इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, मोदी सरकार के लगातार दबाव के बीच नौ राज्यों ने चार लेबर कोड से जुड़े नियम फ़ाइनल कर लिए हैं, जिनमें कांग्रेस, बीजेपी, झारखंड मुक्ति मोर्चा और बीजू जनता दल की सरकारें शामिल हैं।
गौरतलब है कि मोदी सरकार ने 44 श्रम क़ानूनों को ख़त्म कर चार लेबर कोड बनाया था और उन्हें 2019 और 2020 में संसद से पारित करा लिया था और उसे क़ानून का रूप दे दिया है लेकिन अभी तक लागू करने से हिचक रही है।
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साल 2019 में वेज कोड यानी मज़दूरी श्रम संहिता पास कराया गया था जबकि 2020 में तीन लेबर कोड- औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति पर कोड को संसद से पास कराया गया था।
चूंकी श्रम क़ानून राज्यों का विषय है इसलिए केंद्र सरकार के नियम बनाने के साथ साथ इस लेबर कोड के तहत राज्यों को भी नियम बनाने हैं और मोदी सरकार इसी का बहाना बना कर इन लेबर कोड को लागू करने की तारीख बार बार टालती रही है।
असल में केंद्रीय नियम सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, रेलवे, बंदरगाहों पर लागू होते हैं, जबकि राज्यों को अपने अधिकार क्षेत्र के तहत प्रतिष्ठानों के लिए केंद्रीय नियमों पर आधारित नियम बनाने होंगे।
कम से कम नौ राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों- हरियाणा, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब और जम्मू-कश्मीर ने सभी चार श्रम संहिताओं के लिए नियमावली के मसौदे को अंतिम रूप दे दिया है। पिछले साल संसद में पारित इन श्रम संहिताओं को लागू करने की दिशा में क़दम तेजी से आगे बढ़ रहा है।
मजदूरी पर संहिता का मसौदा नियमावली जारी करने वाले राज्यों की संख्या सबसे अधिक है। 21 राज्यों ने इस संहिता के लिए नियम बनाने की प्रक्रिया पूरी कर ली है, 18 ने औद्योगिक संबंध संहिता के लिए, 14 राज्यों ने सामाजिक सुरक्षा संहिता के लिए और 10 राज्यों ने व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति संहिता के लिए ऐसा किया है।
मालिकों के हित में बनी श्रम संहिताओं का मूल मंत्र है ‘हायर एंड फायर’ यानी जब चाहो काम पर रखो जब चाहो निकाल दो। नए श्रम कानून अपने को सुरक्षित समझ रहे 8 फीसदी मज़दूर आबादी को भी असंगठित क्षेत्र में धकेलने की मुकम्मल तैयारी है। इसीलिए पहले से ही सीमित स्थाई रोजगार को भी खत्म करके फिक्सड टर्म यानी नियत अवधि के लिए अनुबंध पर मज़दूरों को रखने की छूट देता है।
काम और वेतन की अनिश्चितता पैदा करने, ठेकेदारी प्रथा को बढ़ावा, संघर्ष और यूनियन बनाने के अधिकार पर हमला, मनमाने काम के घंटे व मनमानी शर्तों को थोपना, सामाजिक सुरक्षा को महज कागजी बनाना आदि द्वारा मालिकों की लूट की राह बेहद आसान बना दी गई है।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के अनुसार, “नियमावली बनाने की प्रक्रिया में समय लगता है। राज्य अच्छी प्रगति कर रहे हैं। श्रम एक समवर्ती विषय होने के कारण, राज्यों को अपने नियम बनाने होंगे और उसके बाद ही संहिताओं को पूरी तरह से लागू किया जा सकता है। श्रम मंत्रालय ने हाल ही में 9 नवंबर को राज्यों के साथ बैठक की थी और वे अच्छी प्रगति कर रहे हैं।”
अधिकारी ने कहा, “सरकार किसी विशिष्ट समय सीमा पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रही है, लेकिन राज्यों द्वारा की जा रही कानूनी प्रक्रियाओं की बारीकी से निगरानी कर रही है। राष्ट्रीय स्तर पर कोड लागू होने से पहले राज्यों को नियमों के सभी कानूनी प्रभावों पर चर्चा करने की आवश्यकता है।”
श्रम मंत्रालय ने पहले इस साल 1 अप्रैल से चार श्रम संहिताओं को लागू करने की परिकल्पना की थी। मंत्रालय ने पिछले साल नवंबर में हितधारकों से सुझावों के लिए वेज कोड को छोड़कर, अन्य तीन संहिताओं के तहत नियमावली को परिचालित किया था।
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जबकि वेतन पर संहिता को 2019 में संसद द्वारा अनुमोदित किया गया था और नियमावली को भी अंतिम रूप दिया गया था, लेकिन मंत्रालय ने इसके कार्यान्वयन को वापस ले लिया क्योंकि पूँजीपतियों की चाहत के अनुरूप वह एक ही बार में सभी चार संहिताओं को लागू करना चाहता था।
इन संहिताओं से मोदी सरकार द्वारा मज़दूरों को वहाँ पहुंचाया जा रहा है, जहाँ न तो रोजगार की कोई गारंटी है, न आर्थिक सुरक्षा है और ना ही सामाजिक सुरक्षा।
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साभार : Workers Unity