मुंबई। दानवीर उद्योगपति कहलाने वाले अजीम प्रेमजी आज 73 वर्ष के हो गए हैं। भारत के बिल गेटस कहलाने वाले अजीम हाशिम प्रेमजी का जन्म 24 जुलाई 1945 को मुंबई के एक गुजराती मुस्लिम परिवार में में हुआ था, उनके पिता को ‘राईस किंग’ कहा जाता था। विभाजन के बाद जब जिन्ना ने उनके पिता मुहम्मद हाशिम प्रेमजी को पकिस्तान आने के लिये आमंत्रित किया तो उन्होंने मना कर दिया और कहा कि भारत ही मेरी पहचान है, मैं इसे छोड़ नहीं सकता हूं।
आईटी कंपनी विप्रो लिमिटेड के चेयरमैन अजीम प्रेमजी
आईटी कंपनी विप्रो लिमिटेड के चेयरमैन अजीम प्रेमजी के पिता मुहम्मद हाशिम प्रेमजी ने 1945 में वेस्टर्न इंडियन वेजिटेबल प्रोडक्ट लिमिटेड की स्थापना की थी, जो आज विप्रो के नाम से जानी जाती है। मात्र 21 साल में अपने पिता को खो देने वाले अजीम प्रेम जी ने 1966 में कपंनी का कार्यभार संभाला था। अजीम उस वक्त स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे लेकिन पिता के अचानक निधन के बाद वो भारत आए और कंपनी की जिम्मेदारी ली।
प्रेमजी दो बच्चों के पिता
प्रेमजी की पत्नी का नाम यास्मीन हैं, उन्हें दो बच्चे है, रिषद और तारिक, रिषद फिलहाल विप्रो के आईटी व्यापार के चीफ स्ट्रेटजी ऑफिसर है।
सॉफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी में परिवर्तित कर दिया
विप्रो को पहले वेस्टर्न वेजिटेबल उत्पाद बनाने वाली कंपनी कहा जाता था लेकिन अजीम प्रेमजी ने बाद में इसे बदलकर बेकरी, टॉयलेट संबंधी उत्पाद, बालो संबंधी उत्पाद, बच्चो संबंधी उत्पाद बनाने वाली कंपनी में बदल डाला। 1980 में, इस युवा उद्योगपति ने भारत में आईटी क्षेत्र की जरूरतों को समझा , उन्होंने भारत में आईटी क्षेत्र का विकास करने की ठानी और एक अमेरिकी कंपनी की सहायता से अपनी साबुन बनाने वाली कंपनी को सॉफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी में परिवर्तित कर दिया।
पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया
2010 में, एशियावीक ने उन्हें दुनिया के सबसे शक्तिशाली 20 लोगो में से एक बताया था। वह दो बार टाइम्स पत्रिका की दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगो की लिस्ट में भी शामिल हो चुके हैं। 2000 में उन्हें उच्च शिक्षा के मनिपाल अकादमी द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया था। 2005 में, भारत सरकार ने उन्हें ट्रेड & कॉमर्स के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिये पद्म भुषण अवार्ड देकर सम्मानित किया । 2011 में उन्हें भारत सरकार द्वारा भारत का दूसरा सर्वोच्च अवार्ड पद्म विभूषण दिया गया।
दानवीर उद्योगपति
अजीम प्रेमजी ने अपने धन का 25 प्रतिशत भाग दान कर दिया और अतिरिक्त 25 प्रतिशत अगले पांच सालों में दान करने की भी घोषणा की है।
अमीर होने से नही होती रोमांच की अनुभूति
प्रेमजी का कहना है कि उन्हें अमीर होने से किसी रोमांच की अनुभूति नहीं हुई है। प्रेमजी ने एक बार एक कार्यक्रम में कहा था, ”मैं पिछले एक साल से परोपकार संबंधी कार्यों से ज्यादा जुड़ गया हूं। जितना मैं इसको देख रहा हूं, उससे ये ही लगता है कि यह कितना जाटिल है। पैसे के बिना भी आप किसी इंसान को कैसे खुश रख सकते हैं और समाजसेवा से आपको कितनी तारीफ मिलती है, यह आप शब्दों में बयां नहीं कर सकते हैं।”
साथ ही प्रेमजी ने कहा, “मेरा दृढ़ता से मानना है कि हममें से जिन लोगों के पास धन होने का विशेषाधिकार है, उन्हें उन लाखों लोगों के लिए एक बेहतर दुनिया बनाने और इसके लिए प्रयास करने में महत्वपूर्ण योगदान देना चाहिए, जो अभी तक कम विशेषाधिकार प्राप्त हैं।” प्रेमजी का कहना है कि परोपकार करना किसी कंपनी को चलाने से ज्यादा मुश्किल कार्य है।’
Source : One India & Jagran