एक तरफ एक अभिनेत्री का आशियाना है. दूसरी तरफ 48 हजार घर हैं. इन घरों को सभ्य समाज घर नहीं, झुग्गियां कहता है. इन दोनों पर अवैध होने का आरोप है. अभिनेत्री के आशियाने पर बड़े-बड़े नेता, पत्रकार और तमाम जनता ने आंसू बहाया, सरकारी कार्रवाई की मजम्मत की. 48 हजार घरों के ढहाए जाने के आदेश पर कहीं कोई चर्चा तक नहीं.
अभिनेत्री के पास हजारों विकल्प हैं. उनके पास अकूत संपत्ति है. उन्हें देश की सत्ताधारी पार्टी का समर्थन है. लेकिन उन 48 हजार गरीब परिवारों के पास न दूसरी जमीनें हैं, न संपत्ति है, न कोई समर्थन है. इनमें बहुत से लोग ऐसे होंगे जिनको आजकल काम भी नहीं मिल रहा होगा. उन्हें उजाड़ दिया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि नई दिल्ली रेलवे ट्रैक के आसपास बनीं झुग्गियां तीन महीने के भीतर हटा दी जाएं. कोर्ट ने ये भी निर्देश दिया है कि कोई भी अदालत इन झुग्गी-झोपड़ियों को हटाने को लेकर कोई स्टे न दे.
वे कौन लोग हैं जो आकर रेल की पटरियों के आसपास झोपड़ी बनाकर बस गए? वे इसी देश के गरीब लोग हैं जो रोजी कमाने के लिए अपने-अपने गांव घर छोड़कर शहर आए हैं. वे मजदूर और कामगार हैं. कोई बोरा ढोता होगा, कोई बर्तन मांजता होगा, कोई घर बनाता होगा, कोई बाल काटता होगा, कोई कुली होगा, कोई ड्राइवर होगा.
कानून कहता है कि वे अवैध हैं, उन्हें उजाड़ देना चाहिए. कानून ये कभी नहीं कहता कि उन्हें कहीं बसा देना चाहिए. कानून ये भी नहीं कहता कि उन्हें उनके घरों में ही रोजगार दे देना चाहिए.
वही कानून जिसने आदेश दिया है कि अभिनेत्री का घर फिलहाल बचा रहना चाहिए.
कानून का सिद्धांत सबके लिए समान है, लेकिन कानून का क्रियान्वयन हमेशा ताकतवर के पक्ष में होता है.
हमारी संवेदनाएं भी इसी तरह उफनती हैं. गांधी जी जिस गरीबी को अभिशाप मानते थे, उसने अब भी भारतीय जनता का पीछा नहीं छोड़ा है. अमीरों ने भी देश के तमाम संसाधन कब्जाएं हैं. छत्तीसगढ़ के हजारों आदिवासी आजकल अपने पहाड़ बचाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं. एक दिन कानून उन आदिवासियों को भी अवैध कह देगा और पूंजीपति के पक्ष में फैसला देगा कि गांव को उजाड़ कर पहाड़ खोद दिए जाएं.
अमीरों के साथ पूरा सिस्टम है, इसलिए अमीरों के हर कारनामे वैधानिक हैं. गरीबों के साथ कोई नहीं है, इसलिए उनकी मौजूदगी भी अवैध है. ये दुनिया ऐसे ही अन्यायपूर्ण तरीके से चलती है और हमें बड़ी सुंदर लगती है.
(कृष्ण कांत की फेसबुक वाॅल से)