नई दिल्ली (आईपी न्यूज)। आईपी न्यूज। सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) और इंस्टीट्यूट ऑफ जेनेटिक्स एंड इंटीग्रेटेड बायोलॉजी (आईजीआईबी), कुछ अन्य संस्थानों के साथ मिलकर, नोवेल कोरोना वायरस के प्रसार का जीव विज्ञान, महामारी विज्ञान और रोग का प्रभाव समझने के लिए की डिजिटल और आणविक निगरानी के लिए काम कर रहे हैं।
इस भयानक नोवेल कोरोना वायरस से क्यों कुछ संक्रमित लोगों में लक्षण भी दिखाई नहीं देते हैं और केवल बीमारी छोड़ते हैं? क्यों कुछ लोग पीड़ित होते हैं और मौत के कगार पर पहुंच जाते हैं, जबकि कुछ अन्य वायरस के चंगुल से बाहर निकल आते हैं? क्या वायरस इतनी तेजी से परिवर्तित हो रहा है कि टीके और दवाओं के विकास की दिशा में हमारे प्रयास बेकार हो जाएंगे या यह परिवर्तन बहुत ही मामूली है? इस प्रकार के कई सवाल मौजूद हैं, जिनका जवाब दुनिया भर के वैज्ञानिक खोज रहे हैं।
नोवेल कोरोना वायरस की डिजिटल और आणविक निगरानी के साथ वैज्ञानिक अभी तक नहीं मालूम पहलुओं का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं। इस केंद्र को आईजीआईबी में स्थापित किया जाएगा, जहां पर सभी प्रयोगशाला, अनुसंधान केंद्र और अस्पताल, क्लाउड शेयरिंग के माध्यम से अपना डेटा साझा करेंगे।
इस निगरानी को तीन स्तरों पर किया जाएगारू वायरस, रोगी और रोगी की चिकित्सा प्रक्रिया। वायरस स्तर पर निगरानी, वायरस के जीनोम को संदर्भित करता है। इसके लिए, सीसीएमबी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि यह जीनोम अनुक्रमणों को उपलब्ध कराएगा। डॉ. राकेश मिश्रा, निदेशक, सीसीएमबी ने इंडिया साइंस वायर से कहा, “हम जीनोम अनुक्रमण और नमूना परीक्षण के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे। जैसा कि हम व्यापक परीक्षण कर रहे हैं, हम नमूनों के परिणामों को प्रदान कर सकते हैं जिसका उपयोग प्रसार, अलगाव और विभिन्न प्रकार की संबंधित जानकारियों को समझने के लिए किया जा सकता है।”
दूसरा हिस्सा रोगी डेटा से संबंधित है, जो नैदानिक नमूनों वाले रोगियों का विवरण है। नैदानिक पाठ्यक्रम विवरण, नैदानिक देखभाल डेटा या अस्पताल डेटा होगा, जो नतीजे निकलकर सामने आते हैं। कुछ रोगियों को वेंटिलेटर की आवश्यकता होती है, जबकि कुछ अपने आप ठीक होने में सक्षम होते हैं। कुछ रोगियों में जीवन के लिए खतरनाक साइटोकिन उपद्रव विकसित होता है, कई संक्रमण से आसानी से बचकर निकलने में सक्षम होते हैं। “इन सभी चीजों के लिए हम अखिल भारतीय स्तर पर राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के साथ काम कर रहे हैं और हम स्थानीय अस्पतालों के साथ भी काम कर रहे हैं।
हम देश भर के सभी अस्पतालों से पूछ रहे हैं जिससे पिछले हिस्से तक हमारी पहुंच ज्यादा से ज्यादा हो सके। हम एक एंड-टू-एंड नेटवर्क स्थापित करने की कोशिश करते हैं, जिसमें हम सभी चीजों के डेटा को इकट्ठा करते हैं”, डॉ. अनुराग अग्रवाल, निदेशक, आईजीआईबी ने कहा। परीक्षण डेटा का उपयोग करके, जो अलक्षणी संक्रमित लोगों और हल्के प्रभाव वाले लक्षण रखने वाले लोगों की पहचान करते हैं, इस अध्ययन में अस्पताल नेटवर्क के बाहर संक्रमित लोग भी शामिल किए जाएंगे। इस निगरानी में उस आबादी पर नजर रखी जा सकेगी, जहां पर फैलाव उग्र है और जिस आबादी में फैलाव को नियंत्रित किया गया है।
डॉ. अग्रवाल के अनुसार, सब कुछ खुले लेकिन गोपनीय प्रारूप में किया जाएगा। यह नीति के मामले में गोपनीय होगा जबकि सरकार के अनुसार पहुंच के पात्र किसी भी व्यक्ति के संदर्भ में खुला होगा। डेटा को किसी के द्वारा डाउनलोड नहीं किया जा सकेगा क्योंकि इसका कोई भी हिस्सा गोपनीय हो सकता है। हालांकि, सरकार में कोई भी अगर सही कारणों से आंकड़ों पर नजर रखना चाहता है, तो डेटा उपलब्ध कराया जाएगा और फिर इसमें निजता का स्तर दूसरा होगा।
डा. अग्रवाल ने कहा वायरल जीनोम को सार्वजनिक अमानतों में रखा जाएगाय अस्पताल के पाठ्यक्रम और कोई भी जानकारी को पूर्ण रूप से चिन्हित किया जाएगा। लेकिन हम केवल चिन्हित किए गए डेटा को ही प्राप्त करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि यह डेटा सरकार को उपलब्ध कराया जाएगा जिससे कि इसको हाल ही में सरकार द्वारा शुरू किए गए आरोग्य सेतु ऐप से जोड़ा जा सके। इसका उद्देश्य अधिकतम संख्या में लोगों तक लाभ पहुंचाने का है। किसी भी व्यक्ति का जो दिए गए कार्यक्षेत्र में डेटा का योगदान करने और इस प्रयास का हिस्सा बनने के लिए इच्छुक है, हमारी ओर से स्वागत है।