नई दिल्ली, 20 जून। यूनियन के प्रमुख नेताओं की कोयला मंत्री की मुलाकात और इसके कुछ दिनों बाद प्रल्हाद जोशी द्वारा NCWA- XI के एमओयू में दस्तखत किया जाना। माना जा रहा था DPE के मुद्दे पर सहमति ले ली गई है, लेकिन कोयला मंत्रालय (Coal Ministry) द्वारा वेज एग्रीमेंट को आवश्यक कार्यवाही के लिए डीपीई को भेजे से पता चल रहा है कि बाधा दूर नहीं हुई है।
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इधर, कोयला मंत्रालय द्वारा डीपीई को भेजे गए पत्र के बाद श्रमिक संगठनों में सुगबुगाहट शुरू हो गई है। श्रमिक नेताओं ने आपस में चर्चा शुरू कर दी है। इंटक (INTUC) और एचएमएस (HMS) के प्रमुख लीडर इस समय दक्षिण अफ्रीका में हैं। बताया जा रहा है कि दोनों नेताओं की 23 जून को भारत वापसी हो जाएगी। इसके बाद सभी यूनियन डीपीई के मुद्दे को लेकर अपनी रणनीति बना सकते हैं। माना जा रहा है कि डीपीई के मामले में सीटू, एटक, एचएमएस और इंटक एक मंच पर आ जाएगी। BMS का क्या स्टैंड होगा, यह देखना होगा। क्योंकि बीएमएस के कोल प्रभारी डीपीई को कोई मुद्दा नहीं मानते रहे हैं।
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यहां बताना होगा कि 19 फीसदी एमजीबी को डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक इंटरप्राइजेस (DPE) ने मंजूरी नहीं दी है। इसकी वजह डीपीई का कार्यालय ज्ञापन (24 नवम्बर, 2017) है, जो यह कहता है कि कामगारों का वेतन अधिकारी वर्ग से अधिक नहीं हो सकता। वेतन विसंगति की बनी इस स्थिति का निराकरण तब हो सकता है जब डीपीई सीधे तौर पर मंजूरी दे या फिर अपने नियमों को शिथिल करे, ऐसा पहले किया जा चुका है।
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डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक इंटरप्राइजेस वित्त मंत्रालय (Finance Ministry) के अधीन है। कहा जा रहा है कि 19 फीसदी MGB को स्वीकृति प्रदान करना गवर्नमेंट फाइनेंनशियल रूल (GFR) का हिस्सा है। जानकार कह रहे हैं कि चुंकि 19 फीसदी एमजीबी पर डीपीई द्वारा निहित प्रावधानों के विपरित सहमति बनी है, इसलिए डीपीई GFR का वाइलेंस नहीं करेगा।