By… सलीम काजी

वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव और समय के साथ होने वाले बदलाव को आत्मसात करने की अक्षमता तबलीग जमात की वर्तमान हालत की जिम्मेदार है। दुनिया का कोई भी धार्मिक, सामाजिक अथवा सांस्कृतिक संगठन यदि बदलते समय के साथ अपने कायों में बदलाव नहीं लाता है तो उसका भी यही हाल होगा जो आज तबलीग जमात का हुआ है।

आपके उद्देश्य कितने महान क्यों न हों, आपके इरादे कितने भी नेक क्यों न हों, लेकिन यदि आप विश्व के नित बदलते घटनाक्रमों को समझने और उसके अनुसार अपने आप को ढालने में अक्षम हैं तो एक न एक दिन आप अपने स्वयं के एवं अपने संगठन के पतन के मुख्य कारक बनेंगे।
ठीक है कि तबलीग जमात लोगों को बुराई की ओर जाने से रोकती है और अच्छाई को अपनाने को प्रेरित करती है। इसके साथ ही धर्म को विशुद्ध रूप से बिना किसी आडम्बर के पालन करने हेतु प्रेरित करने का कार्य करती है, लेकिन अधिकतर कार्य अवैज्ञानिक रूप से अंजाम देने के लिए भी जानी जाती है। उदाहरण के तौर पर एक ही थाली में एकाधिक लोगों को भोजन करने के लिए यह कह कर प्रेरित करना की इससे आपसी भाईचारा बढ़ता है और मिल बांट कर खाने की आदत पड़ती है। यह बात उस समय के लिए ठीक हो सकती थी जब शायद संसाधनों की कमी होती होगी, लेकिन आज ऐसी परिस्थितियां नहीं है। तरह तरह की बीमारियों के युग में तो यह बात बिल्कुल भी अवैज्ञानिक करार दी जा सकती है।
फरवरी, 2020 में जब जमात का इज्तिमा मलेशिया में हुआ, उस समय कोरोना वायरस का प्रकोप प्रारंभ हो चुका था। मलेशिया में इस बात की चर्चा शुरू हो चुकी थी कि तबलीग जमात का इज्तिमा कोरोना वायरस के फैलाव का कारण बन सकता है। इस बात को पूरी तरह नजरअंदाज कर, इसके बाद भी इंडोनेशिया, पाकिस्तान और फिर नई दिल्ली के निजामुद्दीन में इज्तिमा करने की हठधर्मिता न केवल जमात के अवैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्रदर्शित करती है बल्कि जमात के प्रमुखों में दूरअंदेशी व नेतृत्व क्षमता की कमी भी दर्शाती है।
जमात के सदस्यों का अपने आप को जांच के लिये प्रस्तुत न करना, छुपना और समाज को खतरे में डालना भी अपने आप मे जमात की दी गयी सीख पर ही प्रश्नचिन्ह लगाता है।
सरकार का समय पर न जागना, अंतरराष्ट्रीय यात्रियों को भारत में प्रवेश की अनुमति देना एवं जमात को इज्तिमा आयोजित करने की इजाजत देना, ये तीनों बातें बहस का मुद्दा हो सकती हैं, लेकिन जमात को भी कोरोना वायरस के फैलाव में अनेक कारकों में से एक कारक बनने के इल्जाम से बरी कतई नही किया जा सकता है।


(लेखक के ये स्वतंत्र विचार हैं। लेखक सलीम काजी छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय, बिलासपुर के अधिवक्ता हैं)

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