नई दिल्ली। ऊर्जा मंत्रालय ने अपनी तकनीकी शाखा द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट को खारिज कर दिया है जिसमें देश में बिजली की मांग सुस्त गति से बढ़ने का अनुमान जताया गया है। इसमें पहले जताए गए अनुमान से करीब 20 फीसदी की कमी आई है। यह परिणाम मांग अनुमानों में संशोधन किए जाने और ज्यादा सटीक नतीजे पर पहुंचने के लिए गणना की इकोनोमेट्रिक तरीके का इस्तेमाल करने के बाद सामने आया है। अगस्त 2019 में तैयार की गई यह रिपोर्ट केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) की वेबसाइट पर उपलब्ध है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि मंत्रालय ने इसे आधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया है। हर साल मार्च से मई के बीच मंत्रालय खुद ही एक अनुमान जारी करता है।
उच्च पदस्थ सूत्रों ने कहा कि मंत्रालय ने इस रिपोर्ट को स्वीकार नहीं करने का निर्णय लिया है क्योंकि वह इन आंकड़ों को अपना आधिकारिक रुख बनाना नहीं चाहता है। परामर्श फर्म केपीएमसी के साथ सीईए की ओर से तैयार की गई नई रिपोर्ट में भारत की ऊर्जा जरूरत की वृद्धि दर 2021-22 से 2026-27 तक 5.22 फीसदी बताई गई है। यह इसी दौरान 8 फीसदी की आशावादी जीडीपी दर के आधार पर बताई गई है।
रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि 2021-22 के दौरान 1,477 अरब यूनिट ऊर्जा की मांग रह सकती है जो 2026-27 में 1,905 अरब यूनिट पर पहुंच सकती है। इससे पहले की रिपोर्ट में समान अवधि के लिए ऊर्जा की मांग 1,566 अरब यूनिट और 2,047 अरब यूनिट बताई गई थी। हालांकि, सरकार ने उसे भी स्वीकार नहीं किया था। अप्रैल-दिसंबर 2019 के दौरान भारत की ऊर्जा मांग 951 अरब यूनिट रही थी। सीईए ऊर्जा मंत्रालय की तकनीकी शाखा है और विद्युत अधिनियम, 2003 के तहत लघु और दीर्घ अवधि की मांग अनुमान निर्धारित करने और नीति नियोजन पर सलाह देने की बात कही गई है। हर साल सीईए इलेक्ट्रिक पावर सर्वे (ईपीएस) के जरिये देश की मौजूदा आर्थिक हालात के आधार पर दीर्घ अवधि की विद्युत मांग का निर्धारण करता है।