महंगाई भत्ता ऐसा पैसा है, जो सरकारी कर्मचारियों को उनके रहने-खाने के स्तर को बेहतर बनाने के लिए दिया जाता है. महंगाई भत्ते को लेकर श्रम मंत्रालय ने कैलकुलेशन का फॉर्मूला बदल दिया है. श्रम मंत्रालय ने महंगाई भत्ते के आधार वर्ष 2016 में बदलाव किया है. मजदूरी दर सूचकांक की एक नई सीरीज जारी की है. श्रम मंत्रालय ने कहा कि आधार वर्ष 2016=100 के साथ WRI की नई सीरीज 1963-65 के आधार वर्ष की पुरानी सीरीज की जगह लेगी.
आधार वर्ष बदलती है सरकार
सरकार महंगाई के आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर प्रमुख आर्थिक संकेतकों के लिए आधार वर्ष में संशोधन करती है. इससे अर्थव्यवस्था में आने वाले बदलाव को प्रतिबिंबित किया जा सके और मजदूरों के वेज पैटर्न को शामिल किया जा सके. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की सिफारिशों के मुताबिक, दायरा बढ़ाने और सूचकांक को ज्यादा बेहतर बनाने के लिए मजदूरी दर सूचकांक का आधार वर्ष 1963-65 से बदलकर 2016 किया गया है.
कैसे होता है महंगाई भत्ते का कैलकुलेशन?
महंगाई भत्ते की मौजूदा दर को मूल वेतन से गुणा करने पर महंगाई भत्ते की रकम निकाली जाती है. प्रतिशत की मौजूदा दर 12% है, अगर आपका मूल वेतन 56900 रुपए डीए (56,900 x12)/100 है.
ये फॉर्मूला होता है इस्तेमाल
महंगाई भत्ते का फीसदी= पिछले 12 महीने का CPI का औसत-115.76. अब जितना आएगा उसे 115.76 से भाग दिया जाएगा. जो अंक आएगा, उसे 100 से गुणा कर दिया जाएगा.
क्या होता है महंगाई भत्ता?
महंगाई भत्ता ऐसा पैसा है, जो सरकारी कर्मचारियों को उनके रहने-खाने के स्तर को बेहतर बनाने के लिए दिया जाता है. ये पैसा इसलिए दिया जाता है, ताकि महंगाई बढ़ने के बाद भी कर्मचारी के रहन-सहन के स्तर में कोई फर्क न पड़े. ये पैसा सरकारी कर्मचारियों, पब्लिक सेक्टर के कर्मचारियों और पेंशनधारकों को दिया जाता है. भारत में मुंबई से 1972 में सबसे पहले महंगाई भत्ते की शुरुआत हुई थी. इसके बाद केंद्र सरकार सभी सरकारी कर्मचारियों को महंगाई भत्ता दिया जाने लगा.
हर 6 महीने में होता है बदलाव
डियरनेस अलाउंस कर्मचारियों के रहने-खाने के स्तर को बेहतर बनाने के लिए दिया जाता है. महंगाई भत्ता इसलिए दिया जाता है कि महंगाई बढ़ने के बाद भी कर्मचारियों को अपना जीवन-यापन करने में कोई परेशानी न हो. आमतौर पर हर 6 महीने, जनवरी और जुलाई में बदलाव किया जाता है.
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