कोरबा (IP News). कोल इंडिया लिमिटेड ने अपने कोयला उत्पादन को बढ़ाने और आगामी वर्षों में देश की कोयले की आयात निर्भरता को कम करने के लिए एक परिवर्तनकारी योजना तैयार की है। इस दिशा मे प्रमुख कदम के रूप में कोल इंडिया लिमिटेड ने अपनी खदानों में मईन डेवलपर एवं ऑपेरेटर्स (एम.डी.ओ) संलग्न करने की योजना तैयार की है।

इस प्रक्रिया में कोल इंडिया लिमिटेड ने कुल 15 ग्रीनफील्ड परियोजनाओं को चिन्हित किया है, जो एमडीओ मॉडल के माध्यम से संचालित की जाएंगी। इन में 12 खुली खदानें और 3 भूमिगत खदानें हैं। इन खदानों की कुल क्षमता 168 मिलियन टन प्रति वर्ष है । इस में खुली खदानों की कुल क्षमता 162 मिलियन टन प्रति वर्ष है, भूमिगत खदानों की कुल क्षमता लगभग 6 मिलियन टन प्रति वर्ष है। इस अनुबंध की अवधि 25 साल या खदान का जीवनकाल, में से जो भी कम हो, की होगी।

खुली वैश्विक निविदाओं के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त एम.डी.ओ को शामिल किया जाएगा। यह एम.डी.ओ अनुमोदित खनन योजना के अनुसार खनन कर कोल इंडिया लिमिटेड की सहायक कंपनियों को कोयला उपलब्ध कराएंगे। सीआईएल के बोर्ड ने हाल ही में एमडीओ से अनुबंध हेतू निविदा दस्तावेज को स्वीकृति दी है।

सीआईएल वित्तीय वर्ष 2021-22 तक औपचारिकताएं पूर्ण करने की योजना बना रहा है, ताकि वित्तीय वर्ष 2023-24 तक एक बिलियन टन का कोयला उत्पादन लक्ष्य प्राप्त किया जा सके।

महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड, साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड एवं सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड इस योजना में प्रमुखता से सहभागी होंग। महानदी कोलफील्ड्स से 65-5 मिलियन टन प्रति वर्ष, एसईसीएल से 52-4 मिलियन टन प्रति वर्ष एवं सीसीएल से 45 मिलियन टन प्रति वर्ष का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। साथ ही ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड का लक्ष्य 3 मिलियन टन प्रति वर्ष एवं नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड का लक्ष्य 2 मिलियन टन प्रति वर्ष तय किया गया है।

महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड के सैरमल ओपन कास्ट (40 एमटीवाई) एवं सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड के कोटरी-बसंतपुर पचमो (05 एमटीवाई) परियोजनाओं के लिए वर्ष 2019-20 में निविदा आमंत्रित की जा चुकी है। वही अन्य 5 परियोजनाओं, जिनकी क्षमता 68 एमटीवाई है के लिए चालू वित्तीय वर्ष में निविदा आमंत्रित की जाएंगी । शेष 8 परियोजनाओं के लिए निविदा वर्ष 2021-22 में आमंत्रित की जाएंगी।

एम.डी.ओ प्रणाली के माध्यम से खनन के क्षेत्र में नई तकनीक का समावेश होगा और उत्पादकता बढ़ेगी। भूमि अधिग्रहण, पर्यावरण स्वीकृति, आदि में तेजी आएगी, साथ ही राज्य एवं केंद्रीय पर्यावरण बोर्ड से समन्वय बेहतर होगा। कोयला उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त करने में यह प्रणाली निश्चिती सहायक सिद्ध होगी।

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