नई दिल्ली। कोरोना संकट के बाद पैदा हुई आर्थिक चुनौतियों को लेकर देश के सबसे बड़े श्रमिक संगठन भारतीय मज़दूर संघ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है, जिसमें संगठन ने अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र में आ रही समस्याओं का तथ्यात्कम ब्योरा देते हुए समाधान के विकल्प भी बताए हैंं। प्रस्तुत है पत्र में उल्लेखित बातें :
बीएमएस ने केंद्र सरकार से कहा है कि अर्थव्यवस्था पर लॉकडाउन के पड़ने वाले प्रभाव को समझने के लिए हमें आर्थिक गतिविधियों को दो प्रमुख क्षेत्रों में वर्गीकृत करना होगा. पहली वह जो दैनिक जीवन की आवश्यकताओं से जुड़ी हुई हैं, जिन पर लॉकडाउन का आंशिक असर हुआ है. दूसरी वह जो इस दौरान पूरी तरह बंद रही हैं. इसलिए एक तरफ़ यह दोनों ही क्षेत्र लॉकडाउन (पूर्णबंदी) से प्रभावित हुए हैं वहीं इनकी चुनौतियों के समाधान के उपाय भी अलग-अलग करने होंगे. यह प्रमुख आर्थिक क्षेत्र इस प्रकार हैं.
फार्मास्यूटिकल्स अर्थात दवाओं से जुड़े उद्योग:
हालांकि लॉकडाउन की परिधि से इस क्षेत्र को मुक्त रखा गया है, लेकिन कच्चे माल की आपूर्ति कम होने, श्रम की अनुपलब्धता, आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) की रुकावट की वजह से यह क्षेत्र विषम परिस्थितियों से गुजर रहा है. इस क्षेत्र के बड़े उद्योग व यूनिट भले ही इन चुनौतियों का सामना कर लें लेकिन छोटे उद्योगों का तो अस्तित्व ही खतरे में है.
ऊर्जा क्षेत्र:
बिजली अथवा ऊर्जा क्षेत्र को भी लॉकडाउन के प्रतिबंधों की सीमा से बाहर रखा गया है. लेकिन बड़ी संख्या में घरेलू और व्यावसायिक ईकाइयां बंद होने के कारण मांग घट गई है और राजस्व के मोर्चे पर इस क्षेत्र को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. माल की ढुलाई से जुड़ी अड़चन सामने आने से थर्मल पावर प्लांट का प्रदर्शन प्रभावित हुआ है.
टेलीकॉम नहीं रहेगा अछूता:
लॉकडाउन के दौरान 24 घंटे सक्रिय रहा यह सेक्टर कोरोना की आपदा से अछूता रहेगा, ऐसा कहना न्यायसंगत नहीं होगा. जैसे-जैसे लोगों के रोजगार, उनकी आमदनी पर संकट बढ़ेगा उसका सीधा असर इस सेक्टर पर पड़ेगा.
भारतीय अर्थव्यस्था का आधार कृषि भी प्रभावित:
यह सबसे प्रमुख क्षेत्र है, क्योंकि देश की आधी आबादी कृषि क्षेत्र पर निर्भर करती है. हालांकि यह क्षेत्र भी लॉकडाउन के प्रतिबंधों से मुक्त रहा है. लेकिन बावजूद इसके कोरोना की वैश्विक आपदा भारतीय अर्थव्यस्था के आधार कहे जाने वाले इस क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित करेगा. फलों का निर्यात पूरी तरह बंद है, मांस और मछली से जुड़े कुकुक्कटपालन की गतिविधियों के विषय में किए गए नकारात्मक अभियान का असर भी इस क्षेत्र पर पड़ रहा है. कृषि क्षेत्र को श्रम की अनुपलब्धता से अगले कई महीनों तक जूझना पड़ सकता है. रवि मौसम का कृषि कार्य शुरू होने वाला है, लेकिन आवागमन में प्रतिबंध और आशंकाओं ने यहां नई समस्याओं को जन्म दिया है.
