झाबुआ। भारत की सबसे बड़ी सरकारी स्वामित्व वाली बिजली उत्पादक कंपनी एनटीपीसी लिमिटेड पहली बार ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) के तहत दबावग्रस्त किसी परिसंपत्ति के लिए बोली लगा सकती है। एनटीपीसी अवंता पावर की झाबुआ थर्मल पावर परियोजना (1,200 मेगावाट) के लिए बोली लगाएगी जिसे ऐक्सिस बैंक के नेतृत्व वाले ऋणदाता कंसोर्टियम द्वारा राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) में प्रस्तुत किया गया है। कंपनी के सूत्रों ने कहा कि बैंक धन देने के लिए तैयार हैं। एनटीपीसी केवल आईबीसी के तहत आयोजित बोली में ही भाग लेगी। अधिकारियों ने कहा कि कंपनी बोली लगाने के लिए परिसंपत्तियों के चयन की खातिर सख्त मानदंडों का पालन करेगी।
कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हम उन परियोजनाओं पर विचार कर रहे हैं जिनमें किसी भी प्रकार का कोयला आपूर्ति स्रोत, किसी प्रख्यात ठेकेदार द्वारा निर्मित मजबूत बुनियादी ढांचा, भूमि और संबंधित मंजूरियां प्राप्त हों तथा वह सक्रिय हो या परिचालन के लिए तैयार स्थिति में हों। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि परियोजना के संबंध में बिजली खरीद अनुबंध (पीपीए) का अभाव होना कोई बाधा नहीं है क्योंकि एनटीपीसी बिजली बिक्री की सुविधा दे देगी।
उन्होंने कहा कि एनटीपीसी या तो राज्यों के साथ लंबी अवधि (25 वर्ष) के पीपीए पर हस्ताक्षर करेगी या फिर केंद्रीय एजेंसियों के जरिये मध्य अवधि के अनुबंधों के माध्यम से बिजली की बिक्री करेगी। अगर ऐसा कुछ भी नहीं होता है तो हम इन इकाइयों का इस्तेमाल व्यापारिक या हाजिर बाजार में बिजली बेचने के लिए भी कर सकते हैं। एनटीपीसी ने पहले अपने मानदंडों से मेल खाने वाली 10,000 मेगावाट क्षमता का चयन किया था। इसने दबावग्रस्त परिसंपत्ति खरीदने के लिए निविदा भी जारी की थी और चार कंपनियों की तरफ से रुचि भी दिखाई गई थी। सूत्रों के अनुसार परियोजना मूल्यांकन से संबंधित मसलों की वजह से कंपनी इसे अंतिम रूप नहीं दे पाई।
झाबुआ उन 40 दबावग्रस्त थर्मल पावर यूनिटों की सूची में शामिल है जिन्हें गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) माना जाता है। झाबुआ पावर प्लांट बेचने के लिए पहले किए गए प्रयासों का कोई परिणाम नहीं निकल पाया था। गोयल एमजी गैसेस के साथ भी इसका बिक्री सौदा परवान नहीं चढ़ पाया था। वर्ष 2016 में शुरू किया जाने वाला झाबुआ पावर प्लांट मध्य प्रदेश में स्थित है। नियोजित 1,200 मेगावाट में से 600 मेगावाट की केवल एक इकाई की ही शुरुआत की गई थी। इस संयंत्र के लिए कोयले की आपूर्ति महानदी कोलफील्ड्स और साउथ-ईस्टर्न कोलफील्ड्स से की गई थी। यह संयंत्र शीर्ष क्षमता स्तर से नीचे चलता रहा है। पहले ऐसा इसलिए था क्योंकि इससे लाभ पाने वाले राज्यों मध्य प्रदेश और केरल की मांग कमजोर थी। बाद में मूल कंपनी ने आवश्यक कार्यशील पूंजी नहीं दी और संयंत्र को कोयला आपूर्ति के संकट का भी सामना करना पड़ा। यह परियोजना 4,800 करोड़ रुपये की है और इस पर 3,488 करोड़ रुपये का कर्ज है।