आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान एवं शोध संस्थान (एरीज) के वरिष्ठ खगोल वैज्ञानिक डॉ. शशि भूषण पांडे के अनुसार बुधवार को पृथ्वी के करीब से गुजरने वाले क्षुद्र ग्रह की प्रक्रिया एक बड़ी खगोलीय घटना है।
पांडे ने बताया कि 1998 ओआरटू नाम से प्रचलित यह उल्कापिंड हवाईद्वीप समूह पर नीट नामक प्रोग्राम के तहत खोजा गया था। पृथ्वी के पास से गुजरने की इसकी प्रक्रिया खासी रोचक होती है। इससे खगोल से जुड़ी कई जानकारियां और अनुसंधान की विषयवस्तु एकत्र की जा सकेगी। क्षुद्र ग्रह पृथ्वी तथा चंद्रमा के बीच की दूरी के 16 गुना अधिक दूरी से गुजरेगा। पांडे ने बताया कि इसके बाद ये ग्रह 2079 में आएगा। तब यह पृथ्वी के सबसे करीब होगा।
तीन साल पहले पृथ्वी के बेहद पास आया था क्षुद्रग्रह
प्रो. पांडे के अनुसार इससे पहले भी ऐसी स्थिति बनी है। अप्रैल 2017 में पृथ्वी के काफी नजदीक से एक क्षुद्र ग्रह गुजर चुका है। इसलिए इसमें घबराने की जरूरत नहीं है। हालांकि इस बार गुजरने वाला उल्कापिंड काफी दूर से गुजर रहा है। उन्होंने बताया कि इसके पृथ्वी से टकराने की बिलकुल भी आशंका नहीं है।
पृथ्वी से टकराने की संभावना नहीं
नासा के सेंटर फॉर नियर-अर्थ स्टडीज के अनुसार, बुधवार 29 अप्रैल को सुबह 5:56 बजे ईस्टर्न टाइम में उल्कापिंड के पृथ्वी के पास से होकर गुजरेगा। वैज्ञानिकों के अनुसार इसके धरती से टकराने की संभावना कम ही है। बता दें कि अरेकिबो वेधशाला एक राष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन की सुविधा है, जिसे सेंट्रल फ्लोरिडा विश्वविद्यालय द्वारा संचालित किया जाता है। यह वेधशाला नासा के नियर-अर्थ ऑब्जेक्ट ऑब्जर्वेशन प्रोग्राम द्वारा समर्थित है और 90 के दशक के मध्य से खगोलीय पिंडों का विश्लेषण कर रही है।
भविष्य में खतरनाक साबित हो सकता है
वैज्ञानिकों के अनुसार इस उपग्रह को संभावित खतरनाक वस्तु के रूप में वर्गीकृत किया गया है, क्योंकि यह 500 फीट से भी बड़ा है और पृथ्वी की कक्षा के 75 लाख किलोमीटर के भीतर आता है। इसलिए यह भविष्य में पृथ्वी के लिए खतरा बन सकता है। अरेकिबो वेधशाला के विशेषज्ञ फ्लेवियन वेंडीटी ने कहा कि वर्ष 2079 में यह उल्कापिंड इस वर्ष की तुलना में पृथ्वी के करीब 3.5 गुना ज्यादा पास होगा, इसलिए इसकी कक्षा को ठीक से जानना महत्वपूर्ण है।