नई दिल्ली। देश के प्रतिष्ठित संस्थान टेरी के संस्थापक दरबारी सेठ की याद में आयोजित वार्षिक व्याख्यान में मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव ऐंटोनियो गुटेर्रेस ने कहा कि भारत को सस्ते ऊर्जा स्त्रोत के तौर पर कोयले की तरफ देखना बंद कर देना चाहिए, क्योंकि अब नवीनीकृत ऊर्जा स्त्रोतों से बनी बिजली की कीमत भी सस्ती है और इससे पर्यावरण संरक्षण में मदद भी मिलती है। कोयले का उपयोग मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण और यहां तक कि अर्थव्यवस्था के लिए भी अभिशाप है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने यह बात ऐसे समय कही है जब आत्मनिर्भर भारत के तहत प्रधानमंत्री ने सबसे पहले कोयले में आत्मनिर्भरता पर लंबा भाषण देते हुए इसके उत्पादन को बढाने के लिए खनन को निजी क्षेत्रों के हवाले करने की घोषणा की और साथ ही पर्यावरण के सदर्भ में संवेदनशील इलाकों में भी इसके खनन की अनुमति दे दी गई है।
Renewable energy needs to grow.
Coal use must be phased out.
That must be our #ClimateAction story – a story of smarter, stronger, cleaner economies for the 21st century, creating more jobs, more justice and more prosperity. https://t.co/Fh6b8AdXyP pic.twitter.com/4arcNq4B4U
— António Guterres (@antonioguterres) August 28, 2020
ऐंटोनियो गुटेर्रेस के अनुसार यदि जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए किये गए पेरिस समझौते पर आगे बढ़ना है तो भारत और चीन जैसे देशों को कोयले के मोह को छोड़ना पड़ेगा। इस समय जब कोविड-19 के दौर में अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के प्रयास किये जा रहे हैं, तब भारत को कोयले के उपयोग को धीरे-धीरे कम करना होगा और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अगले साल से कोई भी नए ताप-बिजली घर नहीं स्थापित किये जाएं और जीवाश्म इंधनों पर दी जाने वाली रियायत भी बंद कर दी जाए।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव के अनुसार इस दौर में कोयले के उपयोग को बढाने का कोई औचित्य नहीं है और इसके उपयोग से स्वास्थ्य, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था बस धुआं ही रह जाती है। यदि कोयले के उपयोग को खत्म कर दे तो भारत उर्जा के क्षेत्र में और जलवायु परिवर्तन नियंत्रण के क्षेत्र में दुनिया की अगुवाई करने की क्षमता रखता है।
बड़े देशों में भारत और चीन ऐसे देश हैं, जहां कोयले की खपत साल-दर-साल बढ़ती जा रही है, कोयले पर आधारित नए ताप बिजली घर स्थापित किये जा रहे हैं और कोयले के खनन का क्षेत्र बढ़ रहा है। कोयले के खनन के लिए बड़े पैमाने पर घने जंगलों को काटा जा रहा है और स्थानीय वनवासियों और जनजातियों को अपना क्षेत्र छोड़ने पर विवश किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री अब आत्मनिर्भर भारत के नाम पर पर्यावरण का चीरहरण कर रहे हैं। सरकार ने 38 कोयला खदानों को नीलामी के लिए सूचीबद्ध किया है। अब तक कोयला खदान पर सरकारी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड का एकाधिकार था, पर अब इसे निजी क्षेत्रों के लिए पूरी तरह से खोल दिया गया है। प्रधानमंत्री जी कहते हैं कि नई खदानों के बाद भारत कोयले के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर बन जाएगा।
दरअसल मोदी सरकार लगभग हरेक मामलों में दोहरी नीति पर चलती है- अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के पर्यावरण संरक्षण के मामले में 5000 वर्षों की परंपरा का पाठ पढ़ाया जाता है और देश में लगातार पर्यावरण के विनाश के रास्ते खोजे जाते हैं। दुनिया को पीएम मोदी नवीनीकृत उर्जा में भारत की सफलता बताते हैं और देश में कोयला-आधारित नए बिजलीघर स्थापित किये जाते हैं, दुनिया को जलवायु परिवर्तन पर प्रवचन देते हैं और देश में इसे नियंत्रित करने की कोई स्पष्ट नीति भी नहीं है।