नई दिल्ली. औद्योगिक संबंध संहिता-2020 विधेयक (Industrial Relations Code Bill 2020) शनिवार को लोकसभा में पेश हो गया. इसके तहत अब तीन सौ से कम कर्मचारियों वाली कंपनी सरकार से मंजूरी लिए बिना कर्मियों की जब चाहे छंटनी कर सकेंगी. श्रममंत्री संतोष गंगवार (Labour Minister of India, Santosh Gangwar) ने कांग्रेस सहित विपक्षी दलों के विरोध के बीच पिछले साल पेश विधेयकों को वापस लेते हुए ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड, 2020 और कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी, 2020 पेश किए.
अभी क्या है नियम- 100 से कम कर्मचारी वाले औद्योगिक प्रतिष्ठान या संस्थान ही पूर्व सरकारी मंजूरी के बिना कर्मचारियों को रख और हटा सकते थे. इस साल की शुरुआत में संसदीय समिति ने 300 से कम स्टाफ वाली कंपनियों को सरकार की अनुमति के बिना कर्मचारियों की संख्या में कटौती करने या कंपनी बंद करने का अधिकार देने की बात कही थी. कमेटी का कहना था कि राजस्थान में पहले ही इस तरह का प्रावधान है. इससे वहां रोजगार बढ़ा और छटनी के मामले कम हुए.
इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड 2020 में धारा 77(1) जोड़ने का प्रस्ताव- छटनी के प्रावधान के लिए सरकार ने इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड 2020 में धारा 77(1) जोड़ने का प्रस्ताव रखा है. इस सेक्शन के मुताबिक छंटनी और प्रतिष्ठान बंद करने की अनुमति उन्हीं प्रतिष्ठानों को दी जाएगी, जिनके कर्मचारियों की संख्या पिछले 12 महीने में हर रोज औसतन 300 से कम हो. सरकार अधिसूचना जारी कर इस न्यूनतम संख्या को बढ़ा सकती है.
श्रममंत्री ने कहा आसान किए नियम- श्रममंत्री ने संसद को बताया कि 29 से ज्यादा श्रम कानूनों को चार संहिता में शामिल किया गया है. संसद ने पिछले सत्र में इनमें से एक मजदूरी संहिता, 2019 को पारित किया था.
सरकार ने विभिन्न हितधारकों से विधेयकों को लेकर लंबी चर्चा की और करीब छह हजार से ज्यादा सुझाव मिले. इन विधेयकों को स्थायी समिति के पास भेजा गया था और समिति ने 233 सिफारिशों में से 174 को स्वीकार किया.औद्योगिक संबंध संहिता-2020 के छंटनी वाले प्रावधान पर श्रम मंत्रालय और कर्मचारी संगठनों के बीच गंभीर मतभेद था. संगठनों के विरोध के चलते 2019 के विधेयक में यह प्रावधान नहीं था.
लोकसभा में पेश किए तीन श्रम विधेयक- कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी और शशि थरूर ने विधेयक का विरोध किया. तिवारी ने कहा, ये विधेयक लाने से पहले श्रमिक संगठनों और संबंधित पक्षों से चर्चा करनी चाहिए थी. श्रमिकों से जुड़े कई कानून अभी भी इसके दायरे में नहीं हैं. लिहाजा आपत्तियों को दूर करने के बाद इन्हें लाया जाए. वहीं, थरूर ने कहा कि इसमें प्रवासी श्रमिक के बारे में स्पष्टता नहीं है. विधेयकों को नियमों के तहत पेश करने से दो दिन पहले सदस्यों को देना चाहिए था.