नई दिल्ली। आज ‘हॉकी के जादूगर’ मेजर ध्यानचंद की 115वीं जयंती है, उनके जन्मदिन को पूरा देश राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाता है। मेजर ध्यानचंद सिंह ने इंडिया को ओलंपिक खेलों में गोल्ड मेडल दिलाया था इसलिए उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए उनके जन्मदिन 29 अगस्त को भारत ‘नेशनल स्पोर्टस डे’ के रूप में सेलिब्रेट करता है।
1000 से अधिक गोल दागे थे मेजर ध्यानचंद ने 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद में जन्मे मेजर ध्यानचंद सिंह तीन बार ओलंपिक के स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे। उन्होंने अपने खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल दागे। ऐसा कहा जाता है कि जब वो मैदान में खेलने को उतरते थे तो गेंद मानों उनकी हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी।
कुछ खास बातें
- सन् 1927 ई. में लांस नायक बना दिए गए। सन् 1932 ई. में लॉस ऐंजल्स जाने पर नायक नियुक्त हुए।
- सन् 1937 ई. में जब भारतीय हाकी दल के कप्तान थे तो उन्हें सूबेदार बना दिया गया।
- सन् 1943 ई. में ‘लेफ्टिनेंट’ नियुक्त हुए और भारत के स्वतंत्र होने पर सन् 1948 ई. में कप्तान बना दिए गए।
- केवल हॉकी के खेल के कारण ही सेना में उनकी पदोन्नति होती गई। 1938 में उन्हें ‘वायसराय का कमीशन’ मिला और वे सूबेदार बन गए।
- उसके बाद वो लेफ्टीनेंट और कैप्टन बनते चले गए और बाद में उन्हें मेजर बना दिया गया।
उनके जन्मदिन को भारत का राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया गया
- 1956 में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।
- उनके जन्मदिन को भारत का राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया गया है।
- इसी दिन खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं।
- भारतीय ओलंपिक संघ ने ध्यानचंद को शताब्दी का खिलाड़ी घोषित किया था।
हिटलर ने दिया जर्मनी आने का ऑफर
बात 1936 की है, मेजर ध्यानंचद की कप्तानी में भारतीय टीम बर्लिन ओलंपिक में भाग लेने पहुंची। भारतीय टीम की भिड़ंत मेजबान जर्मनी से होनी थी। ऐसे में जर्मन चांसलर एडोल्फ हिटलर भी फाइनल देखने पहुंचे थे। ध्यानचंद ने हिटलर के सामने जर्मनी के गोलपोस्ट पर गोल दागने शुरू किए। ऐसे में हिटलर ने ध्यानचंद की स्टिक बदलवा दी थी। इसके बाद भी भारत ने जर्मनी को 8-1 के अंतर से मात दी। मैच के खत्म होने से पहले ही हिटलर स्टेडियम छोड़ चुके थे क्योंकि उसे हार बर्दाश्त नहीं हो रही थी लेकिन इसके बाद हिटलर ने ध्यानचंद से मुलाकात करके जर्मनी आने को कहा था लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया था। हिटलर ने ध्यानचंद की बहुत तारीफ भी की थी।