भिलाई इस्पात संयंत्र (Bhilai Steel Plant) के पास देवबलोदा गांव में स्थित छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक धरोहर महादेव मंदिर स्थल के जीर्णोद्धार, विकास और इसके उन्नयन कार्य हेतु, सेल-भिलाई इस्पात संयंत्र की सीएसआर पहल के तहत 10 अक्टूबर, 2024 को भूमिपूजन किया गया।
सेल-भिलाई इस्पात संयंत्र के कार्यपालक निदेशक (मानव संसाधन) श्री पवन कुमार ने सेंट्रल रीज़न (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. भुवन विक्रम, पुरातत्वविद् अधीक्षक (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) डॉ. एन के स्वाई और एनसीएफ की वरिष्ठ प्रबंधक डॉ. मोनिका चौधरी के साथ भूमिपूजन किया।
इस अवसर पर कार्यकारी कार्यपालक निदेशक (रावघाट) श्री अरुण कुमार, श्री राहुल तिवारी (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण-एएसआई), मुख्य चिकित्सा अधिकारी प्रभारी (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवांयें) डॉ एम रविन्द्रनाथ, मुख्य महाप्रबंधक (मानव संसाधन) श्री संदीप माथुर, मुख्य महाप्रबन्धक (टीएसडी एवं सीएसआर) श्री उत्पल दत्ता, महाप्रबन्धक (सीएसआर) श्री शिवराजन एवं महाप्रबन्धक (टीएसडी) श्री एन के जैन सहित सीएसआर विभाग, एनसीएफ और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के वरिष्ठ अधिकारीगण उपस्थित थे। इस दौरान उपस्थित अधिकारियों ने पौधारोपण भी किया।
भिलाई इस्पात संयंत्र के पास देवबलोदा गांव में स्थित छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक धरोहर महादेव मंदिर स्थल के जीर्णोद्धार, संरक्षण और विकास के लिए, बीच एक मेमोरेंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) साइन किया गया। यह एमओयू 21 दिसंबर 2022 को नई दिल्ली में स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय संस्कृति कोष (एनसीएफ) और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के बीच साइन किया गया था।
भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर को संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है, जिसका निर्माण 14वीं शताब्दी में कलचुरी राजवंश द्वारा करवाया गया था। मंदिर के खंभों और बाहरी हिस्से पर देवी-देवताओं की छवि बनी हुई है। राजधानी और दुर्ग के बीच भिलाई-तीन चरोदा रेल लाइन के किनारे बसे देवबलौदा गांव का यह ऐतिहासिक मंदिर कई ऐतिहासिक तथ्यों को साथ लिए हुए है। इस मंदिर के इतिहास को लेकर कहा जाता है कि यहां स्थित शिवलिंग स्वयं ही भूगर्भ से उत्पन्न हुआ है।
धरोहर स्थलों का संरक्षण, जीर्णोद्धार और विकास सेल के सीएसआर पहलों के मुख्य क्षेत्रों में से एक है। इस धरोहर स्थल को सेल-भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के माध्यम से विकास के लिए पहचाना गया था। यह परियोजना न केवल परिसर को बहाल करने में मदद करेगी, बल्कि मंदिर एवं इसके परिसर के संरक्षण से इस क्षेत्र में अधिक पर्यटकों को भी आकर्षित करेगी।