दखिना गांव निवासी नन्हकू खेतिहर मजदूर हैं। उनका छोटा बेटा दिवाकर पंजाब के जालंधर में एक निजी कॉलेज की कैंटीन में बड़े भाई देवानंद के साथ काम करता था। उनका बड़ा बेटा लॉकडाउन से पहले गांव आ गया था। 13 अप्रैल को कॉलेज से सूचना मिली कि दिवाकर की मौत हो गई है। भाई के अंतिम दर्शन के लिए उसने निगोहां थाने से लेकर प्रशासन तक दरवाजा खटखटाया, लेकिन कोरोना महामारी की दहशत के चलते पंजाब प्रशासन ने उसका शव बिना जांच के देने से मना कर दिया। देवानंद ने बताया कि दिवाकर बुखार से पीड़ित था। वहां के प्रशासन ने कहा है कि बुधवार को शव का पोस्टमार्टम होगा। अगर, कोरोना संक्रमण की पुष्टि होती है तो शव का अंतिम संस्कार वहीं कर दिया जाएगा। इंस्पेक्टर निगोहां चिरंजीव मोहन ने बताया कि पंजाब पुलिस से बात की गई, लेकिन निर्धारित प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही कुछ हो सकेगा। पिता नन्हकू ने बताया कि दिवाकर की शादी रायबरेली में तय हुई थी। इसी महीने शादी होनी थी। पर, अब बेटे के सिर सेहरा देखना तो दूर उसके अंतिम दर्शन होंगे या नहीं, इसी पर असमंजस है।
वाराणसी में तो मां ने बेटे के लिए दरवाजा ही नहीं खोला :
लखनऊ की घटना के उलट वाराणसी में एक बेटा मुंबई से पैदल अपने घर पहुंचा लेकिन मां ने कोरोना के घर से दरवाजा ही नहीं खोला। वाराणसी के कोतवाली थाना क्षेत्र की दवा मंडी सप्तसागर के पास का निवासी अशोक केसरी सेंट्रल मुंबई के नागपाड़ा इलाके में एक होटल में काम करता था। लॉकडाउन की घोषणा और संक्रमण के तेजी से प्रसार के बीच 14 दिन पहले ही छह दोस्तों के साथ वाराणसी के लिए निकल गया। 1600 किमी की दूरी पैदल ही तय कर वाराणसी पहुंचा और घर फोन किया। यहां घर पहुंचने पर ना मां ने दरवाजा खोला, ना भाई और भाभी ही ने। जबकि वह जांच के बाद घर पहुंचा था, उसे 14 दिन तक क्वारंटीन का निर्देश मिला था।
source : Hindustan