बोकारो। बीएसएल अनाधिशासी कर्मचारी संघ ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिखकर आयकर का दायरा बढ़ाने की मांग की है। यूनियन ने अपने पत्र में लिखा है देश का दुर्भाग्य है कि मात्र 6 फीसदी आबादी ही आयकर रिटर्न भरती है तथा उसमें भी 5.5 प्रतिशत आबादी पर शून्य टैक्स है। चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था तथा 132 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में वास्तविक आयकर देने वाले की संख्या मात्र 72 लाख है। जीएसटी में प्रत्येक माह बढ़ता टैक्स कलेक्शन एक उदाहरण है कि व्यापारी वर्ग की आमदनी बढ़ रही है परंतु करदाता की संख्या नही बढ़ रही है। विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश अमेरिका में टैक्स चुकाने वालो की संख्या 60 फीसदी है जो वहां कि सुचारू आयकर व्यवस्था को प्रदर्शित कर रही है।

बीएसएल अनाधिशासी कर्मचारी संघ ने वित्त मंत्री को सुझाव दिए हैं :

  • जीएसटी में ही आयकर समाहित हो। जब देश का प्रमुख टैक्स जीएसटी के माध्यम से वसूला जा रहा है तथा आयकर दाताओं से भी जीएसटी काटी जा रही है तो सबसे बेहतर होगा कि जीएसटी में ही कुछ और टैक्स प्रतिशत लगा कर सभी नागरिको से आयकर वसूली की जाए।
  • सरकार द्वारा घोषित क्रीमीलेयर स्तर की सीमा 8 लाख तक आयकर को शून्य घोषित किया जाए। एक तरफ सरकार क्रीमीलेयर सीमा को गरीबी की सीमा बताती है तो फिर आयकर की सीमा कम रखने का कोई औचित्य नहीं है।
  • 8 लाख रुपए से लेकर 15 लाख रुपए तक के स्लैब में आयकर भुगतान का प्रतिशत 10 किया जाए।
  • 15 लाख रुपए से लेकर 25 लाख रुपए तक की सीमा को 20 प्रतिशत आयकर दायरे में किया जाए।
  • 25 लाख से लेकर 40 लाख रुपए की सीमा को 25 फीसदी आयकर के दायरे में किया जाए।
  • 40 लाख रुपए से अधिक की कमाई करने वाले समूहों पर ही 30 फीसदी टैक्स लगाया जाए।
  • आयकर में शिक्षा सेस को खत्म किया जाए। क्यांकि सरकार चंद समूहो से अलग से टैक्स नहीं वसूल सकती है। वहीं शिक्षा सेस का हिसाब भी सरकार नहीं देती है। सरकार के पास शिक्षा के लिए अलग से बजट भी रहता है।

बीएकेएस, बोकारो के उपाध्यक्ष ने यह कहा

बीएकेएस, बोकारो के उपाध्यक्ष मुश्ताक आलम ने कहा कि सबसे बड़ा आयकरदाता नौकरीपेशा वर्ग है। एक तरफ सरकार खुद क्रीमीलेयर की सीमा 8 लाख रुपए रखती है तो दूसरी तरफ आयकर स्लैब 12 साल से बढ़ाया नहीं गया है। उसमे भी चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था तथा 132 करोड़ अबादी वाले देश का दुर्भाग्य है कि मात्र 72 लाख लोग ही वास्तविक आयकरदाता हैं।

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