नई दिल्ली। 26 नवम्बर की आम हड़ताल की तैयारी तेज हो गई है। देश के श्रमिक संगठनों के आव्हान पर हो रही इस देशव्यापी हड़ताल में संगठित और असंगठित क्षेत्र के 25 करोड़ से ज्यादा श्रमिकों के शामिल होने का दावा यूनियन नेताओं ने किया है। आम हड़ताल से किसान संगठन भी जुड़ गए हैं। 27 नवम्बर को संसद घेराव करने देशभर के किसान नई दिल्ली की ओर कूच कर रहे हैं। इधर, श्रमिक और किसान नेताओं की गिरफ्तारियां भी शुरू हो गई है।

मोदी सरकार की नीतियों से देश के किसानों और मजदूरों में भारी नाराजगी है। वे लगातार आंदोलन की राह पर हैं। इन दोनों को साथ लाने की कोशिशें काफी समय से चल रही थीं, इसी कोशिश के चलते दोनों संगठनों ने एक दूसरे की मांग को अपने मांग पत्र में शामिल भी किया था। इस लिहाज से 26 नवम्बर की तारीख काफी महत्वपूर्ण है, जबकि मजदूरों ने आम हड़ताल की अपील की है, और किसान संगठनों ने दो दिन के दिल्ली पड़ाव की। मजदूरों की हड़ताल में संगठित और, असंगठित क्षेत्र मजदूरों के साथ ही सरकारी कर्मचारी, स्कीम वर्कर और बीमा और बैंक कर्मियों के शामिल होने की उम्मीद है।

देशव्यापी हड़ताल में संघ समर्थित भारतीय मजदूर संघ को छोड़कर बाकी सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियन, स्वतंत्र फेडरेशन और संगठन शामिल हैं। इनकी तैयारी लगातार जारी है। इस बीच कई बीजेपी शासित राज्यों में मजदूर नेताओ की गिरफ्तारियां शुरू हो गईं हैं। जिसको लेकर भी मजदूरों में काफी गुस्सा है।

मजदूरों की हड़ताल क्यों?

देशभर के श्रमिक 21 हजार रुपये न्यूनतम वेतन, ठेका प्रथा बंद करने समेत अन्य मांगों को लेकर हड़ताल पर जाने को तैयार हैं। यह हड़ताल केंद्र सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ हैं, जिसमें नौकरियों की सुरक्षा, रोजगार सृजन और श्रम कानूनों में संशोधन कर उन्हें अब चार लेबर कोड में बदला गया है उसका भारी विरोध है और उसको वापस लेने संबंधित मांगें रखी गई हैं।

मजदूर नेताओं का कहना है, कि इस हड़ताल को सरकार द्वारा बैंक, रेलवे, बीमा, संचार, बिजली, कोल, पेट्रोलियम सहित सभी सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में बेचना भी एक मुद्दा है। मजदूर संगठन के नेताओं ने कहा, ” पूरे देश के पैमाने पर 25 करोड़ से ऊपर कर्मचारी हड़ताल में शामिल होंगे। आज देश का मजदूर ये हड़ताल करने को मजबूर हुआ है क्योंकि सरकार का अड़ियल रुख नहीं बदला है। सरकार लगातार मजदूर विरोधी कदम उठा रही है। मजदूरों की 21000 रुपये की न्यूनतम वेतन की मांग पूरी नहीं हुई है। श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी बदलाव किया जा रहा है।

सभी नेताओं ने एक बात पर जोर दिया कि आज मजदूर अपनी नौकरी को लेकर सबसे असुरक्षित हैं क्योंकि हाल के दिनों फैक्ट्री मालिकों ने माहमारी का बहाना बनाकर बड़ी संख्या में मजदूरों को बाहर निकाल दिया और सरकार ने भी आपदा में अवसर का नारा देकर श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी और मालिक परस्त बदलाव किए। इसलिए मजदूरों का इस माहमारी में सड़कों पर उतरकर विरोध करना आवश्यक हो गया है। नेताओं ने यह भी दावा किया यह हड़ताल एक ऐतिहसिक हड़ताल होगी। हालंकि सभी ने यह भी माना की महामारी के कारण उन्हें समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

ट्रेड यूनियनों और किसान संगठनों के नेताओं की गिरफ्तारियां

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और ढाई सौ किसान संगठनों के मंच अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के संसद चलो आह्वान के दो दिन पहले ही किसान नेताओं की गिरफ्तारियां शुरू हो गई हैं।

यूनियनों ने 26 नवंबर को देशव्यापी आम हड़ताल की घोषणा की है जबकि किसान संगठन 27 नवंबर को संसद घेरने का ऐलान कर चुके हैं जिन्हें यूनियनों का भी समर्थन हासिल है।

किसान संगठनों का कहना है कि वे अपनी मांगें माने जाने तक संसद का घेराव जारी रखेंगे। उल्लेखनीय है कि बीते करीब ढाई महीने से पंजाब के किसान रेलवे पटरियों पर धरना दे रहे थे और अभी बीते सोमवार को ही सशर्त आंदोलन स्थगित किया है।

हरियाणा कांग्रेस ने ट्वीट कर कहा है, “किसान समर्थक होने का झूठा दिखावा करने वाली भाजपा जजपा सरकार किसान विरोधी काले कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसान नेताओ को गिरफ्तार कर तानाशाही कायम करने पर तुली है।”

मंगलवार को स्वराज इंडिया पार्टी के नेता योगेंद्र यादव ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर बीजेपी की केंद्र सरकार और राज्य सरकार पर किसान नेताओं को गिरफ्तार करने के आरोप लगाए हैं।

 

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