कंज्यूमर एंड रिटेल सेक्टर का हाल;
कंज्यूमर एवं रिटेल सेक्टर के ऐसे उत्पाद जो non-essential goods की श्रेणी में आते हैं, वह लॉकडाउन के दंश से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. लॉकडाउन समाप्त होने के बाद भी उपभोक्ताओं की प्राथमिकता, क्रय शक्ति व खरीददारी को लेकर व्यवहार में आने वाला बदलाव इस क्षेत्र में नई चुनौतियों को जन्म देगा. यानी मांग पर बुरा असर पड़ना तय है. एक बड़ा वर्ग ई-कॉमर्स की ओर जाएगा. आपूर्ति और निर्माण की बाधाओं को दूर करना होगा.
ऑयल एंड गैस के लिए अवसर भी लेकिन एविएशन फ्यूल पर पड़ेगा असर:
इस सेक्टर के अधिकांश उत्पादों को लॉकडाउन की अवधि में लगाए गए प्रतिबंधों से बाहर रखा गया था. लेकिन एविएशन गतिविधियों में जिस तरह का प्रतिबंध लगा है उससे निकट भविष्य में भी एविएशन फ्यूल सेक्टर बुरी तरह प्रभावित रहेगा. कच्चे तेल की कीमतें वैश्विक स्तर पर काफी नीचे आ रही हैं. ऐसे में भारत के पास अपना ऑयल इम्पोर्ट का बिल कम करने का एक अवसर भी है.
ट्रांसपोर्ट एवं लॉजिस्टिक को मदद की दरकार:
दैनिक जीवन के उपयोग की वस्तुओं की परिवहन गतिविधियां लॉकडाउन की वजह से बिल्कुल ठप हैं. कच्चे तेल के कीमतों में गिरावट इस सेक्टर के लिए एक उम्मीद है. जिससे कि इस सेक्टर में तेजी लौटने की संभावना है. इस सेक्टर से जुड़े दिहाड़ी श्रमिकों की मुसीबत लेकिन कैसे कम होगी, इसके उपाय सोचने होंगे, क्योंकि यह श्रमिक सामाजिक सुरक्षा के किसी दायरे में भी नहीं आते हैं.
बैंकिंग एवं फाइनेंसिंयल सेक्टर में फूंकनी होगी जान:
भविष्य में नकदी (तरलता) का संकट सामने आने की आशंका जताई जा रही है, जिसकी कई वजह हैं. ऋण की अदायगी पर प्रतिबंध के साथ कर्ज पर ब्याज दर निचले स्तर पर होने से बैंकों का मुनाफा कम होगा. इस महामारी से निपटने के बाद भी NPA और असेट् मैनेजमेंट एक बड़ी समस्या के रूप में उभरना तय है. वैसे भी अर्थव्यवस्था पर समग्र रूप से पड़ने वाले प्रभाव का सीधा असर बैंकिंग सेक्टर पर पड़ता है. मांग कम होने से सबसे अधिक परेशानी यहां देखने को मिलेगी. चूंकि डिजिटल लेनदेन बढ़ेगा इसलिए बैंक मानव संसाधन में कटौती कर आर्टिफिशियल इटेंलिंजेंस की ओर बढ़ेगे.
सूक्ष्म, लघु, एवं मध्यम उद्योग
भारतीय अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख क्षेत्र है. 30 फीसदी जीडीपी में हिस्सेदारी के साथ 10 करोड़ से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार इस क्षेत्र में मिला हुआ है. KPMG की रिपोर्ट के मुताबिक 7 करोड़ 50 लाख MSME बंद होने के कगार पर रहेंगी. इनमें काम करने वाले अस्थायी कर्मचारियों को इसका दंश झेलना पड़ेगा.
मेटल और माइनिंग (खनन) क्षेत्र में श्रमिकों के पलायन से बढ़ी परेशानी :
श्रमिकों की अधिकता वाले इस सेक्टर में लंबे समय तक लॉकडाउन की वजह से पूंजी प्रवाह (कैपिटल इन्फ्यूज़न), डिमांड-सप्लाई ध्वस्त होने का खतरा है. इस क्षेत्र में कार्य करने वाले मेहनतकश मज़दूर आज भी सामाजिक सुरक्षा से वंचित हैं. कोकिंग कोल समेत कई सेक्टर में लाखों श्रमिक कार्यकरते हैं. उनके बेरोजगार होने से इस सेक्टर से जुड़े माइनिंग और अन्य मेटल के दूसरे व्यवसाय भी चपेट में आएंगे.
