कोरबा (आईपी न्यूज)। डीएवी कालेज मैनेजिंग कमेटी दस्तावेजों में एक चैरिटेबल संस्था है जो सोसायटी एक्ट 1860 के तहत पंजीकृत है, लेकिन हकीकत इसके विपरित है। संस्था का कामकाज एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह है। इधर, संस्था में कार्यरत शिक्षकों में वेतन को लेकर आक्रोश पनपा हुआ है। सातवां वेतनमान अब तक लागू नहीं किया गया है। बताया गया है कि छठवां वेतनमान भी पूरा नहीं मिल रहा है। लोकसभा की कोयला एवं इस्तात संबंधी स्थायी समिति ने कोल इंडिया की सहयोगी कंपनियोें के अंतगर्त संचालित शैक्षणिक संस्थानों को लेकर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। यह रिपोर्ट 12 अगस्त, 2015 को लोकसभा में प्रस्तुत की गई थी। इसमें शिक्षकों व अन्य स्टाफ के लिए राज्य सरकारों द्वारा अनुमोदित वेतन ढांचा क्रियान्वित किए जाने की बात कही गई थी। बताया गया है कि यह रिपोर्ट संसद पटल तक सिमट कर रह गई। सीआईएल और इसकी सहयोगी कंपनियों ने इस पर अमल कराना जरूरी नहीं समझा। और न ही डीएवी कालेज मैनेजिंग कमेटी ने इस पर ध्यान दिया। यहां बताना होगा कि डीएवी कालेज मैनेजिंग कमेटी अलग- अलगम प्रोजेक्ट्स से अलग- अलग डील यानि अनुबंध करती है। डील के हिसाब से वेतन इत्यादि सुविधाएं दी जाती हैं, लेकिन डीएवी प्रबंधन इसका खुलासा नहीं करता है। छत्तीसगढ़ में डीएवी द्वारा एसईसीएल से अनुबंध कर कई विद्यालयों का संचालन किया जा रहा है। विद्यालय संचालन के लिए एसईसीएल करोड़ों रुपए दे रहा है।
डीएवी के आरडी व एसईसीएल के डीएफ की लड़ाई में उलझा मामला
इधर, सूत्रों ने बताया है कि एसईसीएल के अंतगर्त संचालित विद्यालयों के शिक्षकों और अन्य स्टाफ को सातवां वेतनमान दिए जाने का मामला दो अफसरों की लड़ाई में उलझा हुआ हैै। कहा जा रहा है कि डीएवी के प्रभारी क्षेत्रीय निदेशक प्रशांत कुमार और एसईसीएल के निदेशक वित्त के बीच कुछ बातों को लेकर टकराहट चल रही है।