नई दिल्ली। श्रम क़ानूनों को ख़त्म किए जाने को लेकर तेज़ी दिखाते हुए मोदी सरकार की कैबिनेट ने बीते मंगलवार को तीन लेबर कोड (श्रम संहिताएं) को मंज़ूरी दे दी।

ये तीनों लेबर कोड हैं- ऑक्युपेशनल सेफ़्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडिशन; सोशल सिक्युरिटी और इंडस्ट्रियल रिलेशन। टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक ख़बर के अनुसार, अब इन तीनों लेबर कोड को 14 सितम्बर से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में पेश किया जाएगा।

इससे पहले लेबर कोड ऑन वेजेज़ (वेतन श्रम संहिता) को संसद पास कर चुकी है और बाकी तीन लेबर कोड पर विचार के लिए संसदीय समिति के पास भेजा गया था।

मोदी सरकार 44 श्रम क़ानूनों को ख़त्म करके चार लेबर कोड लाने जा रही है। सरकार का दावा है कि श्रम पर दूसरे राष्ट्रीय आयोग की सिफ़ारिशों के अनुसार, इन सभी श्रम क़ानूनों को आसान बनाया गया है, कुछ क़ानूनों को मिला दिया गया है और इनके प्रावधानों को ज़्यादा तार्किक बनाया गया है।

इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड बिल 2019 में तीन श्रम क़ानून- ट्रेड यूनियन एक्ट 1026, इंडस्ट्रियल एम्प्लायमेंट (स्टैंडिंग ऑर्डर) क़ानून 1048 और इंडस्ट्रियल डिसप्यूट ऐक्ट 1947 को मिला दिया गया है।

संसदीय समिति ने इस बिल पर सरकार से और स्पष्टता की मांग की थी क्योंकि इसमें कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा को लेकर को स्पष्ट प्रावधान नहीं था। बल्कि ट्रेड यूनियनों के संचालन पर भी कुछ स्पष्ट बात नहीं की गई थी।

संसदी समिति ने सोशल सिक्योरिटी कोड पर भारी आपत्ति जताई है। मानसून सत्र में इस कोड पर हंगामा होने के आसार हैं क्योंकि कांग्रेस, सीपीएम, सीपीआई और डीएमके ने इस पर अपनी कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है।

आक्युपेशनल सेफ़्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन कोड बिल 2019 असल में खदान और प्लांटेशन वर्कर्स के बारे में है। संसदीय समिति ने इसके तहत अन्य क्षेत्रों को भी शामिल करने की सलाह दी है लेकिन उसका सुझाव है कि काम के घंटों को और लचीला बनाया जाए और काम की शिफ़्ट को 12 घंटे तक बढ़ाने की छूट दी जाए।

केंद्रीय ट्रेड यूनियनें श्रम क़ानूनों को ख़त्म करने का पुरज़ोर विरोध कर रही हैं। उनका दावा है कि सरकार के इस कदम से पहले से ही जर्जर सामाजिक सुरक्षा, औद्योगिक सुरक्षा और बदतर काम के हालत में रह रहे मज़दूरों की कमर टूट जाएगी।

ट्रेड यूनियनों का कहना है कि इतने अलग अलग किस्म के उद्योगों में लगे मज़दूरों के हितों की रक्षा एक काउंसिल कैसे कर पाएगी।

जैसा होता है भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सीधे निर्देशन में ये लेबर कोड बनाए गए हों, लेकिन कई मामलों में स्पष्ट जानकारी किसी के पास नहीं है।इसके अलावा ट्रेड यूनियनें इसलिए भी चिंतित हैं क्योंकि जिन क्षेत्रों के मज़दूरों के बारे में सरकार फैसले लेने जा रही है, उनसे या उनकी ट्रेड यूनियन प्रतिनिधियों से सरकार ने कोई भी बात करने से इनकार कर दिया है।

ट्रेड यूनियन नेताओं का कहना है कि ये मोदी सरकार की मनमानी है और इससे मज़दूरों के हालात बंधुआ मज़दूरी से भी बदतर हो जाएंगे।

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