कोरबा (IP News). तमाम तरह की मुख़ालफ़त के बीच 18 जून, 2020 को व्यावसायिक खनन के लिए “कोयले को खोल देना : आत्मनिर्भर भारत के लिए नई उम्मीदें” शीर्षक से कोयला खानों की नीलामी शुरू हो जाएगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वर्चुअली कार्यक्रम में इसकी शुरुआत करेंगे।
24 अगस्त, 1979 को यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित फिल्म “काला पत्थर” रिलीज हुई थी। इसमें शोषित मजदूर और खदान खदान मालिकों के संघर्ष का चित्रण किया गया था।
कमर्शियल माइनिंग से क्या भारत में फिर से कोयला खान मालिकों का जमाना आ जायेगा? 1970 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दिवाली की रात कोयला उद्योग का राष्ट्रीयकरण करके खान मालिकों की बत्ती गुल करवाई थी, जिससे शोषित-पीड़ित मज़दूरों का घर रोशन हो गया था।
कोयला उद्योग का राष्ट्रीयकरण करने के बाद इंदिरा गांधी शुरू से ही इस बात को लेकर आशंकित थीं कि खान मालिक राष्ट्रीयकरण को फेल कराना चाहेंगे। इसलिए उन्होंने श्रमिकों को संबोधित करते हुए कहा था – “आप लोग सतर्क रहें। लगन से काम करें। राष्ट्रीयकृत कोयला उद्योग को सफल बनाने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाएं। वरना पुराने कोलियरी मालिक राष्ट्रीयकरण को फेल कराना चाहेंगे। वे साबित करना चाहेंगे कि सरकार कोलियरियां नहीं चला सकती। आप सबको इस चुनौती को स्वीकार करना होगा।“ आख़िर चार दशकों से भी ज़्यादा समय बीत जाने के बाद इंदिरा गांधी ने जो आशंका व्यक्त की थी, वो सही साबित हो रही है।
सार्वजनिक क्षेत्र के कोयला उद्योग का एकाधिकार ख़त्म करके निजी कंपनियों को कोयला खनन और मार्केटिंग का अधिकार मिलते ही भारतीय कोयले के कारोबार को ललचायी नज़रों से देखने वाले देश-विदेश के पूंजीपतियों की मुरादें अंतत: पूरी हो गईं हैं। आर्थिक उदारीकरण के जनक पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव जो नहीं कर पाए, वह काम मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर दिखाया है।
श्रमिक संगठनों में पहले जैसा उबाल नहीं
शायद यही वजह है कि कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के 45 साल पुराने फ़ैसले को पलटने जैसी मोदी सरकार की कार्रवाई से नाराज़ श्रमिक संगठनों की गतिविधियों पर सरकार की पूरी नजर है पर शायद उसे भरोसा भी है कि सब ठीक हो जाएगा। सरकार को ऐसा भरोसा हाल के वर्षों में कोयला उद्योग के मामले में श्रमिक संगठनों की भूमिकाओं को देखते हुए भी बना है। वैसे यह बात सही है कि कोयला उद्योग का इतिहास बदल देने वाली घटना को लेकर श्रमिक संगठनों में जैसा उबाल होने चाहिए, फिलहाल नहीं दिख रहा है, जिसको लेकर कोयला मज़दूर सोशल मीडिया पर चिंता भी जता रहे हैं। श्रमिक संगठनों के नेता अभी अख़बारों और सोशल प्लेटफॉर्म पर बयानबाजी तक ही सीमित हैं। कोयला उद्योग में इंटक, बीएमएस, सीटू, एटक और एचएमएस जैसे केंद्रीय श्रमिक संगठन हैं। इनके नेता चाहते हैं कि उनके बीच आंदोलन के सवाल पर एकता बने। 10 व 11 जून, 2020 को एक मंच पर आकर कमर्शियल माइनिंग का विरोध जरूर जताया गया, लेकिन कुछेक यूनियन पूरी तरह साथ नहीं दिखी। इसलिए नाथूलाल पांडेय को कहना पड़ा मनमुटाव भूलना होगा।
मोदी सरकार की नीति के अनुरूप
वैसे निजीकरण के सवाल पर मोदी सरकार के हौसले अकारण ही बुलंद नहीं हुए। साल 2014 के आम चुनाव में भाजपा की अगुआई कर रहे नरेंद्र मोदी ने कहा था – “मेरा मानना है कि सरकार को व्यापार नहीं करना चाहिए। फोकस ‘मिनिमम गवर्मेंट एंड मैक्सिमम गवर्नेंस’ पर होना चाहिए।“ सरकार बनने के साथ ही कोयला खान (विशेष प्रावधान) विधेयक, 2015 संसद में पेश किया गया, जिसमें साफ-साफ कहा गया है कि इस विधेयक का उद्देश्य कोयला खान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973 और खान एवं खनिज (विकास व नियमन) अधिनियम, 1957 में संशोधन करना है। ताकि कोयला खनन हेतु अंतिम उपयोग पर लगी पाबंदी को शर्तों से हटाया जा सके।