कोरबा (IP News). भाजपा सरकार के कार्यकाल में जांजगीर चांपा जिले के मड़वा में स्थापित किए गए 1000 मेगावाट क्षमता वाले विद्युत संयंत्र को लेकर कैग ने बड़ा खुलासा किया है। भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक, छत्तीसगढ़ की रिपोर्ट के अनुसार संयंत्र स्थापित करने जिस जमीन को बंजर बताया गया वह कृषि भूमि है।
भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक छत्तीसगढ़ ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का प्रतिवेदन जारी किया है। प्रतिवेदन में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत उत्पादन कम्पनी लिमिटेड के अटल बिहारी वाजपेयी तापीय विद्युत गृह, मड़वा योजना के लिए जो डीपीआर (विस्तृत परियोजना रिपोर्ट) प्रस्तुत की गई थी, इसके अनुसार 80 प्रतिशत भूमि बंजर तथा 20 प्रतिशत कृषि भूमि थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके लिए विस्तृत सर्वेक्षण नहीं किया गया था।
कैग की रिपोर्ट के अनुसार कम्पनी ने कुल 1,728.73 एकड़ भूमि अधिग्रहित की जिसमें से सिर्फ 283.77 एकड़ (16.41 प्रतिशत) भूमि बंजर थी तथा शेष 1,444.96 एकड़ (83.59 प्रतिशत) कृषि भूमि थी। अर्थात जिसे बंजर बताया गया वह कृषि भूमि थी।
जिसके कारण पुनर्वास के 15 प्रकरण, भू-विस्थापितों का विरोध, हड़ताल, काम रोको, तालाबंदी जैसी घटनाएं हुई और परियोजना के कार्य में रुकावटें आईं। रिपोर्ट के अनुसार कंपनी ने भूमि का अधिग्रहण किया जो निर्धारित सीमा से 38 प्रतिशत अधिक थी। इसके लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार से कोई भी स्वीकृति प्राप्त नहीं की गई। परिणामस्वरूप परियोजना की लागत में 63.32 करोड़ रुपए की वृद्धि हुई।
रिपोर्ट के अनुसार सलाहकार ने 60 किलोग्राम/मीटर रेल की आवश्यकता के अनुरुप के स्थान पर 52 किलोग्राम/मीटर रेल के लिए इन-मोशन वे- ब्रिज के लिए डिजाइन स्वीकृत किया। इन-मोशन वे-ब्रिज की विशिष्टताओं में विसंगति होने के कारण इसे मई 2019 तक स्थापित नहीं किया जा सका। बाद में 1,681.52 करोड़ मूल्य के खरीदे गए कोयले पर 2016-17 से 2018-19 की अवधि के दौरान मार्ग में हुए नुकसान को नहीं मापा जा सका।
रिपोर्ट में कहा गया है कि परियोजना की इकाई क्रमांक एक तथा दो क्रमशः 42 और 44 महीने के विलंब से चालू हो सकी। इसका मुख्य कारण अनुबंध के निष्पादन, सामग्री की आपूर्ति, बीटीजी सिविल कार्य प्रदान करने और पूर्ण करने तथा बीओपी समझौते के अंतर्गत सुविधाओं को पूर्ण करने में विलंब का होना था। इसके परिणामस्वरुप 16,440.07 मिलियन यूनिट की उत्पादन हानि हुई, जिसका मूल्य 4,438.82 करोड़ रुपए था। वहीं पावर फायनेंस कारपोरेषन के ऋण पर मिलने वाली 17.95 करोड़ रुपए के ब्याज की छूट से वंचित होना पड़ा तथा छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कम्पनी लिमिटेड को 315.32 करोड़ की उच्च दर पर विद्युत के क्रय पर व्यय करना पड़ा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि विद्युत संयंत्र की दोनों इकाइयों के चालू होने के बाद भी कंपनी कम से कम 850 मेगावाट प्रति घण्टा (85 प्रतिशत प्लांट लोड फेक्टर) विद्युत उत्पादन के उद्देश्य को प्राप्त करने में विफल रही। केवल 575 मेगावाट प्रतिघण्टा ही उत्पादन किया जा सका। वहीं कंपनी ने भारत सरकार और छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण बोर्ड द्वारा निर्धारित विभिन्न अधिनियमों, विनियमों और मानदण्डों के प्रावधानों का पालन नहीं किया, जो कि पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
लागत में 2681 करोड़ रुपए का इजाफा
यहां बताना होगा कि मड़वा संयंत्र की अनुमानित लागत 6318 करोड़ रुपए थी, जो पुनरीक्षित होकर 8999 करोड़ रुपए हो गई। अभी भी संयंत्र की अंतिम लागत का आंकलन नहीं हो सका है।
जांच के लिए गठित हुई है कमेटी
जानकारी के अनुसार महालेखाकार के परफारमेंस आडिट (वर्ष 2004-05 से 2017-18) रिपोर्ट की कंडिकाओं पर समीक्षा एवं जांच हेतु चार सदस्यीय समिति का गठन किया गया है। अभी समिति की रिपोर्ट नहीं आई है। बताया गया है कि समिति की रिपोर्ट आने के बाद मामलेे में कार्रवाई होगी।