नई दिल्ली, 10 अक्टूबर। असम के तिनसुकिया जिले के मार्गेरिटा में कोयला खादानों के बंद होने से स्थानीय अर्थव्यवस्था तो प्रभावित हुई ही है, साथ ही बड़े पैमाने पर रोजगार का नुकसान भी हुआ है।
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आजीविका गंवाने वाले श्रमिकों का दूरदराज के स्थानों पर पलायन हुआ है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान- कानपुर (आईआईटी कानपुर) के अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है। आईआईटी कानपुर के ’जस्ट ट्रांजिशन अध्ययन केंद्र (जेटीआरसी) द्वारा किये गये जमीनीस्तरीय अध्ययन पता चला है कि ’कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व’ और ’जिला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट’ से लगातार समर्थन नहीं मिलने पर खनन गतिविधियों के निलंबन के बाद कोयले पर निर्भर लोगों के लिए स्थिति को और खराब हो सकती है।
जेटीआरसी सर्वेक्षण द्वारा जारी कोयला खान बंद होने बाद जीवन’ शीर्षक वाली रिपोर्ट के मुताबिक, 172 उत्तरदाताओं में से 108 ने कहा कि खदानों के बंद होने के बाद मार्गेरिटा के कोयला श्रमिकों और गैर-श्रमिक निवासियों की आजीविका में भारी बदलाव आया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 52 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उनकी आय घट गई है. जबकि जबकि 20 प्रतिशत लोगों ने अपनी नौकरी गवां दी है। वहीं 13 प्रतिशत के कारोबार में मंदी आ गई है। एक स्थानीय मिठाई की दुकान के मालिक ने बताया कि जब खदानें खुली थीं तो उसकी तीन-चार लाख रुपये प्रति माह कमायी होती थी। खदानों के बंद होने से उनके कारोबार में काफी गिरावट आयी है।
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रिपोर्ट के मुताबिक खदानों के बंद होने के बाद श्रमिकों के पास कम पैसे में अधिक मजदूरी करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा है।
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