लखनऊ (IP News). आल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के महामंत्री शिवगोपाल मिश्रा ने कहा कि रेल के निजीकरण और निगमीकरण का केंद्र सरकार का सपना कभी पूरा नहीं होने वाला है। जो लोग एआईआरएफ के इतिहास और संघर्ष को जानते है वे ऐसी हिमाकत करने की कोशिश भी नहीं कर सकते। हालांकि केंद्र की सरकार एक बार फिर निजीकरण की कोशिश कर रही है, इसके खिलाफ एनसीसी आरएस की अगुवाई में 1974 से भी बड़े आंदोलन की रणनीति तैयार हो रही है। अर्थशास्त्री प्रो. विनोद चंद्रा ने कहा कि रेलवे का निजीकरण देश यानि भारत का निजीकरण किए जाने के बराबर है।
एआईआरएफ महामंत्री शिवगोपाल मिश्रा आज यहां नार्दर्न रेलवे मेंस यूनियन, लखनऊ मंडल द्वारा आयोजित भारतीय रेल एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के वर्तमान स्वरूप में मीडिया की भूमिका विषय पर राष्ट्रीय सेमीनार को संबोधित कर रहे थे। महामंत्री ने कहा कि सच्चाई ये है कि ये सरकार पूरी तरह औद्योगिक घरानों के लिए काम कर रही है। सरकार की जो भी नीतियां है वो मजदूर और देश विरोधी है। महामंत्री ने कहाकि भारतीय रेल सिर्फ एक संस्था नहीं है, बल्कि ये देश की संस्कृति से जुड़ा है। रेलवे कभी भी मुनाफा कमाने वाली कंपनी नहीं रही है। रेलवे ने हमेशा से ही सामाजिक सरोकारों को प्राथमिकता दी है। महामंत्री ने कहाकि आप सब ने देखा की कोरोना के समय जब देश के विभिन्न हिस्सों में प्रवासी मजदूर पैदल ही अपने घरों को निकल गए। इन्हें घर पहुंचाने में राज्य सरकारें न सिर्फ विफल हो गई, बल्कि हाथ खड़े कर दिए। उस समय भी अपनी जान और परिवार की चिंता किए बगैर रेल कर्मचारियों ने बड़ी संख्या में श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के जरिए प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाने का साहसिक काम किया।
लाकडाउन के दौरान जब पूरा देश घरों में कैद हो गया था। सभी तरह के ट्रांसपोर्ट बंद हो गए। उस समय भी हमारे 10 लाख से ज्यादा रेल कर्मचारियों ने रात दिन 24 घंटे मालगाड़ी का संचालन किया ताकि किसी भी राज्य में आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं की कमी न होने पाए और इस काम में हम कामयाब भी रहे। यहां तक की खुद रेल मंत्री ने कहाकि कोरोना के समय जब सभी कंपनियां घाटे में रहीं, उस वक्त हमने सामान्य दिनों की अपेक्षा 15 फीसदी अधिक माल की ढुलाई की। खुद प्रधानमंत्री ने अपने मन की बात में रेल कर्मियों की तारीफ की और रेल कर्मियों को फ्रंट लाइन कोरोना वारियर्स कहा। महामंत्री ने कहाकि हम तो में विपदा के समय देश की सेवा में लगे थे, लेकिन कुछ मौकापरस्त और औद्योगिक घरानों के हितैषी रेल कर्मियों की पीठ में छूरा भोंकने का काम कर रहे थे। पहले रेल कर्मियों के डीए को फ्रीज किया गया, फिर 109 रुट पर 151 निजी ट्रेनों के संचालन को हरी झंडी देने की साजिश शुरु हो गई। इतना नहीं रेलकर्मियों को सालों से मिल रहे नाइट एलाउंस पर कैंची चलाने का काम हुआ।
महामंत्री ने कहाकि कोरोना के समय ही देश कुछ और श्रमिक विरोधी काम हुए, यहां तक की श्रम कानूनों में बदलाव कर उसे औद्योगिक घरानों के मनमाफिक बनाने का काम किया गया, इसमें मजदूरों के हितों की पूरी तरह अनदेखी की गई। हास्यास्पद तो ये कि इस बदलाव में यूनियन की मान्यता के लिए 51 फीसदी वोट की अनिवार्यता की गई, जबकि देश में 26 फीसदी वोट पाकर लोग सांसद और विधायक बन जाते हैं और 32 फीसदी वोट पर सरकार बन जाती है। महामंत्री ने साफ कर दिया कि ये सब अब अधिक दिनों तक चलने वाला नहीं है।
महामंत्री ने कहाकि देश के 19 मजदूर संगठन निजीकरण और निगमीकरण के खिलाफ संघर्ष को एकजुट हैं। इसमें देश के सभी बड़े और अपने अपने क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले फेडरेशन, ट्रेड यूनियन, एसोसिएशन शामिल हैं। इन सभी को मिलाकर एनसीसी आरएस का गठन किया जा चुका है, जल्दी ही इसकी मीटिंग में संघर्ष की रणनीति तैयार की जाएगी। महामंत्री दोहराया कि आँल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन का एक लंबा इतिहास है। हमने हमेशा ही मजदूरों के हितों को लेकर संघर्ष किया है, कुर्बानी दी है। रेल को बचाने के लिए हर कीमत चुकाने को तैयार है। महामंत्री ने फिर दोहराया है कि एनसीसी आरएस भी खामोश बैठने वाला नहीं है, जब भी निजीकरण की कोशिश होगी, देश भर में रेल का चक्का जाम कर दिया जाएगा।
अर्थशास्त्री प्रो. विनोद चंद्रा ने कहाकि सरकार निजीकरण और निगमीकरण की बात करके आग हाथ डालने का काम कर रही है। सरकार को समझना होगा कि रेलवे का निजीकरण भारत का निजीकरण करने जैसा कदम है। श्री चंद्रा कहाकि आज रेलवे में काम करने वाले हाथों की संख्या कम हुई है और काम के घंटे बढ़ गए है। उन्होंने कहाकि अगर रेलवे में नौकरी के अवसर कम हुए तो न सिर्फ बेरोजगारी बढ़ेगी, बल्कि देश का संचालन करना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने कहाकि निजी ट्रेनों का सपना दिखाया जा रहा है, सच्चाई ये है कि तेजस जैसी ट्रेनों में महज आकर्षक कपड़ों में कुछ लड़कियों को तैनाती जरूर दी गई है, लेकिन उनकी सेवाशर्ते , अधिकार नहीं के बराबर है। सेवा में मामूली कमी पर भी बिना सोचे समझे लोगों को बर्खास्त कर दिया जा रहा है।
प्रोफेसर ने कहाकि निजी क्षेत्र की सेवाशर्ते और सरकारी सेवाशर्तों में जमीन आसमान का अंतर है। सच्चाई ये है कि आज सरकार भी ऐसी सेवा शर्तों को थोपना चाहती है जो औद्योगिक घरानों के मनमाफिक हो। प्रो.चंद्रा ने कहाकि मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि रेलवे को नुकसान कहां हो रहा है, आज भी बड़ी संख्या में टिकट कन्फर्म नहीं होने से लोग यात्रा से वंचित हो जा रहे है। हमें ऐसी कोशिश करनी चाहिए ट्रेन आँन डिमांड हो, जब जिसे जहां जाना हो, उन्हें ट्रेन में आरक्षण मिल जाए। कार्यक्रम का संचालन मंडल मंत्री आर के पांडेय और केंद्रीय उपाध्यक्ष एस यू शाह ने आगंतुकों का आभार व्यक्त किया।