शायद कोरोना वायरस ऐसी पहली आपदा होगी, जिससे दुनिया का हरेक देश एक समय पर ही प्रभावित हुआ है। फरवरी के अंत तक कोविड-19 के सन्दर्भ में हरेक देश के शासक एक ही स्थिति में थे, सभी आशंकित थे और इस महामारी से अपने देश को बचाने में लगे थे। इसमें से कुछ शासक केवल सोच रहे थे, जबकि दूसरे जमीनी स्तर पर इससे मुकाबले की तैयारी कर रहे थे। अगर आज की परिस्थितियों में देखें तो जमीनी स्तर पर काम करने वाले शासक अपने नागरिकों को अपेक्षाकृत सुरक्षित बचाने में सफल रहे जबकि केवल सोचने वाले आत्ममुग्ध शासक आज भी बदतर स्थिति में हैं।

जाहिर है, एक ही समय पर प्रभावित होने के कारण अधिकतर देशों के शासकों को अपने विवेक से त्वरित निर्णय लेने पड़े। कोरोना वायरस से मुकाबले में जिन देशों के शासक केवल अपने मन की बात करते रहे, या फिर अहंकारी और बड़बोले हैं, वे सभी देश पिछड़ गए। दूसरी तरफ, वे सभी देश जहां महिलाएं शासन में हैं, वहां इस वायरस से नुकसान तो हुआ पर अन्य देशों जैसा नहीं। इसके उदाहरण आइसलैंड, नॉर्वे, ताइवान, डेनमार्क, जर्मनी और न्यूजीलैंड हैं।

वहीं, नोर्वे में तो अब शिक्षण संस्थान फिर से खोले जा रहे हैं और वहां कोरोना से कुल 182 लोगों की मृत्यु हुई है। प्रधानमंत्री एर्ना सोल्बेर्ग ने पूरी तरह से वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार निर्देश जारी किये थे और लॉकडाउन का निर्णय अन्य देशों की अपेक्षा पहले ही लागू कर दिया था। लॉकडाउन के समय प्रधानमंत्री ने लगातार अलग-अलग आयु वर्ग की जनता के साथ संवाद बनाए रखा था।

कोरोना वायरस की महामारी में महिला नेताएं एक अलग ही प्रतिभा का परिचय दे रहीं हैं और अब तो राजनीतिशास्त्र और मनोविज्ञान के धुरंधर भी इसकी विवेचना में जुट गए हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि महिलाओं में आत्म-विश्वास तो होता है पर वह अभिमान के स्तर तक अति-आत्मविश्वास नहीं होता। अमेरिका में मनोवैज्ञानिक थेरेसे हॉस्टन ने एक सर्वेक्षण किया था, जिसमें पुरुषों और महिलाओं से अलग-अलग यह पूछा गया था कि वे सामान्य अमेरिकी से श्रेष्ठ हैं या नहीं। इस सर्वेक्षण में 71 प्रतिशत पुरुषों ने अपने आप को श्रेष्ठ बताया था, जबकि केवल 57 प्रतिशत महिलाओं का जवाब हां में था।

महिलाएं अपने सहयोगियों और विशेषज्ञों का चयन केवल जी-हुजूरी के आधार पर नहीं, बल्कि उनकी दक्षता परख कर करती हैं। महिला नेताएं केवल अपना हुक्म ही नहीं चलातीं बल्कि विशेषज्ञों की राय ध्यान से सुनती हैं, तथ्यों को परखतीं हैं और इसके बाद ही कोई आदेश देतीं हैं। महिलाओं का निर्णय आंकड़ों और तथ्यों पर आधारित होता है। अनेक अध्ययन लगातार साबित करते रहे हैं कि किसी भी आपदा के प्रबंधन में और जन-कल्याण में महिलाएं पुरुषों की तुलना में बहुत आगे रहती हैं।

यही कारण है कि लगभग सभी महिला नेताओं ने इस संकट की घड़ी में भी अपना आपा नहीं खोया और ज्यादा से ज्यादा परीक्षण और लोगों के बीच शारीरिक दूरी पर ध्यान दिया। इन सभी नेताओं ने टेक्नोलॉजी का सहारा लोगों की हिम्मत बढ़ाने के लिए लिया और इनमें से किसी भी देश में कोरोना वायरस से संबंधित कोई भी अफवाह नहीं फैली। महिलाएं लगातार अपने आप को साबित करती रही हैं और करती रहेंगीं, पर देखना यह है कि समाज कब इस तथ्य को स्वीकार पाता है।

 

 

 

source : navjivan

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