automobile sector  : भारत सरकार ने एक रिपोर्ट में कहा है कि उचित नीतिगत समर्थन से 2030 तक भारत अपने ऑटोमोबाइल निर्यात को तीन गुना बढ़ाकर 60 अरब डॉलर तक पहुंचा सकता है।

इसके साथ ही देश में 20 से 25 लाख तक नई प्रत्यक्ष नौकरियां पैदा की जा सकती हैं और 25 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष (ट्रेड सरप्लस) भी हासिल किया जा सकता है। यह भारत को एक इनोवेशन-आधारित वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब की दिशा में आगे ले जाएगा।

गौरतलब है कि ऑटोमोबाइल उद्योग भारत की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह देश की जीडीपी में 7.1 प्रतिशत और मैन्युफैक्चरिंग जीडीपी में 49 प्रतिशत का योगदान देता है। भारत वर्तमान में दुनिया का चौथा सबसे बड़ा वाहन निर्माता देश है। 2023-24 में भारत में 2.8 करोड़ से अधिक वाहन बनाए गए।

हालांकि भारत का वैश्विक ऑटो पार्ट्स व्यापार में हिस्सा अभी सिर्फ 3% (लगभग 20 अरब डॉलर) है, जिससे साफ है कि इसमें बढ़ोतरी की काफी गुंजाइश है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक उत्पादन को 145 अरब डाॅलर, निर्यात को 60 अरब डाॅलर और ऑटो पार्ट्स व्यापार हिस्सेदारी को 8% तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के बढ़ते उपयोग से बैटरियों, सेमीकंडक्टरों और एडवांस मैटेरियल्स की मांग तेजी से बढ़ रही है। चीन ने अकेले 2023 में 80 लाख से अधिक ईवी बनाए, जबकि यूरोपीय संघ और अमेरिका भी ईवी अपनाने के लिए नियम और सब्सिडी लागू कर रहे हैं।

नई तकनीकों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), रोबोटिक्स, डिजिटल ट्विन्स, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), और 3D प्रिंटिंग के इस्तेमाल से वाहन निर्माण प्रक्रिया और अधिक स्मार्ट और कुशल बन रही है। जर्मनी और दक्षिण कोरिया जैसे देश पहले से ही स्मार्ट फैक्ट्री के क्षेत्र में अग्रणी हैं। भारत में भी कई वैश्विक वाहन कंपनियां स्मार्ट फैक्ट्री में भारी निवेश कर रही हैं।

वहीं केंद्र सरकार की योजनाएं जैसे FAME, पीएम ई-ड्राइव और PLI स्कीम के तहत अब तक 66,000 करोड़ रुपये से अधिक की सहायता दी गई है, जिससे इलेक्ट्रिक वाहनों और लोकल मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा मिल रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर भारत ने सही रणनीति अपनाई, तो वह दुनिया के लिए अगली पीढ़ी के मोबिलिटी सॉल्यूशंस का प्रमुख सप्लायर बन सकता है।

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