। दो सौ से अधिक कोल ब्लॉक हैं, आधे में भी खनन शुरू हुआ तो पर्यावरण के लिए काम करना बड़ी चुनौती होगी
तेल के बाद कोयला का सबसे ज्यादा आयात
-पिछले साल 1.75 लाख करोड़ रुपये मूल्य के 23.5 करोड़ टन कोयले का आयात हुआ
– वहीं भारत ने पिछले साल आठ लाख करोड़ का तेल आयात किया
– 10 करोड़ टन से अधिक सिर्फ कोकिंग कोल का आयात किया गया। कोयले की कमी के कारण कई पावर प्रोजेक्ट समय के साथ शुरू नहीं हो सके।