वाराणसी। बिजली कंपनियों के निजीकरण को लेकर देशव्यापी विरोध के बावजूद इस पर काम तेजी से जारी है। उत्तर प्रदेश सरकार अपनी 5 बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) में से एक पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम (पीयूवीवीएनएल) के निजीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया है। यह वितरण कंपनी पूर्वी उत्तर प्रदेश में बिजली आपूर्ति का नियंत्रण व प्रबंधन करती है, जिसके क्षेत्र में राजनीतिक रूप से 2 महत्त्वपूर्ण शहर आते हैं। पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के दायरे में आने वाले वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सांसद हैं, वहीं गोरखपुर राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का राजनीतिक कार्यक्षेत्र है।
बताया गया है कि बिजली विभाग ने पीयूवीएनएनएल की पेशकश की योजना तैयार कर ली है। उत्तर प्रदेश में वितरण कंपनी का नुकसान वित्तीय व परिचालन दोनों हिसाब से देश में सबसे ज्यादा है। उदय पोर्टल के मुताबिक मार्च 2020 तक राज्य की 5 वितरण कंपनियों का कुल शुद्ध नुकसान 819 करोड़ रुपये रहा है। राज्य का औसत सकल तकनीकी व वाणिज्यिक (एटीऐंडसी) नुकसान या दूसरे शब्दों ें कहें तो अपर्याप्त व्यवस्था के कारण बिजली आपूर्ति में होने वाला नुकसान 30 प्रतिशत था, जो राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। राज्य की 5 वितरण कंपनियों में सिर्फ कानपुर इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई कंपनी (केस्को) ही मुनाफे में है।
इस समय उत्तर प्रदेश के आगरा में निजी बिजली वितरण फ्रैंचाइजी है, जो टोरंट पावर के पास है। 2009 में केस्को को फ्रेंचाइजी मॉडल पर टोरंट को देने की पेशकश की गई थी। माना जा रहा था कि टोरंट बिलिंग, कनेक्शन और अतिरिक्त बुनियादी ढांचा बनाने का काम करेगी, जबकि केस्को उसकी मालिक बनी रहेगी। बहरहाल विपक्षी दलों, कर्मचारी संगठनों की ओर से बार बार विरोध प्रदर्शन के कारण केस्को ने इस मामले में हाथ नहीं डाला और यह सौदा 2015 में रद्द कर दिया गया।
फ्रैंचाइजी मॉडल के विपरीत वितरण कंपनियों के निजीकरण में निजी कारोबारी को मालिकाना दिया जाना शामिल होता है। कंपनी बिजली खरीद का प्रबंधन, बुनियादी ढांचा बनाने का काम, बिलिंग का प्रबंधन और संग्रह और हानि को कम करने के पहले से तय लक्ष्य पर पहुंचने की कवायद करती है। दिल्ली और मुंबई में निजी क्षेत्र की वितरण कंपनियां बिजली वितरण का काम करती हैं। ओडिशा ने हाल ही में टाटा पावर को 4 सर्किल में बिजली वितरण का लाइसेंस दिया है।
बताया गया है कि केंद्र सरकार नए मसौदा बिजली बिल के मुताबिक सुधार कर रही है और वह राज्यों पर भी निजी कंपनियों से हाथ मिलाने के लिए दबाव बना रही है। यह भी बताया जा रहा है कि यूपीपीसीएल इस विचार को लेकर उत्सुक नहीं है, जबकि राज्य सरकार इसे लेकर उत्साहित है। ऐसा माना जा रहा है कि यूपीपीसीएल ने नए मसौदा बिजली विधेयक के कुछ प्रावधानों को लेकर भी चिंता जताई है। पीयूवीवीएनएल के अंतर्गत वाराणसी, गाजीपुर, चंदौली, जौनपुर, संत रविदास नगर, मिर्जापुर, सोनभद्र, मऊ, आजमगढ़, बलिया, देवरिया, कुशीनगर, गोरखपुर, महराजगंज, संतकबीर नगर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, इलाहाबाद, प्रतापगढ़, फतेहपुर और कौशांबी आते हैं।
श्रमिक संगठन पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के प्रस्ताव, इलेक्ट्रिसिटी एमेंडमेंट बिल 2020 को वापस लेने, केन्द्र शाषित प्रदेशो के निजीकरण की प्रक्रिया रद करने व उड़ीसा में किये गए निजीकरण को वापस लेने लगातार दबाव बना रहे हैं।
वाराणसी में विद्युत कर्मचारियों ने कहा कि पूर्वांचल विद्युत् वितरण निगम का निजीकरण किसी भी प्रकार प्रदेश और आम जनता के हित में नहीं है। निजी कंपनी मुनाफे के लिए काम करती है जबकि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम बिना भेदभाव के किसानों और गरीब उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति कर रहा है। बताया गया है कि 05 अप्रैल 2018 को ऊर्जा मंत्री श्रीकान्त शर्मा की उपस्थिति में पॉवर कार्पोरेशन प्रबंधन ने संघर्ष समिति से लिखित समझौता किया था कि प्रदेश में ऊर्जा क्षेत्र में कोई निजीकरण नहीं किया जाएगा।