कोयला मंत्रालय के तहत कोयला/लिग्नाइट सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (पीएसयू) ने देश की बढ़ती हुई ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए न केवल अपने उत्पादन स्तर को बढ़ाया है, बल्कि कोयला क्षेत्रों और उसके आसपास के क्षेत्रों में व्यापक पौधरोपण सहित विभिन्न राहत उपायों को अपनाकर देश के पर्यावरण के प्रति अपनी संवेदनशीलता और रुचि भी दर्शायी है।
कोयला मंत्रालय के तत्वावधान में, कोयला/लिग्नाइट सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों ने वित्त वर्ष 2023-24 में 2400 हेक्टेयर क्षेत्र में 50 लाख से अधिक पौधों की रोपाई करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। कोयला/लिग्नाइट सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम पौधरोपण के इस परिकल्पित लक्ष्य को हासिल करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने ब्लॉक पौधरोपण, पथ पौधरोपण, तीन स्तरीय पौधरोपण, उच्च तकनीक खेती और बांस रोपण के माध्यम से अगस्त, 2023 तक 1117 हेक्टेयर भूमि पर देशी प्रजातियों के 19.5 लाख से अधिक पौधे लगाए हैं। कोयला/लिग्नाइट सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों ने 2030 तक कोयला क्षेत्रों और उसके आसपास के क्षेत्रों की लगभग 30,000 हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि में पौधरोपण करने की परिकल्पना की है, जिससे कार्बन सिंक में काफी वृद्धि होगी।
कोयला/लिग्नाइट सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा पौधरोपण की मियावाकी पद्धति जैसी नवीन पौधरोपण तकनीकों को अपनाया गया है। महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड (एमसीएल) ने एक हेक्टेयर भूमि में तेजी से बढ़ने वाले लगभग 8000 पौधे लगाकर इस तरह की पहल की है। मियावाकी विधि, पौधरोपण की एक जापानी तकनीक है, जो निचली भूमि में शीघ्रता से सघन वन का आवरण बनाने के लिए एक सबसे प्रभावी पौधरोपण विधि है।
कोयला रहित क्षेत्रों में पौधरोपण किया गया है जिसमें परिवर्तित वन भूमि के साथ-साथ गैर-वन भूमि भी शामिल है। गैर-वन- बैकफ़िल्ड और बाहरी ओवरबर्डन डंप पर किया गया पौधरोपण प्रत्यायित प्रतिपूरक वनीकरण (एसीए) के लिए सबसे उपयुक्त है, जो वन भूमि के गैर-वानिकी उपयोग के लिए अनुमोदन प्राप्त करने के लिए सक्रिय वनीकरण की एक प्रणाली है। कोयला मंत्रालय के मार्गदर्शन में, कोयला/लिग्नाइट सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम एसीए को बढ़ावा देने और वन मंजूरी प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए एसीए को प्रोत्साहन देने और वन मंजूरी में तेजी के लिए भविष्य में प्रतिपूरक वनीकरण के लिए गैर-वन वनीकृत भूमि की पहचान करने के लिए व्यापक प्रयास कर रहे हैं। कोयला/लिग्नाइट सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम ने एसीए दिशानिर्देशों के अनुसार प्रतिपूरक वनरोपण के लिए अब तक लगभग 2838 हेक्टेयर वन-रहित और बिना-कोयले वाली भूमि की पहचान की है।
ये प्रयास अतिरिक्त वन और वृक्ष आवरण तथा भारत की 2070 तक नेट जीरो पर पहुंचने के दीर्घकालिक लक्ष्य के माध्यम से कार्बनडाइऑक्साइड का 2.5 से 3 बिलियन टन के अतिरिक्त कार्बन सिंक का सृजन करने के लिए भारत की एनडीसी प्रतिबद्धता की दिशा में सहायता प्रदान करते हैं।
इसके अलावा, कोयला खनन और अन्य मानवजनित गतिविधियों से प्रभावित भूमि सहित क्षतिग्रस्त भूमि की बहाली के लिए वनीकरण एक महत्वपूर्ण साधन है। यह मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद करता है, जलवायु को स्थिर करता है, वन्य जीवन का संरक्षण करता है और हवा और पानी की गुणवत्ता को बढ़ाता है। वनीकरण का वैश्विक प्रभाव कार्बन पृथक्करण और क्षेत्रों में आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देने के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को कम करता है। इसके प्रमाणित लाभ इसे निम्नीकृत परिदृश्यों के स्थायी पुनर्वास को प्राप्त करने और पर्यावरणीय कल्याण को बढ़ावा देने में एक आवश्यक उपाय बनाते हैं।