नई दिल्ली। भाजपा की मातृ संस्था आरएसएस का श्रमिक संगठन भारतीय मजूदर संघ मोदी सरकार के खिलाफ आरपार की लड़ाई के मूड में नजर आ रहा है। शनिवार को वित्ती मंत्री निर्मला सीतारमन ने आर्थिक पैकेज की चौथी किस्त पेश करने आईं और उनहेंने कई घोषणाएं भी की। इधर, भारतीय मजूदर संघ (बीएमएस) इस चैथी किस्त से इस कदर नाराज हुआ कि इसे देश के दुखद दिन करार दिया। बीएसएस के महामंत्री विरजेश उपाध्याय ने पे्रस को जारी बयान में कहा कि तीन दिन से जो उत्साह बना हुआ था, लेकिन आज वित्त मंत्री ने निराश कर दिया।
कहा- सरकार के पास है उपायों का अकाल
बीएमएस ने कहा कि कोल, माइनिंग, डिफेंस प्रॉडक्शन, एयरस्पेस मैनेजमेंट, एयरपोर्ट्स, पावर डिस्ट्रिब्यूशन, स्पेस, एटॉमिक एनर्जी आठ इकोनॉमिक सेक्टर को सरकार ने अपनी प्राथमिकता में बताया, लेकिन सरकार का यह कहना कि निजीकरण के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इससे साबित होता है कि सरकार के पास कोरोना संकट के दौरान अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के उपायों का अकाल है।
सरकार के पास कोई नीति नहीं, इसलिए भरोसे का संकट
ऐसे कोई भी प्रयास सीधे लोगों के रोजगार पर असर डालेंगे। कर्मचारियों के नजरिये से देखें तो निजीकरण से रोजगार छीनने, रोजगार के स्तर को कमजोर करने, मुनाफे का केंद्रीकरण होने और कर्मचारियों के शोषण के सिवाय कुछ नहीं मिलेगा। बिना सामाजिक संवाद के सरकार बड़े और गलत दिशा में फैसले लेने की ओर बढ़ रही है। जबकि लोकतंत्र का आधार संवाद होता है। बीएमएस ने यह भी सवाल उठाया कि आखिर सरकार श्रमिक संगठनों, सामाजिक प्रतिनिधियों, साझेधारकों के साथ संवाद स्थापित करने में संकोच क्यों करती है। इसका सीधा अर्थ है कि सरकार को अपने ही विचार पर भरोसा नहीं है, यह निंदनीय है।
आर्थिक सुधार मतलब निजीकरण?
सरकार ने जिन सेक्टरों को अपनी प्राथमिकता बताया है वहां हमारी यूनियन पहले से निजीकरण का विरोध कर रही हैं। हमारे नीति निर्धारकों के लिए संस्थागत सुधार (ेजतनबजनतंस तमवितउे) और प्रतिस्पर्धा का मतलब निजीकरण हो गया है। जबकि कोरोना संकट के दौरान देश ने देखा है कि किस तरह प्राइवेट सेक्टर की कमियां खुलकर सामने आ गईं, व्यवस्थाएं भरभरा गईं जबकि सार्वजनिक क्षेत्र ही संकट की घड़ी में देश के साथ खड़ा नजर आया।
कोयला और खनन क्षेत्र के निर्णयों पर जाहिर की नाराजगी
कोल प्राइवेटाइजेशन और इस उद्देश्य से 5 हजार करोड़ रुपये आवंटित किया जाना निंदनीय है। इसी तरह माइनिंग के क्षेत्र में 500 माइनिंग ब्लॉक की नीलामी वह भी बाक्साइट और कोल ब्लॉक जैसी खनिज संपदा की किसी भी कीमत में स्वागत योग्य नहीं है. स्टांप ड्यूटी को लेकर किए गई घोषणा को लेकर भी बीएमएस ने अपनी नाराजगी जाहिर की है।
रक्षा, ऊर्जा हर क्षेत्र में आक्रामक निजीकरण नहीं तो क्या है
रक्षा के क्षेत्र में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को 49 फीसदी से बढ़ाकर 74 फीसदी किया जाना, वह भी डिफेंस बिल घाटे के नाम पर तथा डिफेंस फैक्ट्रियों व बोर्ड के निजीकरण पर भी बीएएस ने सरकार को लताड़ लगाई है।
13,000 करोड़ रुपये के लिए 6 एयरपोर्ट्स को नीलामी के लिए आगे करना, महानगरों में पावर डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों को प्राइवेट हाथों में सौंपे जाने को बीएमएस ने निजी क्षेत्रों को राहत देने वाला व देश के हित से समझौता करने वाला निर्णय बताया।
क्या देश के हितों से समझौता नहीं है अंतरिक्ष कार्यक्रमों का निजीकरण
इसरो जैसे भारत के गौरवपूर्ण संस्थान के निजीकरण का समाज पर बुरा असर पड़ेगा। हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम देश की सुरक्षा और निगरानी के लिहाज से महत्वपूर्ण है। इसके निजीकरण से देश के हितों से समझौता होगा. भारत के मौजूदा स्टार्टअप अंतरिक्ष की चुनौतियों के समाधान के लिए अभी सक्षम नहीं हैं। यहां तक की एटॉमिक एनर्जी को पीपीपी मॉडल के जरिए बदलने की प्रक्रिया निजीकरण की शुरुआत है।
कारपोरेट के लिए रेड कार्पेट और श्रमिक संगठनों के लिए टाइम नहीं
श्रमिक संगठन की ओर से सीधे शब्दों में कहा गया है कि पूरी सरकारी मशीनरी, वित्त मंत्रालय इस समय सिर्फ निजीकरण पर काम कर रहा है। उसके पास कारेपोरेट सेक्टर के साथ बातचीत करने के अलावा सामाजिक क्षेत्र के लोगों से वार्ता करने, कृषि, सूक्ष्म, लुघ और मध्यम उद्योग की चिंता को देखने का समय नहीं है. जिनके बीच पिछले तीन दिन से वित्त मंत्री ने एक उम्मीद जगाने का काम किया था।