भारतीय वाहन उद्योग फिलहाल अपने वाहनों को भारत चरण-6 (बीएस-6) उत्सर्जन मानक के दूसरे चरण के अनुकूल ढालने की कोशिश में लगा हुआ है। ऐसा होने पर उत्सर्जन मानक यूरो-6 मानकों के समान हो जाएंगे।
चार पहिया यात्री एवं वाणिज्यिक वाहनों को उन्नत मानकों के अनुरूप बन के लिए उनमें परिष्कृत उपकरण लगाने होंगे। ऐसी स्थिति में वाहन उद्योग जानकारों का मानना है कि वाहन विनिर्माताओं की उत्पादन लागत बढ़ सकती है जिसका बोझ अगले वित्त वर्ष से आखिरकार खरीदारों को ही उठाना पड़ेगा।
उन्नत उत्सर्जन मानकों पर खरा उतरने के लिए वाहनों में ऐसा उपकरण लगाना होगा जो चलती गाड़ी के उत्सर्जन स्तर पर नजर रख सके। इसके लिए यह उपकरण केटेलिक कन्वर्टर अ ऑक्सीजन सेंसर जैसे कई अहम हिस्सों पर नजर रखेगा।
वाहन उत्सर्जन का स्तर एक तय मानक से अधिक होते ही यह उपकरण चेतावनी लाइट देकर यह बता देगा कि वाहन की ठीक से सर्विस कराने का वक्त आ गया है।
इसके अलावा वाहन में खर्च होने वाले ईंधन के स्तर पर काबू रखने के लिए वाहनों में एक प्रोग्राम्ड ईंधन इंजेक्टर भी लगाया जाएगा। यह उपकरण पेट्रोल इंजन में भेजे जाने वाले ईंधन की मात्रा और उसके समय पर भी नजर रखेगा।
वाहन विशेषज्ञों का कहना है कि वाहनों में इस्तेमाल होने वाले सेमीकंडक्टर चिप को भी इंजन के तापमान, ज्वलन के लिए भेजी जाने वाली हवा के दबाव और उत्सर्जन में निकलने वाले कणों पर नजर रखने के लिए उन्नत करना पड़ेगा।
इक्रा रेटिंग्स के उपाध्यक्ष एवं क्षेत्र प्रमुख रोहन कंवर गुप्ता ने कहा, “नए मानकों के लागू होने से वाहनों की कुल कीमत में थोड़ी बढ़ोतरी होने की संभावना है। हालांकि यह बढ़ोतरी बीएस-4 से बीएस-6 चरण की तरफ बढ़ते समय हुई वृद्धि से तुलनात्मक रूप से कम होगी।“
उन्होंने कहा कि इस निवेश का बड़ा हिस्सा वाहन में उत्सर्जन पहचान उपकरण लगाने के साथ सॉफ्टवेयर उन्नतिकरण में लगेगा। उन्होंने कहा कि बीएस-6 के पहले चरण की तुलना में दूसरे चरण में लगने वाला खर्च तुलनात्मक रूप से कम होगा।
भारत में नए उत्सर्जन मानक के तौर पर एक अप्रैल 2020 से बीएस-6 का पहला चरण लागू किया गया था। नए मानक के अनुरूप ढालने पर घरेल वाहन कंपनियों को करीब 70.000 करोड़ रुपये का निवेश करना पड़ा था।
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