कोरबा (IP News). मोदी सरकार के कोयला मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में मदनपुर साउथ कोल ब्लॉक के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया आरम्भ करते हुए ि24 दिसम्बर, 2020 को कोयला धारक क्षेत्र (अर्जन और विकास) अधिनियम, 1957 की धारा 7 की उप-धारा (1) के प्रावधानों का उपयोग करते हुए भूमि अर्जन हेतु अधिसूचना भारतीय राजपत्र में जारी की गई है। हसदेव अरण्य क्षेत्र के खनन प्रभावित ग्रामांे के जनपद सदस्य एवं सरपंचो ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, विधानसभा अध्यक्ष डा. चरणदास महंत एवं सम्बंधित मंत्रियों को पत्र भेज कर न सिर्फ इस अधिसूचना को रद्द करने की मांग की है बल्कि सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को बचाने प्रस्तावित परसा, मदनपुर साउथ, पतुरिया गिदमुड़ी एवं केते एक्सटेंसन कोल ब्लॉक, जिन्हें राज्य सरकारों की कम्पनियों को आबंटित किया गया हैं, उन्हें निरस्त करने की मांग की है।
ज्ञात हो कि मदनपुर साउथ कोयला ब्लॉक को वर्ष 2015 मे आंध्रप्रदेश मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन को व्यावसायिक खनन अर्थात कोयला बेचकर मुनाफा कमाने के लिए आबंटित किया गया था, जिसमें खनन का ठेका (MDO) बिरला समूह को मिला है। इस कोल ब्लाक से लगे हुए तीन अन्य कोल ब्लाक मदनपुर नार्थ, मोरगा 2 एवं मोरगा साऊथ को हाल ही में राज्य सरकार के विरोध के बाद कमर्शियल माइनिंग की नीलामी सूची से हटा दिया गया है।
पत्र में सरपंचों ने कहा कि कोयला मंत्रालय द्वारा भूमि अधिग्रहण की यह अधिसूचना पांचवी अनुसूचित क्षेत्र में निवासरत उन समुदाय को जंगल – जमीन से बेदखल करेगा, जिनके लिए संविधान की पांचवी अनुसूची में विशेष संरक्षण दिए गए हैं। इन्ही संरक्षणों के तहत परियोजना के पूर्व ग्रामसभा से अनिवार्य परामर्श का प्रावधान रखा गया है। समुदाय के जंगलों एवं निजी हकों की जंगल जमीन को गैर वानिकी उपयोग में देने के पूर्व वनाधिकार मान्यता कानून 2006 के तहत अधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया की पूर्णता और ग्रामसभा से अनिवार्य सहमती का प्रावधान है।
कोयला मंत्रालय द्वारा जारी यह अधिसूचना इन प्रावधानों के उल्लंघन के साथ प्रदेश के एक समृद्ध वन क्षेत्र के विनाश की भी इजाजत देता है, जिसे बचाने राज्य सरकार संकल्पित है। हसदेव अरण्य की 20 ग्रामसभाओं ने वर्ष 2014 में प्रस्ताव पारित कर कोल ब्लाकों के आबंटन का विरोध किया था। उसके बाद सतत यहां तक कि कुछ माह पूर्व भी कोल खनन के खिलाफ विरोध के अपने संकल्प को दोहराते हुए सभी सरपंचों द्वारा प्रधानमंत्री को पत्र प्रेषित किया गया था।
अडानी और बिरला कम्पनी के दवाब में कोयला मंत्रालय ग्रामसभाआंे को बाईपास करते हुए आदिवासियों से जबरन जमीन छीनकर गांव को उजाड़ने का प्रयास किया जा रहा है। जिसका ग्रामसभाए पुरजोर विरोध करंेगी और किसी भी कीमत पर अपने जंगल जमीन व पर्यावरण का विनाश होने नही देंगी।