नई दिल्ली: आरएसएस के श्रमिक संगठन भारतीय मज़दूर संघ (बीएमएस) ने भाजपा शासित मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश सरकारों द्वारा इस सप्ताह श्रम कानूनों में किए गए बदलावों का विरोध किया है.
बीएमएस ने श्रम कानूनों में इन बदलावों को श्रम कानूनों से संबंधित अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन बताते हुए कहा है कि इससे अराजकता की स्थिति बन जाएगी.
बीएमएस के अध्यक्ष साजी नारायणन ने दिप्रिंट से कहा, ‘यह कोरोनावायरस के मुक़ाबले कहीं बड़ी महामारी साबित होगी. बीएमएस इस मुद्दे पर एक आपात बैठक आयोजित करेगा और इन कदमों का विरोध करेगा.’
उन्होंने कहा, ‘ये समय श्रम सुधारों का नहीं है. हम जंगल राज की स्थिति नहीं बनने देंगे. हम मज़दूरों को उद्योग जगत के रहमोकरम पर नहीं छोड़ सकते. विभिन्न राज्य ऐसी स्थिति निर्मित कर रहे हैं कि मानो कोई कानून है ही नहीं.’
नारायणन ने कहा कि मध्यप्रदेश ने औद्योगिक विवाद अधिनियम के अधिकांश प्रावधानों को वापस ले लिया है. औद्योगिक विवाद अधिनियम में संशोधनों के बाद, नए उद्यमों को अगले 1,000 दिनों तक कई प्रावधानों से छूट मिल जाएगी, जिनमें मज़दूरों को अपनी सुविधा के अनुसार नौकरी पर रखना भी शामिल है. संशोधनों के बाद अब श्रम विभाग के हस्तक्षेप की गुंजाइश नहीं रह जाएगी.
नारायणन ने कहा, ‘भारत में नौकरशाही में सुधारों की आवश्यकता है, श्रम सुधारों की नहीं. यदि उन्हें लगता है कि इससे चीन में होने वाले निवेश को आकर्षित किया जा सकेगा, तो वे भ्रम में जी रहे हैं. इन बदलावों से मज़दूरों पर रोज़गार छिनने का जोखिम बढ़ जाएगा, वो भी तब जबकि पहले से ही संपूर्ण उद्योग जगत कर्मचारियों की छंटनी में जुटा हुआ है.’
‘ये समय कानून को कमज़ोर करने का नहीं’
गुरुवार को मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने उद्योगों को कामगारों की शिफ्ट की अवधि 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे करने की अनुमति देने, और नए निवेशकों को श्रम कानूनों से 1,000 दिनों की राहत देने की घोषणा की थी.
इसी तरह अब फैक्ट्री लाइसेंस का हर साल नवीकरण कराने की बजाय ऐसा 10 वर्षों में एक बार कराने की ज़रूरत होगी. साथ ही, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) उत्पादकता बढ़ाने के लिए अपनी ज़रूरतों के अनुसार श्रमिकों की भर्ती कर सकेंगे.
इस बीच, उत्तरप्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने बुधवार को एक अध्यादेश के ज़रिए अधिकांश प्रतिष्ठानों, कारखानों और व्यवसायों को तीन वर्षों के लिए अधिकतर श्रम कानूनों के दायरे से बाहर कर दिया.
बीएमएस के अध्यक्ष ने कहा, ‘नियोक्ताओं की दुर्व्यवहार की वजह से सभी राज्यों से मज़ूदरों का बड़े स्तर पर पलायन हो रहा है. उन्हें उनकी पगार नहीं दी गई और ना ही किसी और तरह की सुरक्षा. कामगार रो-रो कर मदद की गुहार कर रहे हैं, किसी भी सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था के अभाव में वे 2,000 किलोमीटर दूर तक पैदल जा रहे हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘वास्तव में ये समय सुरक्षा प्रावधानों पर ज़ोर देने का है, न कि कानूनों को कमज़ोर बनाने का. हमने केंद्रीय श्रम मंत्री (संतोष गंगवार) से मांग की है कि वे सुरक्षा उपायों के बिना श्रम सुधारों की जल्दबाज़ी ना करें क्योंकि इससे मुसीबतों का पिटारा खुल जाएगा.’
नारायणन ने कहा कि दिल्ली सरकार भी श्रम कानूनों में बदलाव पर भी विचार कर रही है. ‘अन्य राज्य भी अध्यादेश के ज़रिए बदलाव के इस तरीके को अपनाएंगे. यह श्रमिकों के हित में नहीं होगा.’
भाजपा ने दी मोदी सरकार को श्रम सुधारों की सलाह
जैसा कि पिछले महीने दिप्रिंट ने खबर दी थी, भाजपा ने कोविड-19 संकट के बाद अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के ले मोदी सरकार को कुछ सुझाव दिए हैं. उन सलाहों में से कुछ आसन्न श्रम और भूमि सुधारों से संबंधित थे.
उस परामर्श प्रक्रिया में शामिल भाजपा के एक नेता ने दिप्रिंट से कहा था, ‘बहुत से विशेषज्ञों को लगता है कि बड़ी निर्माण इकाइयों को चीन से हटाए जाने की स्थिति में भारत को फायदा मिलने की संभावना कम ही है क्योंकि वर्तमान स्थिति में भारत में व्यवसाय करने की लागत दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की तुलना में बहुत अधिक है. अपने उत्पादों को कीमत और गुणवत्ता के लिहाज से प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिए हमें व्यापक भूमि और श्रम सुधार करने होंगे.’
भाजपा प्रवक्ता गोपाल अग्रवाल ने कहा, ‘हमने भारत में विनिर्माण को व्यवहार्य बनाने के लिए श्रम और भूमि कानूनों में संशोधनों का मशविरा दिया है. ये नई विनिर्माण नीति लाने का अवसर है, लेकिन उससे पहले सरकार को ये (श्रम कानूनों में) सुधार करने होंगे.’
लेकिन इस मुद्दे पर नारायणन भाजपा से सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि भारत रातोंरात विनिर्माण का केंद्र नहीं बन सकता.
Source : theprint