वर्तमान में हमारे आस-पास जो भी वक्त बीतता है, उसमें दुनिया के किसी न किसी कोने में कुछ न कुछ ज़रूर घटित होता है. वह बीता हुआ कल हमारे लिए कई यादगार पलों को छोड़कर जाता है, जिससे हम सीखते हैं और जिंदगी में आगे बढ़ते जाते हैं. उन्हीं में से कुछ ऐसे भी ऐतिहासिक किस्से होते हैं, जो हमारे लिए बहुत खास या दिलचस्प होते हैं.

जब शुरू हुआ ‘भारत छोड़ो आंदोलन’

9 अगस्त का दिन भारतीय इतिहास के लिए एक खास दिनों में से एक हैं. इस दिन को ‘अगस्त क्रान्ति दिवस’ के नाम से जाना जाता है.

9 अगस्त 1942 को ‘अगस्त क्रांति आंदोलन’ या ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की शुरुआत हुई. इस आंदोलन को मुंबई में शुरू किया गया था. जिस मैदान से इसकी शुरुआत हुई उसे ‘अगस्त क्रांति मैदान’ के नाम से जाना जाता है.

द्वितीय विश्व युद्ध में समर्थन देने के बावजूद, जब अंग्रेजों ने भारत को आज़ाद करने से मना कर दिया तो महात्मा गाँधी ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के रूप में अंग्रेजों का विरोध किया. यह आंदोलन आज़ादी के अंतिम आंदोलनों में से एक माना जाता है.

4 जुलाई 1942 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पारित किया. इस प्रस्ताव के तहत अंग्रेजों के खिलाफ बड़े स्तर पर नागरिक अवज्ञा आंदोलन की योजना बनाई गई थी. 8 अगस्त को भारतीय नेशनल कांग्रेस की एक बैठक दोबारा मुंबई में बुलाई गई. इस बैठक में सभी नेताओं ने महात्मा गाँधी के आह्वान पर प्रस्ताव को समर्थन दिया और उसे पारित किया गया.

इसी बैठक में युसूफ मेहर अली द्वारा दिया गया ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के नाम पर गांधी जी की सहमति मिली थी. कांग्रेस के इस एतेहासिक सम्मलेन में गांधी जी ने अपने भाषण के दौरान आंदोलन को कामयाब बनाने के लिए ‘करो या मरो’ का मूलमंत्र दिया था.

आगे, अंग्रेजों को इस आंदोलन की भनक पहले से लग चुकी थी. इसीलिए, उन्होंने 9 अगस्त की सुबह ही महात्मा गाँधी समेत कांग्रेस के बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था. इसके बावजूद यह आंदोलन अपने उत्कर्ष पर पहुंचा था. देखते ही देखते यह पूरे भारत में आग की तरह फ़ैल गया. इस आंदोलन के उग्र रूप को देखकर अंग्रेजों में दहशत फ़ैल गई थी.

बहरहाल, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी द्वारा चलाया गया ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

जापान के नागासाकी पर हुआ परमाणु हमला

9 अगस्त के ही दिन अमेरिका ने जापान पर दूसरा परमाणु हमला किया था. इसके तीन दिन पहले अमेरिका एक परमाणु हमला कर चुका था.

दरअसल, अमेरिका ने 6 अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा पर पहला परमाणु हमला किया था. इस परमाणु बम के धमाके का असर 13 वर्ग किलोमीटर तक हुआ था. हिरोशिमा का पूरा शहर तबाह हो चुका था. जापान इस हमले का शोक मना ही रहा था कि अमेरिका जापान पर दोबारा हमले की फ़िराक में था.

नागासाकी शहर पहाड़ों से घिरे होने के बावजूद इस परमाणु हमले में 6.7 वर्ग मीटर तक का क्षेत्र पूरी तरह तबाह हो गया था. ऐसा बताया जाता है कि हिरोशिमा परमाणु हमले से लगभग 1 लाख 40 हजार लोग मारे गए थे, वहीं नागासाकी में हुए बम हमले में 74 हजार के आसपास इंसानों की मौत हो गई थी.

हालांकि, नागासाकी पर गिराए जाने वाला बम पहले जापान के कोकुरा शहर पर गिराया जाना था मगर, किन्हीं कारणों से अचानक इस योजना में बदलाव किया गया और अंततः नागासाकी को दूसरे परमाणु हमले के लिए चुना गया.

पीसा की झुकी मीनार का शुरू हुआ निर्माण कार्य

फिर, भी इसका निर्माण कार्य पूरा किया गया. इसको पूरा करने में लगभग 200 साल लगे थे. इसके झुकने की वजह से ही यह मीनार दुनिया भर में मशहूर हैं. यहां देश-विदेश से लोग इस अद्भुत मीनार का दीदार करने आते हैं.

यह मीनार करीब 5 डिग्री के एंगल पर ज़मीन की ओर झुकी हुई है. दिलचस्प यह है कि इस मीनार को बनाने के पीछे भी एक रोचक कहानी है. उस वक़्त इटली का एक छोटा शहर पीसा अमीरों का एक शहर हुआ करता था. इन अमीरों में ज्यादातर बड़े व्यापारी थे. ये एक अच्छे नाविक भी थे.

व्यापार की दृष्टि से पीसा और इतालवी नगर फ्लोरेंस के लोगों का छत्तीस का आंकड़ा था. ऐसे में दोनों के बीच कई विवादों ने जन्म लिया. दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए हर कोशिशें करते थे. तभी पीसा के लोगों ने अपने को बड़ा दिखाने के लिए इस मीनार का निर्माण करवाया था.

खैर, अब इस शहर में वो बात नहीं रह गई, मगर इस झुकी मीनार की वजह से आज भी पीसा दुनिया भर में मशहूर है. इसी कड़ी में दिलचस्प बात यह है कि इस मीनार को पूरा होने के अब तक कई भूकंप भी आये मगर यह मीनार अपनी जगह पर ऐसे ही झुकी हुई आसमान की बुलंदियों को छू रही है.

जब हुआ काकोरी कांड

9 अगस्त के दिन ही भारत क्रांतिकारियों ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से कुछ दूरी पर स्थित काकोरी स्थान पर एक लूट को अंजाम दिया था. इस लूट को इतिहास में ‘काकोरी कांड’ या ‘काकोरी षडयंत्र के नाम से जाना जाता है.

इस घटना को 9 अगस्त 1925 में क्रन्तिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में रेल के द्वारा ले जा रही अंग्रेजों की संग्रहित धनराशि को लूटा गया था.

उन्होंने ट्रेन के गार्ड पर बन्दूक तान दिया और तिजोरी का ताला तोड़ते हुए रूपये लेकर भाग गए थे. इतिहासकारों की माने तो क्रांतिकारियों द्वारा मात्र 4,000 रूपये की धनराशि लूटी गई थी.

इस लूट में अशफाक़उल्ला खां, चंद्रशेखर आज़ाद, राजेन्द्र, सचिन्द्र सान्याल आदि क्रांतिकारी शामिल थे. बाद में इन्हें गिरफ्तार किया गया और इस घटना से जुड़े लोगों पर मुकदमा चलाया गया था. 6 अप्रैल 1927 को इस मुक़दमे का फैसला सुनाया गया.

जिसमें रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र लाहिड़ी, अशफाक़उल्ला, और रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई, वहीं सचिन्द्र सान्याल को उम्र कैद की सजा दी गई थी.

 

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