क्या हो सकता है समाधान और राहत उपाय:
कुछ आर्थिक कदम और राहत के उपाय ऐसे किए जाएं जो सभी सेक्टर को समग्र रूप से प्रभावित करें. उसके बाद कुछ क्षेत्र विशेष की चुनौतियों व समस्याओं को ध्यान में रखकर कदम उठाने होंगे.
कार्यशील बल को राहत देने की प्राथमिकता :
छोटे और मध्यम उद्योग : सकल घरेलू उत्पाद में 32 फीसदी की हिस्सेदारी रखते हैं. लगभग 12 करोड़ लोगों को यहां रोजगार मिला हुआ है. एक तरह से कृषि के बाद सर्वाधिक रोजगार इस क्षेत्र में हैं. इन्हें तीन साल की मार्केट गारंटी के प्रावधान किए जाएं, सरकार एमएसएमई से ही खरीदी को अनिवार्यता दे.
कपड़ा और हथकरघा उद्योग : जीडीपी में 20 फीसदी का योगदान करता है. लगभग 4 करोड़ 50 लाख लोगों की आजीविका इस सेक्टर पर निर्भर करती है. सरकार इनके लिए कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के साथ गारंटी स्कीम लेकर आए.
17.6 प्रतिशत के साथ जीडीपी में योगदान करने वाले परिवहन को पटरी पर लाकर ही अर्थव्यवस्था में जान फूंकने का काम हो सकता है. रेलवे सरकार के लिए हमेशा संकटमोचक रहा है. उसे मज़बूती देने के प्रयास अन्य क्षेत्रों में भी सकारात्मक परिणाम लेकर आएंगे.
राहत पैकेज का फायदा जमीन पर दिखना चाहिए:
इसके अंतर्गत आर्थिक पैकेज के जरिए लॉकडाउन से इकोनॉमी पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सकता है. इन वर्गों के आधार पर राहत पहुंचाने का प्रयास किया जा सकता है.
वेज़ सब्सिडी, टैक्स हॉलीडे (कर में छूट या करावकाश), जीएसटी से जुड़ी लंबित देनदारी, लोन मोरेटोरियम (ऋण अधिस्थगन) की अवधि बढ़ाई जाए. करों को न्यायसंगत बनाएं जैसे जीएसटी स्लैब को कम किया जा सकता है.
अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना प्राथमिकता हो:
अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों को सिर्फ खपत बढ़ाकर पटरी पर लाया जा सकता है: कंज्यूमर और रिटेल (खुदरा) क्षेत्र के साथ कृषि क्षेत्र में भी मांग बढ़ने के साथ तेजी लाई जा सकती है. यही तभी संभव होगा जब लोगों के हाथ में पैसे हों, लोगों वस्तुओं को खरीदने के लिए प्रोत्साहित हों. इसके लिए सरकार को मनरेगा जैसी सामाजिक कल्याण की योजनाओं पर खर्च बढ़ाना होगा. वहीं अन्य क्षेत्रों के पुनर्थान के लिए एक बड़ी पूंजी की आवश्यकता होगी. वह नज़रअंदाज नहीं किए जा सकते, लेकिन प्राथमिकता के आधार पर आसान उपायों वाले क्षेत्र ही होने चाहिए.
इकोनॉमी में व्यवहारगत बदलावों का अध्ययन करें:
अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्र उपभोक्ताओं की सोच में आने वाले बदलाव के कारण लंबे समय तक प्रभावित होंगे. कुक्कटपालन के साथ मांस बिक्री में आई गिरावट लंबे समय तक जारी रहेगी. लेकिन शाकाहारी खान-पान का प्रचलन बढ़ेगा, प्रोटीन के नए स्रोत पर बढ़ने वाली निर्भरता व स्वच्छता के प्रति जागरुकता एक आर्थिक अवसर बन सकती है. ऐसे में सरकार को चाहिए कि उपभोक्ताओं में आने वाले व्यवहारगत बदलाव का अध्ययन कर इकोनॉमी में जान फूंकने के आर्थिक उपाय किए जाएं.
