नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (उच्चतम न्यायालय) में संविधान पीठ की ये टिप्पणी कि सरकार एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर सिद्धांत लागू करे, से सरकार के लिए एक बार फिर से समस्या खड़ी हो गई है। वर्ष 2018 में संविधान पीठ द्वारा जरनैल सिंह केस में की गईं टिप्पणियां अभी फैसले से हटी नहीं हैं कि अब दूसरी संविधान पीठ ने यही टिप्पणियां फिर से कर दी हैं।
सरकार 22 अप्रैल के इस फैसले में की गईं टिप्पणियों के खिलाफ भी शीर्ष कोर्ट आएगी क्योंकि राजनीतिक नुकसान को देखते हुए सरकार इन टिप्पणियों के फैसले में बने रहने का खतरा नहीं उठाना चाहेगी। वर्ष 2018 में की गई क्रीमी लेयर की टिप्पणियों के दलित वर्ग में कड़े विरोध के बाद केंद्र ने दिसंबर 2019 मे शीर्ष कोर्ट में याचिका दायर कर टिप्पणियों को फैसले से हटाने का आग्रह किया था। सरकार ने कहा था ये मामला सात जजों की बेंच को भेजा जाए क्योंकि एससी-एसटी वर्ग में क्रीमी लेयर नहीं लागू की जा सकती। उनका आर्थिक रूप से सशक्त होना भी उनसे दलित होने का दाग नहीं मिटा पा रहा है। सरकार की यह याचिका शीर्ष कोर्ट में लंबित है। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने उसे सात जजों की बड़ी बेंच को भेजने पर विचार करने की सहमति दी है। अब तक क्रीमी लेयर का सिद्धांत अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी में ही लागू होता है।

क्या हैं टिप्पणियां
एससी-एसटी वर्ग के जो लोग आरक्षण का लाभ लेकर धनी हो चुके हैं, उन्हें शाश्वत रूप से आरक्षण देना जारी नहीं रखा जा सकता है। कल्याण के उपायों की समीक्षा करनी चाहिए ताकि बदलते समाज में इसका फायदा सभी को मिल सके।

पहले सरकार को अध्यादेश लाना पड़ा
शीर्ष कोर्ट ने मार्च 2018 में जब एससी-एसटी अत्याचार निवारण, एक्ट के प्रावधानों को हल्का कर दिया था तो सरकार को इसके लिए अध्यादेश लाना पड़ा था। हालांकि, बाद में सरकार की अपील पर कोर्ट की बड़ी बेंच ने गत वर्ष अपने पूर्व के फैसले को निरस्त कर था। ताजा टिप्पणियां शीर्ष कोर्ट ने आंध्र व तेलंगाना के अनुसूचित क्षेत्रों में एसटी वर्ग को 100% आरक्षण देने के आदेश को रद्द करते हुए 22 अप्रैल को की हैं।

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