जिस प्रकार कभी जंगलों में भटकते महाराणा प्रताप को उनके भरोसेमंद भामाशाह ने अपनी जमा पूंजी समर्पित कर दी थी, उसी तरह से इस जाति के गरीब लोगों ने 51 हजार रुपये की जमा-पूंजी लॉकडाउन में अपने से ज्यादा जरूरतमंदों की मदद के नाम पर खर्च कर दी।
राजस्थान की इस घुमंतू जाति का बेहद समृद्ध इतिहास रहा है। जाति के लोग इतने स्वाभिमानी होते हैं कि कभी रास्ते में गिरी कीमती से कीमती चीज को भी नहीं उठाते।
दरअसल मामला बड़ा रोचक है। भीलवाड़ा के आजादनगर वार्ड 17 में इन दिनों सड़कों किनारे डेरा बनाकर गाड़ोलिया लोहार परिवार रहते हैं। लॉकडाउन के कारण इन गरीब परिवारों को राशन आदि देने के लिए कुछ स्वयंसेवी संगठनों के लोग पहुंचे थे। जब लोगों ने राशन देने की कोशिश की तो उन्होंने लेने से इन्कार कर दिया। परिवारों ने कहा कि उन्होंने खुद 51 हजार रुपये जुटाकर जरूरतमंदों को दो सौ पैकेट राशन बांटने की व्यवस्था की है। इसके पीछे परिवारों ने प्रधानमंत्री मोदी की अपील बताई।
लोहार परिवार की इन बातों ने स्वयंसेवी संगठनों के लोगों को चौंका दिया। इस बात की खबर मिलने पर हरिसेवा धाम के महामंडलेश्वर हंसराम उदासी ने गाड़ोलिया लोहारों की बस्ती पहुंचकर उन्हें सम्मानित किया। प्रधानमंत्री मोदी ने गुरुवार को इन परिवारों की कोशिशों की सराहना करते हुए अद्भुत कार्य बताया। बताया। उन्होंने ट्वीट कर कहा, “ विषम परिस्थितियों में गाड़ोलिया समाज द्वारा किए जा रहे ये नेक कार्य हर भारतवासी को प्रेरित करने वाले हैं।”
बैलगाड़ी पर चलती है जिंदगी
गाड़ोलिया लोहार जाति के लोग पहले राजस्थान के मेवाड़-मारवाड़ में पाए जाते थे। मगर अब पूरे प्रदेश में फैल गए हैं। ये घुमंतू जाति है। बैलगाड़ी इनकी शान है। हर परिवार के पास कुछ हो या न हो, लेकिन बैलगाड़ी जरूर होती है। या तो बैलगाड़ी में परिवार के लोग सोते हैं या फिर जमीन पर। इस जाति ने कभी पक्के मकान में नहीं रहने का संकल्प किया है। इसके पीछे रोचक कहानी बताई जाती है।
कहानी है कि महाराणा प्रताप जब मेवाड़ रियासत को बचाने के लिए मुगलों से युद्ध लड़ रहे थे तो गाड़ोलिया लोहारों ने सेना के लिए हथियार बनाकर दिए। लोहारों ने भी सेना में शामिल होकर मुगलों से लोहा लिया था। मगर मेवाड़ के मुगलों के अधीन हो जाने से लोहारों के दिल को बेहद ठेस पहुंची और उन्होंने उसी समय महाराणा प्रताप के सामने कसम खाई कि जब तक मेवाड़ आजाद नहीं होगा तब तक पक्के मकानों में नहीं रहेंगे और कभी एक जगह नहीं निवास करेंगे। तब से स्थितियां बदल गईं। मेवाड़ ही नहीं पूरा देश आजाद हो गया मगर आज भी जाति के लोग उस कसम को नहीं तोड़ रहे हैं।
बैलगाड़ी पर ही परिवारों की पूरी गृहस्थी का सामान लदा होता है। जगह-जगह पर डेरा लगाकर अस्थाई तौर पर रहते हैं और फिर नए स्थान के लिए कूच कर जाते हैं। बताया जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने कार्यकाल के दौरान इन परिवारों की कसम तोड़वाने की कोशिश की थी। उन्हें घुमंतू जीवनयापन छोड़कर स्थाई घरों में रहने के लिए मनाने की कोशिश की थी मगर वे नहीं माने। यह जाति इतनी स्वाभिमानी है कि जाति के लोग संकल्प लेते है कि वे कभी रास्ते में पड़ा कोई सामान नहीं उठाएंगे। जातियों के लोग पत्थरों और मिट्टी के बर्तनो में ही भोजन करते हैं। बैलगाड़ी में खाट उल्टी रखकर यात्रा करते हैं।