निजी क्षेत्र की कमजोरियां सामने आईं, सरकार लिए यह संदेश है:
कोरोना संकट से पैदा हुए आर्थिक हालात सरकार को एक संदेश भी दे रहे हैं. लॉकडाउन के दौरान प्राइवेट सेक्टर की कमजोरियां एक बार फिर उजागर हो गई हैं. आर्थिक चुनौतियों के इस दौर में प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले श्रमिक न सिर्फ रोजगार विहीन हो गए हैं बल्कि उनकी सुध लेने वाला भी कोई नहीं है. आज सरकार को ऐसे लोगों की चिंता करनी चाहिए. निजी उद्योगों को बढ़ावा देते समय सार्वजनिक पूंजी का भी विकास करना होगा. संकट के किसी भी दौर में सार्वजनिक उपक्रम ही देश के साथ खड़े नज़र आते हैं. यानी निजी उद्योगों को मजबूती प्रदान करने के साथ सार्वजनिक क्षेत्र को भी विस्तार देना होगा.
मानव संसाधन का करें विकास:
कोरोना की वैश्विक आपदा ने हमें शिक्षा, प्रशिक्षण और उसके बेहतर स्वास्थ्य की व्यवस्था के जरिए प्रशिक्षित मानव संसाधन तैयार करने का संदेश दिया है. उनके सामाजिक सुरक्षा के लिए किए जा रहे प्रयासों की गति तेज़ करनी होगी. विश्व के कई ऐसे देश जिन्होंने इन मोर्चों पर काम किया है, वह आज आर्थिक चुनौतियों के सामने कहीं अधिक मजबूत स्थिति में खड़े हैं.
श्रमिक और दिहाड़ी मज़दूरों के लिए कठिन समय:
हर दिन परिश्रम कर आजीविका अर्जित करने वाले दिहाड़ी श्रमिकों के लिए यह सबसे कठिन दौर है. इसी तरह अपनी दुकान और रोजगार संचालित करने वालों के लिए संकट की परिस्थितियां पैदा हुई हैं. ख़ास तौर पर कस्बाई और ग्रामीण इलाकों में समस्या अधिक विकराल है. तत्काल उन तक नकद आर्थिक सहायता पहुंचानी होगी. उत्तर प्रदेश सरकार ने इस दिशा में प्रशंसनीय कार्य किया है.
सप्लाई चेन को दुरुस्त कर, श्रमिकों की आवाजाही शुरू करें :
आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावी बनाने के लिए कदम उठाने के साथ ऐसे प्रवासी श्रमिक जो लॉकडाउन की वजह से अपने घरों की ओर वापस पलायन कर गए हैं, उन्हें दोबारा आर्थिक गतिविधियों से जोड़ने के लिए प्रयास करना होगा. इसके लिए श्रम मंत्रालय की ओर से एक डाटा बैंक तैयार किया जा रहा है, यह काफी मददगार होगा. अब वक्त आ गया है कि केंद्र सरकार प्रवासी मजदूरों के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाए.
घर से काम की सुविधा अवसर और चुनौतियां भी लेकर आएगी
सोशल डिस्टेंसिंग को प्रोत्साहित करने के लिए कई सरकारी विभागों और कंपनियों ने वर्क फ्रॉम होम (घर से कार्य) को प्रोत्साहित किया है. इससे कार्यस्थल को नया आयाम मिल रहा है. लेकिन इसके साथ रोजगार के क्षेत्र में नई चुनौतियां भी पैदा होंगी. एक ऑफिस सिर्फ कर्मचारियों और नियोक्ता के बैठने का स्थान नहीं होता बल्कि यह कई दूसरी आर्थिक गतिविधियों को समाहित किए होता है. जैसे वहां आने-जाने वालों के लिए परिवहन, उसके आसपास दुकान, कार्यालय का रखरखाव आदि. इन सभी गतिविधियों से लोगों को रोजगार मिलता है. यानी साफ है कि घर से कार्य की व्यवस्था नए संकट लेकर भी आएगी. यह सामाजिक सुरक्षा को लेकर किए जा रहे प्रयासों को भी कमजोर करेगा. कार्यस्थल पर जब कर्मचारी ही नहीं रहेंगे तो ईएसआई और ईपीएफ योजनाओं का मकसद पूरा नहीं होगा.