केंद्र सरकार ने 20 सितंबर को सभी राज्यों को स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्युमेंट भेज दिया है है जो कि वास्तव में बिजली डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों के संपूर्ण निजीकरण का दस्तावेज है। यह पूरा दस्तावेज बिजली डिस्ट्रीब्यूशन का निजीकरण किस प्रकार किया जाए उसे बतलाता है। केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने बोली दस्तावेजों पर 5 अक्तूबर तक स्टेकहोल्डरों से ऐतराज मांगे हैं।
केंद्र द्वारा सभी राज्यों को यह पत्र जारी किए जाने के बाद अब बिजली कंपनियों के निजीकरण का भी रास्ता साफ हो गया है। दस्तावेज को इस प्रकार तैयार किया गया है कि किसी प्रदेश को बिजली डिस्ट्रीब्यूशन का निजीकरण करने में देर नहीं लगेगी।
बिजली कंपनियों के निजीकरण का सबसे अधिक असर आम लोगों पर पड़ेगा। बिजली दरें महंगी होनी तय हैं, जबकि इसका असर किसानों पर भी पड़ने जा रहा है नई नीति और निजीकरण के बाद सब्सिडी समाप्त होने से स्वाभाविक तौर पर इन उपभोक्ताओं के लिए बिजली महंगी होगी।
नए कानून के अनुसार बिजली दरों में मिलने वाली सब्सिडी पूरी तरह समाप्त हो जाएगी और किसानों सहित सभी घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली की पूरी लागत देनी होगी।
इलेक्ट्रिसिटी(अमेंडमेंट) बिल 2020 में कहा गया है कि नई टैरिफ नीति में आने वाले तीन सालो में सब्सिडी और क्रास सब्सिडी समाप्त कर दी जाएगी और किसी को भी लागत से कम मूल्य पर बिजली नहीं दी जाएगी। उन्होंने बताया कि अभी किसानों, गरीबी रेखा के नीचे और 500 यूनिट प्रति माह बिजली खर्च करने वाले उपभोक्ताओं को सब्सिडी मिलती है जिसके चलते इन उपभोक्ताओं को लागत से कम मूल्य पर बिजली मिल रही है।
सबसे पहले इससे बिजली कर्मचारी प्रभावित होने जा रहे हैं उनकी सबसे बड़ी चिंता ट्रांसफर स्कीम है जिसमें स्पष्ट लिखा है कि निजीकरण के बाद कर्मचारी निजी कंपनी के कर्मचारी हो जाएँगे और सरकारी डिस्कॉम कर्मचारियों की सेवान्त सुविधाएँ जैसे ग्रेच्युटी, पेशन का उत्तरदायित्व केवल उसी दिन तक लेगी जिस दिन तक वे सरकारी डिस्कॉम के कर्मचारी हैं। उड़ीसा का उदाहरण हमारे सामने है
टाटा पॉवर ने उड़ीसा के विद्युत नियामक आयोग को लिखित तौर पर बता दिया है कि टाटा पॉवर कर्मचारियों के मामले में उनकी पूर्व शर्तों को स्वीकार नहीं करता और टाटा पॉवर की शर्तों पर कर्मचारियों को काम करना होगा अन्यथा उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। साथ ही निजी कंपनिया संविदाकर्मियों को भी बाहर कर देगी इससे हजारों कर्मियों की नौकरी जाने वाली है।
लंबे समय से निजीकरण को लेकर चल रही कवायद में आखिरकार 20 सितंबर को स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्युमेंट जारी होने के साथ अंतिम मुहर भी लग गई है। केंद्र द्वारा सभी राज्यों को यह पत्र जारी किए जाने के बाद अब बिजली कंपनियों के निजीकरण का भी रास्ता साफ हो गया है। सबसे पहले इसका सीधा असर प्रदेश की तीनों डिस्ट्रीब्यूशन पूर्व, मध्य व पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनियों पर पड़ेगा। इसके बाद तीन अन्य मप्र पॉवर जनरेशन कंपनी, मप्र पॉवर टांसमिशन कंपनी और पॉवर मैनेजमेंट कंपनी को भी शामिल किया जा सकता है।
क्या है स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्युमेंट : केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्युमेंट भेजा है जो कि बिजली डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों का संपूर्ण निजीकरण का दस्तावेज है। यह पूरा दस्तावेज बिजली डिस्ट्रीब्यूशन का निजीकरण किस प्रकार किया जाए उसे समझाता है।
जानकारों की मानें तो दस्तावेज को इस प्रकार तैयार किया गया है कि किसी प्रदेश को बिजली डिस्ट्रीब्यूशन का निजीकरण करने में देर नहीं लगेगी। दस्तावेज में कर्मचारियों व संपत्तियों के हस्तांतरण, ट्रांसफर स्कीम, आरएफपी (रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल) बिडिंग की प्रक्रिया और बिडिंग के बाद शेयर होल्डर के करार का मसौदा व अन्य मुद्दों को विस्तार से दिया गया है।
पॉवर सेक्टर के कर्मचारियों की चिंता बढ़ी : बिजली कंपनियों के निजीकरण का रास्ता साफ होते ही पॉवर सेक्टर के अभियंताओं व कर्मचारियों की चिंताएँ बढ़ गई हैं। सबसे बड़ी चिंता ट्रांसफर स्कीम है जिसमें स्पष्ट लिखा है कि निजीकरण के बाद कर्मचारी निजी कंपनी के कर्मचारी हो जाएँगे और सरकारी डिस्कॉम कर्मचारियों की सेवान्त सुविधाएँ जैसे ग्रेच्युटी, पेशन का उत्तरदायित्व केवल उसी दिन तक लेगी जिस दिन तक वे सरकारी डिस्कॉम के कर्मचारी हैं। इसके अलावा निजी कंपनी के नियमों व सेवा शर्तों के अनुसार कर्मचारियों को कार्य करने होंगे।
सबसे बड़ा उदाहरण ओडिशा : निजीकरण का सबसे बड़ा उदाहरण ओडिशा का है जहाँ 1 जून को टाटा पॉवर ने सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी यूटिलिटी का अधिग्रहण किया है। सूत्र बताते हैं कि टाटा पॉवर ने उड़ीसा के विद्युत नियामक आयोग को लिखित तौर पर बता दिया है कि टाटा पॉवर कर्मचारियों के मामले में उनकी पूर्व शर्तों को स्वीकार नहीं करता और टाटा पॉवर की शर्तों पर कर्मचारियों को काम करना होगा अन्यथा उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा।