रायपुर (IP News). छत्तीसगढ़ की चार वामपंथी पार्टियों ने 26 नवम्बर को केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और फेडरेशनों द्वारा आहूत देशव्यापी आम हड़ताल और 27 नवम्बर को अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति द्वारा आहूत किसानों के दिल्ली मार्च और देशव्यापी विरोध कार्यवाहियों का समर्थन किया है। पूरे देश में मजदूर-किसानों का यह आंदोलन आरएसएस-भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की नवउदारवादी और कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों के खिलाफ आयोजित किया जा रहा है।
आज यहां जारी एक बयान में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के संजय पराते, भाकपा के आरडीसीपी राव, भाकपा (माले)-लिबरेशन के बृजेन्द्र तिवारी और एसयूसीआई (सी) के विश्वजीत हारोड़े ने केंद्र सरकार से कॉर्पोरेटपरस्त, कृषि विरोधी तीनों काले कानूनों , बिजली कानून और चार श्रम संहिताओं को वापस लेने, फसल की सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने, खेत मजदूरों के लिए न्यूनतम वेतन तय करने और उन्हें पूर्ण रोजगार देने की किसान संगठनों और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों की मांगों का पूर्ण समर्थन किया है।
चारों वामपंथी पार्टियों के नेताओं ने कहा है कि तीनों कृषि विरोधी कानून न केवल कृषि क्षेत्र का कॉर्पोरेटीकरण करते हैं और किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की सीमित गारंटी से वंचित करते हैं, बल्कि खाद्यान्न बाजार को भी भारी मुनाफा कमाने के लिए कॉरपोरेटों को सौंपते हैं। इससे देश की खाद्यान्न सुरक्षा और आत्मनिर्भरता खत्म होगी तथा सीमांत व लघु किसान अपनी जमीन व पशुधन से हाथ धोकर प्रवासी मजदूरों की भीड़ में शामिल हो जाएंगे। इसी प्रकार, चार श्रम संहिताओं के जरिये यह सरकार आठ घंटे के कार्यदिवस, न्यूनतम वेतन, ट्रेड यूनियनें गठित करने और हड़ताल के जरिये सामूहिक सौदेबाजी करने के अधिकार से मजदूरों को वंचित करना चाहती है।
उन्होंने कहा कि यदि इस देश में मजदूरों और किसानों को उनके बुनियादी अधिकारों से वंचित किया जाएगा, तो आम जनता के जनतांत्रिक अधिकार और आजादी भी नहीं बचेगी और देश में एक फासीवादी-तानाशाही राज्य स्थापित हो जाएगा। इसलिए 26-27 नवम्बर का मजदूर-किसान आंदोलन केवल आम जनता की रोजी-रोटी की रक्षा का आंदोलन नहीं है, देश के जनतंत्र, आत्मनिर्भरता व संप्रभुता को बचाये-बनाये रखने का भी संघर्ष हैं।
वाम नेताओं ने अपने बयान में कहा है कि मोदी सरकार की दिवालिया नीतियों के चलते आज देश एक भयंकर आर्थिक मंदी में फंस गया है और इससे उबरने के एक ही रास्ता है कि बुनियादी ढांचे में सार्वजनिक निवेश के जरिये रोजगार और घरेलू मांग पैदा की जाए। इसके लिए प्रत्यक्ष नगद हस्तांतरण और मुफ्त खाद्यान्न वितरण जरूरी है, जो आम जनता की क्रय शक्ति को बढ़ाने और देश की अर्थव्यवस्था को ढहने से बचाने का काम करेगा।
वामपंथी पार्टियों ने केंद्र के कृषिविरोधी कानूनों को निष्प्रभावी करने के लिए मंडी कानून में संशोधन को अपर्याप्त बताया है और पंजाब की तर्ज पर एक सर्वसमावेशी कानून बनाने की भी मांग की है, जिसमें समर्थन मूल्य पर फसल खरीदी करने, मंडी से बाहर कम कीमत पर फसल खरीदी पर रोक लगाने, ठेका खेती पर प्रतिबंध लगाने आदि के प्रावधान शामिल हों।