बिलासपुर (आईपी न्यूज)। देश भर की औद्योगिक सुस्ती के बीच छत्तीसगढ़ की जनता एक बार फिर अपने प्रदेश के उद्योगों को बचाने के लिए लामबंद हो गई है। लोरमी से छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के विधायक धरमजीत सिंह के नेतृत्व में एसईसीएल के बिलासपुर स्थित मुख्यालय में जंगी धरना प्रदर्शन किया गया। श्री सिंह ने एक बार पुनः अपना संकल्प दोहराते हुए कहा कि प्रदेश के उद्योगों को संसाधनों की कमी के चलते किसी भी हालत में बंदी के मुहाने पर नहीं जाने दिया जाएगा। इस संबंध में एसईसीएल के तकनीकी निदेशक को एक ज्ञापन भी सौंपा गया है।
श्री सिंह के नेतृत्व में लगभग तीन हजार नागरिकों ने एसईसीएल मुख्यालय का घेराव किया और प्रबंधन की उदासीनता के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। श्री सिंह ने छत्तीसगढ़ राज्य के हितों के प्रति छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के संकल्प को दोहराते हुए कहा कि राज्य के संसाधनों पर छत्तीसगढ़ की जनता का पहला अधिकार है और किसी भी सूरत में उनके इस अधिकार पर प्रदेश के बाहर के उद्योगों की सर्वोच्चता को स्वीकार नहीं किया जाएगा। एसईसीएल प्राथमिकता के आधार पर प्रदेश के उद्योगों को उनकी जरूरत का पूरा कोयला देने के लिए बाध्य है।
विधायक धर्मजीत सिंह प्रदेश के उद्योगों को प्राथमिकता के आधार पर कोयला उपलब्ध कराने संबंधी सवाल विधानसभा में भी उठा चुके हैं। कोयले के मुद्दे पर वे इसके पहले भी एसईसीएल को घेर चुके हैं। पिछली दफा भी उन्होंने अपनी पार्टी का रूख स्पष्ट करते हुए कहा था कि प्रदेश के नागरिकों और यहां के उद्योगों के हित में वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। उन्होंने यह भी चेतावनी दी थी कि यदि उद्योगों को कोयले की पर्याप्त और सतत आपूर्ति सुनिश्चित नहीं की गई तो एसईसीएल प्रबंधन के खिलाफ श्रृंखलाबद्ध आंदोलन जारी रहेगा।
श्री सिंह का यह भी कहना था कि क्षेत्रीय नागरिकों और व्यापारियों तथा कोयला आधारित उद्योगों में कम कोयला मिलने के कारण असंतोष व्याप्त होता जा रहा है। कोल इंडिया का फायदा राज्य के नागरिक को न मिल कर बाहर के उद्योगों को मिल रहा है। राज्य के नागरिकों को कोयला खदानों के कारण पलायन करना पड़ रहा है। वे प्रदूषित वातावरण में रहने के लिए मजबूर है। तथ्यों के नजरिए से देश का 18 फीसदी कोयला छत्तीसगढ़ के पास है। यह लगभग 56 बिलियन टन के आसपास है। देश के कोयला उत्पादन में एसईसीएल की भागीदारी 25 फीसदी है जबकि उत्पादन लक्ष्य 165 मिलियन टन है। राज्य में औद्योगिक घरानों ने 65 हजार करोड़ का निवेश किया है। उनके ताप आधारित कैप्टिव पावर प्लांट लगभग 4000 मेगावाॅट बिजली बनाते हैं। इसके लिए उन्हें 26 मिलियन मीट्रिक टन कोयला चाहिए। एसईसीएल के कुल उत्पादन का यह 16 प्रतिशत है जबकि जितना कोयला उद्योगों को चाहिए उसका 50 प्रतिशत भी उन्हें नहीं मिल पा रहा है।
कोयले की कमी, कैप्टिव पावर यूनिट बंद होने की स्थिति में
कोयले की कमी के कारण कैप्टिव पावर उत्पादक अपनी इकाइयों को बंद करने की स्थिति में पहुंच गए हैं और कुछ तो बंद ही पड़े हुए हैं। कैप्टिव पावर प्लांटों के पास स्थानीय कोयले की तुलना में दोगुने मूल्य के साथ विभिन्न संसाधनों से कोयले का विदेशों से आयात करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। 10 से 15 फीसदी कोयले की आपूर्ति उद्योगों में बढ़ाने से राज्य को 200 करोड़ रुपए का प्रत्यक्ष एवं 500 करोड़ रुपए का अप्रत्यक्ष कर अतिरिक्त राजस्व के रूप में मिल सकता है। कोयले के संकट से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इन उद्योगों से जुड़े पांच लाख से अधिक परिवारों की रोजी-रोटी प्रभावित हो सकती है।