विशाखापट्टनम (IP News). विशाखापट्टनम स्टील प्लांट का विनिवेश किए जाने की घोषणा के बाद कर्मचारी संगठनों ने आंदोलन शुरू कर दिया है। एक फरवरी को पेश किए गए बजट में वित्त मंत्री ने प्लांट में आरआइएनएल के 100 निवेश को मंजूरी दी है। इस संयंत्र को रास्ट्रीय इस्पात निगम के नाम से भी जाना जाता है।

यहां बताना होगा कि विशाखापट्टनम स्टील प्लांट की स्थापना 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की थी। इससे पहले इसके निर्माण के लिए साठ के दशक में यहां लंबा आंदोलन चला था। प्लांट को 1992 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने देश को समर्पित किया था। प्लांट की स्टील उत्पादन क्षमता 73 लाख टन है। विशाखापट्टनम के सांसद एमवीवी सत्यनारायण ने विरोध कर रहे वर्करों का समर्थन किया है। उन्होंने कहा इस मुददे को संसद में उठाएंगे और सरकार पर इस फैसले को वापस लेने के लिए दबाव बनाएंगे।

इधर, भारतीय मजदूर संघ भी सरकार के इस फैसले के खिलाफ है। बीएमएस के उद्योग प्रभारी देवेन्द्र कुमार पाण्डेय ने कहा कि देश के सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों को निजी हाथों में देकर पूंजीपतियों को फलने – फूलने के लिए स्वतंत्र करने जैसा होगा। पहले तो बिमार व घाटे वाली उद्योगों को विनिवेश के लिए सूचीबद्ध किया गया था। अब मुनाफे वाले उद्योगों को विनिवेश व निजीकरण करने के लिए सूचीबद्ध किया जा रहा है। मिनीरत्न हो या महारत्न या नवरत्न क्या यह सभी उद्योग राष्ट्र के लिए नुकसानदायक हैं ? लाॅकडाउन के दौरान यही निजी उद्योगपति, पूंजीपतियों ने अपने को नुकसान से बचाने के लिए अपने उद्यगों को बन्द कर मजदूरों को भूख से मरने के लिए बेसहारा कर दिया था, लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों का सहारा बरकरार रहा।

राष्ट्र की अस्मिता से खेलने वाले आबाद हो और राष्ट्रहित में लगे मजदूर और उद्योग बर्बाद हो ऐसा निर्णय देश के ब्यूरोक्रेट्स का हो सकता है, यह राष्ट्र हितैषी चिंतन नहीं हो सकता। सरकारी मंत्रालयों में बैठे ब्यूरोक्रेट्स एक समय में उदारीकरण, निजीकरण व वैश्वीकरण के लिए तत्कालीन सत्तासीन दल के लोगों को विकास करने का राह दिखाने का काम किया था। आज वही प्रगतिशील लोग राष्ट्र को अस्त-व्यस्त कर रहे हैं।

सरकारी हो या सार्वजनिक क्षेत्र सभी उद्योगों में शाहीन बाग और किसान आंदोलन जैसी स्थिति पैदा होने की भी आशंका है। देश के सार्वजनिक क्षेत्र के विनिवेश और निजीकरण करने की सरकार की ओर से जो कवायद हो रही है उस पर रोक लगनी चाहिए। इस्पात उद्योग से विनिवेश और निजीकरण बदले कोई वैकल्पिक व्यवस्था बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए और उद्योगों को लाभकारी बनाने के लिए प्रबंधन पर शिकंजा कसने का कार्य करें।

राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड की नवरत्न इकाई वाइजाग स्टील प्लांट जो लाभकारी संस्थान है उसे घाटे वाली इकाई बताकर निजीकरण निर्णय कतई राष्ट्रहित में नहीं है। वाइजाग स्टील, विशाखापत्तनम को पास्को के हाथ में जाने से रोका जाय। बीएमएस ने चेतावनी दी है कि इस निर्णय पर विचार नहीं किया गया तो इस्पात उद्योग के कर्मचारी आंदोलन में जाने के लिए बाध्य होंगे।

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