कोल इंडिया का यह निर्णय छत्तीसगढ़ के सीपीपी आधारित उद्योगों के लिए घातक साबित हो रहा, आंतरिक परिपत्र ने खोली पोल

नॉन पावर सेक्टर को कोयले की आपूर्ति में बड़ी कटौती देश के अनेक उद्योगों के लिए तब तालाबंदी की स्थिति पैदा करने वाली है जबकि कोरोना के तीसरे दौर से निकलकर देश की औद्योगिक गतिविधियां पूर्णतः सामान्य हो चुकी हैं।

पांच राज्यों के चुनाव खत्म हो चुके। यूक्रेन संकट के कारण जीवाश्म ईंधन पेट्रोलियम की कीमतेें उछाल की ओर हैं। औद्योगिक प्रयोजन से प्रयोग किए जाने वाले डीजल की कीमत एकबारगी 25 रुपए बढ़ चुकी है। ऐसे ही, एक और महत्वपूर्ण जीवाश्म ईंधन कोयला कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) के कुप्रबंधन के कारण सीपीपी आधारित उद्योगों के लिए उपलब्ध होना मुश्किल हो गया है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में उत्पन्न परिस्थितियों के कारण देश के उद्योग गंभीर ऊर्जा संकट की ओर बढ़ रहे हैं। जाहिर है देश की जनता ही इसके परिणाम भुगतेगी।

भारत सरकार की कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड ने अपनी आठ अनुषंगी कंपनियों के मुखियाओं को 17 मार्च, 2022 को जारी एक आंतरिक परिपत्र में इस बात के निर्देश दिए हैं कि पावर सेक्टर की बढ़ती जरूरतों के अनुरूप वे 18 मार्च, 2022 से कोयले का उत्पादन, भंडारण और वितरण सुनिश्चित करें ताकि मानसून के मौसम में भी पावर सेक्टर को कोयले की निर्बाध आपूर्ति बनी रहे। कोल इंडिया के परिपत्र में जिस तरह से नॉन पावर सेक्टर के लिए कोयले की आपूर्ति का खाका तैयार किया गया है वह जाहिर तौर पर छत्तीसगढ़ और देश के बाहर स्थित सीपीपी आधारित उद्योगों के लिए बर्बादी का संदेश लेकर आया है।

कोल इंडिया की अनुषंगी कंपनी साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) का ही उदाहरण लें तो एसईसीएल को यह स्पष्ट निर्देश हैं कि वह छत्तीसगढ़ और बाहरी राज्यों के सीपीपी आधारित उद्योगों को रेलवे परिवहन के जरिए मात्र 2 रैक ही उपलब्ध कराएगी। जबकि रोड सेल से 37000 टन कोयला उद्योगों को दिया जा सकेगा।

जबकि सामान्य दिनों में एसईसीएल नॉन पावर सेक्टर को प्रतिदिन 8 से 10 रैक की आपूर्ति करती है। ऐसे ही रोड सेल से लगभग 80 हजार टन कोयला उद्योगों को दिया जाता है। नॉन पावर सेक्टर को कोयले की आपूर्ति में बड़ी कटौती देश के अनेक उद्योगों के लिए तब तालाबंदी की स्थिति पैदा करने वाली है जबकि कोरोना के तीसरे दौर से निकलकर देश की औद्योगिक गतिविधियां पूर्णतः सामान्य हो चुकी हैं।

1 फरवरी, 2022 को जारी अपने एक परिपत्र के अनुसार एसईसीएल छत्तीसगढ़ में सीपीपी आधारित उद्योगों के उपभोक्ताओं को मंथली शेड्यूल्ड क्वांटिटी (एमएसक्यू) के मात्र 75 फीसदी कोयले का ऑर्डर बुक करने की सुविधा दे रहा है। यानी कागजों पर 25 फीसदी कोयले की कटौती पहले से ही जारी है।

जबकि जमीनी सच्चाई तो यह है कि उपभोक्ता एमएसक्यू का 75 फीसदी कोयला भी नहीं ले पा रहे। ऐसे में कोल इंडिया के 17 मार्च, 2022 के आंतरिक परिपत्र से उपभोक्ताओं को मिलने वाला एमएसक्यू का कोयला शून्य स्थिति में पहुंच जाएगा। यह स्थिति तब है जबकि छत्तीसगढ़ में कोयले का भंडार लगभग 56 बिलियन टन है जो कि देश के कुल कोयला भंडार का तकरीबन 18 फीसदी है। वर्तमान में एसईसीएल द्वारा उत्पादित होने वाले कोयले का 95 फीसदी राज्य के बाहर भेजा रहा है। छत्तीसगढ़ के सीपीपी आधारित उद्योगों के खिलाफ यह एक बड़ा षड्यंत्र हैं।

छत्तीसगढ़ राज्य के 250 से अधिक कैप्टिव विद्युत संयंत्रों पर आधारित उद्योगों के सुचारू संचालन के लिए प्रति वर्ष 32 मिलियन टन कोयले की आवश्यकता है जो कि एसईसीएल के उत्पादन का मात्र 19 प्रतिशत है। इन उद्योगों ने लगभग 4000 मेगावॉट के कैप्टिव पावर प्लांट स्थापित किए हैं जिनके लिए हर दिन लगभग 2 लाख टन कोयले की जरूरत है।

छत्तीसगढ़ राज्य के सीपीपी आधारित उद्योग, अनेक श्रमिक यूनियन और औद्योगिक संघ पहले ही कोल इंडिया की नीतियों के खिलाफ लामबंद हैं। समस्या की ओर छत्तीसगढ़ राज्य सरकार का लगातार ध्यान आकृष्ट किया जा रहा है। यह मांग की जा रही है कि राज्य के संसाधनों पर पहला अधिकार स्थानीय उद्योगों का है।

ऐसे में उन्होंने प्राथमिकता के आधार पर कोयला मिलना चाहिए। कोल इंडिया का गैर जिम्मेदाराना रवैया छत्तीसगढ़ के हजारों कागमारों के हितों तथा राजस्व पर विपरीत असर डालने वाला साबित होगा। छत्तीसगढ़ में आज जरूरत इस बात की है कि राज्य के सीपीपी आधारित उद्योगों को उनके हक का पूरा कोयला मिले। राज्य से बाहर भेजे जा रहे कोयले पर तत्काल रोक लगाई जाए।

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